आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि नवरात्रि का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप मां सिद्धिदात्री की आराधना की जाती है। मान्यता है कि यदि कोई साधक पूरे नवरात्रि व्रत या पूजन न कर पाए तो भी नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से पूर्ण नवरात्रि का पुण्यफल प्राप्त होता है।हिंदू धर्मग्रंथों में उल्लेख है कि मां सिद्धिदात्री की उपासना साधक को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती है और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करती है।नवरात्रि का नौवां दिन आत्मबल, सिद्धि और सफलता का प्रतीक है। मां सिद्धिदात्री की आराधना से भक्त को दिव्य शक्ति का अनुभव होता है और जीवन में सकारात्मकता, सुख और समृद्धि का वास होता है
मां सिद्धिदात्री की कथा
सृष्टि की उत्पत्ति के समय जब ब्रह्मांड में केवल अंधकार था, तब ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना के लिए शक्ति की साधना की। उनकी तपस्या से मां आदिशक्ति प्रकट हुईं और उन्होंने नौ रूपों में विभाजित होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश को शक्तियां प्रदान कीं।
इन्हीं नौ रूपों में मां सिद्धिदात्री भी प्रकट हुईं। इनके पास आठ महा सिद्धियां हैं—
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अणिमा (सूक्ष्म होने की शक्ति)
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महिमा (विशाल होने की शक्ति)
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गरिमा (बहुत भारी होने की शक्ति)
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लघिमा (बहुत हल्का होने की शक्ति)
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प्राप्य (कहीं भी पहुंचने की शक्ति)
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प्राकाम्य (इच्छा पूर्ति की शक्ति)
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ईशित्व (सर्वश्रेष्ठ होने की शक्ति)
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वशित्व (सब पर नियंत्रण की शक्ति

