National Panchayati Raj Day: भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां शासन की जड़ें जन-जन तक पहुंचाने के लिए पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों के विकास और विकास में ग्रामीण जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए पंचायती राज व्यवस्था एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रणाली है। इसी व्यवस्था की महत्ता और इसके योगदान को सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (National Panchayati Raj Day) मनाया जाता है।
भारत में पंचायती राज का इतिहास
National Panchayati Raj Day: वैदिक साहित्य में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन संस्थाओं की संगठित प्रणाली के कई संदर्भ मिलते हैं। ग्रामीण स्थानीय निकाय किस प्रकार कार्य करते हैं, इसे सुसंगत रूप से समझाने के लिए विभिन्न संदर्भों को एक साथ बुनना ज़रूरी है।
वैदिक राज्य, जो एक ग्रामीण राज्य था, में गांव प्राथमिक प्रशासनिक इकाई के रूप में कार्य करता था। ग्रामिनी एक प्रमुख ग्राम अधिकारी का नाम था। वह राजा के राज्याभिषेक समारोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला एक सम्मानित अधिकारी था।रामायण और महाभारत जैसे प्रमुख महाकाव्यों में ग्राम संस्थाओं का प्रत्यक्ष उल्लेख बहुत कम मिलता है। मुस्लिम काल में कुछ नई अवधारणाएं भारतीय समाज में आईं। नए शासकों ने नई प्रथाओं और मान्यताओं को अपनाया, जिनमें मुक्कद्दम गांव का प्रशासन संभालता था, पटवारी राजस्व संग्रह का काम संभालता था, और चौधरी पंच के सहयोग से विवाद समाधान का काम संभालते थे। कराधान और भूमि प्रबंधन के संबंध में काफी आपसी मतभेद थे। जिला स्तर पर प्रशासन का नियंत्रण था। ग्रामीण बस्तियों को अपनी सीमाओं के अंदर पर्याप्त स्वशासन का अधिकार प्राप्त था। ब्रिटिश शासन ने ग्राम समुदायों की दीर्घकालिक आर्थिक आत्मनिर्भरता को कमजोर कर दिया तथा सामुदायिक भावना को गंभीर क्षति पहुंची। गांव में उपभोग के लिए उत्पादन की जगह बाजार के लिए उत्पादन ने ले ली। गांव के कलाकारों और शिल्पकारों की प्रमुखता खत्म हो गई। उन्हें अच्छे वेतन वाली नौकरियों की तलाश में अपने गांव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। परिणामस्वरूप, ग्राम पंचायतों ने अपनी स्वतंत्रता और बस्तियों के बीच परस्पर सम्पर्क खो दिया। अंग्रेजों ने कुछ ऐसी प्रशासनिक पद्धतियां अपनाईं, जिनसे ग्रामीण समुदायों का विनाश और तेज हो गया। वास्तव में, ये सभी उन समुदायों की बातें हैं जो प्रशासनिक ढांचे में ब्रिटिश संशोधनों के परिणामस्वरूप बुरी स्थिति में आ गए। भारतीय गांवों में लंबे समय से प्रचलित पंचायती राज की गिरावट का कारण केन्द्रीकरण को माना जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद पंचायती राज व्यवस्था ने अपना वर्तमान स्वरूप पहली बार स्वतंत्रता के बाद 1959 में अपनाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा पंचायतों को लोगों के स्वामित्व वाली व्यवस्था माना जाता था। लोकतंत्र की सच्ची आवाज़ होने के कारण स्थानीय स्वशासन को आवश्यक माना जाता था।
राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस का उद्भव
National Panchayati Raj Day: राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस की शुरुआत 24 अप्रैल 1993 को हुई, जब 73वां संविधान संशोधन अधिनियम लागू हुआ। इस संशोधन के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिला और पूरे देश में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली को अपनाया गया। भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने 2010 में पहली बार इस दिन को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में घोषित किया और तब से हर साल 24 अप्रैल को यह दिवस मनाया जाता है।
यह अधिनियम पंचायती राज संस्थानों (PRI) को संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है और उन्हें जमीनी स्तर पर स्वशासन संस्थानों के रूप में कार्य करने का अधिकार देता है। पंचायती राज भारत में स्थानीय शासन की एक त्रि-स्तरीय प्रणाली (Three-Tier System) है जिसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समितियां और जिला स्तर पर जिला परिषदें शामिल हैं। इस प्रणाली का उद्देश्य स्थानीय स्तर पर शक्ति और संसाधनों का विकेंद्रीकरण करना (Decentralize Power and Resources) और सहभागी लोकतंत्र (Participatory Democracy), सामाजिक न्याय और समावेशी विकास (Social Justice and Inclusive Development) को बढ़ावा देना है।
पंचायती राज प्रणाली को एक संवैधानिक इकाई के रूप में स्थापित किया गया। भारत में पंचायती राज व्यवस्था का एक लंबा इतिहास है जो प्राचीन काल से चला आ रहा है, जहां ग्राम सभाओं के माध्यम से ग्राम स्तर पर स्वशासन का अभ्यास किया जाता था। हालांकि, आधुनिक पंचायती राज प्रणाली की उत्पत्ति बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों से हुई है, जिसे 1957 में भारत में पंचायती राज संस्थानों को शुरू करने की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए स्थापित किया गया था। समिति ने पंचायती राज की त्रिस्तरीय प्रणाली की स्थापना की सिफारिश की, जिसमें ग्राम पंचायतें, पंचायत समितियां और जिला परिषदें शामिल होंगी। समिति की सिफ़ारिशों को भारत के कई राज्यों में लागू किया गया, लेकिन संवैधानिक स्थिति और वित्तीय संसाधनों की कमी ने इन संस्थानों की प्रभावशीलता को सीमित कर दिया। 1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम पारित होने तक ऐसा नहीं हुआ था कि पंचायती राज प्रणाली को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ और यह भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली का मौलिक हिस्सा बन गया। अधिनियम में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का भी प्रावधान किया गया, जिससे स्थानीय शासन में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हुई।
पंचायतों में महिलाओं की भागीदारी
National Panchayati Raj Day: पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से सुनिश्चित की गई है, जिसके तहत पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं के लिए 33प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। इस आरक्षण के परिणामस्वरूप महिलाओं को स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने और विकास कार्यों में सक्रिय रूप से शामिल होने का अवसर मिला है। 1993 में लागू हुआ यह संशोधन पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करता है, जिसमें पंचायत सदस्य और उनके प्रमुख दोनों शामिल हैं। इस आरक्षण के कारण महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है और वे अब स्थानीय स्तर पर विकास योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। कई राज्य सरकारों ने पंचायती राज में महिलाओं के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है, जिससे महिलाओं की भागीदारी और बढ़ गई है। पंचायतों में महिलाओं के नेतृत्व को मजबूत करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और अन्य पहल भी की जा रही हैं। महिलाओं की भागीदारी में अभी भी कुछ चुनौतियां हैं, जैसे कि सामाजिक और सांस्कृतिक रुकावटें, शिक्षा की कमी, और राजनीतिक जागरूकता का अभाव।
महिलाओं की राजनीतिक और सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता, क्षमता निर्माण, और संस्थागत सुधारों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
National Panchayati Raj Day पर दिए जाने वाले पुरस्कार
राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार कई श्रेणियों के तहत प्रदान किए जाते हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य जमीनी स्तर पर शासन, सामाजिक समावेश और पर्यावरणीय स्थिरता को मान्यता देना है। श्रेणियां इस प्रकार हैं:
दीन दयाल उपाध्याय पंचायत सतत विकास पुरस्कार (DDUPSVP) यह पुरस्कार सतत विकास लक्ष्य के 9 विषयगत क्षेत्रों में से प्रत्येक के अंतर्गत शीर्ष 3 ग्राम पंचायतों को मान्यता देता है।
नानाजी देशमुख सर्वोत्तम पंचायत सतत विकास पुरस्कार: सभी 9 विषयों में उच्चतम औसत स्कोर वाले शीर्ष 3 जीपी, ब्लॉक पंचायत और जिला पंचायत को सम्मानित किया जाता है।
ग्राम ऊर्जा स्वराज विशेष पंचायत पुरस्कार: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने और उपयोग करने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए शीर्ष 3 ग्राम पंचायतों को प्रदान किया जाता है।
कार्बन न्यूट्रल विशेष पंचायत पुरस्कार: शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के प्रयासों के लिए शीर्ष 3 ग्राम पंचायतों को दिया जाता है।
पंचायत क्षमता निर्माण सर्वोत्तम संस्थान पुरस्कार: सतत विकास लक्ष्यों (LSDG) के स्थानीयकरण को प्राप्त करने में पंचायतों को अनुकरणीय संस्थागत सहायता प्रदान करने वाले शीर्ष 3 संस्थानों को प्रदान किया जाता है।
ग्राम पंचायत का स्वरूप
National Panchayati Raj Day: ग्राम पंचायत का क्षेत्र बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के प्रावधानानुसार लगभग 7,000 की जनसंख्या पर जिला दंडाधिकारी (DM) द्वारा घोषित किया जाता है। ग्राम पंचायत में एक या एक से अधिक गांव शामिल हो सकते हैं। मुखिया संबंधित ग्राम पंचायत के सभी मतदाताओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से बहुमत के आधार पर निर्वाचित होते हैं। लगभग पांच सौ की आबादी पर एक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र Ward का गठन होता है और प्रत्येक वार्ड से एक ग्राम पंचायत सदस्य निर्वाचित होता है। एक ग्राम पंचायत में न्यूनतम 7 और अधिकतम 17 पंच निर्वाचित हो सकते हैं। सभी वार्ड सदस्य अपने बीच से ही एक उप मुखिया का बहुमत से चुनाव करते हैं। इस मतदान में मुखिया भी भाग लेते हैं। मुखिया, उपमुखिया और सभी वार्ड सदस्यों को मिलाकर ग्राम पंचायत का गठन होता है। ग्राम पंचायत का कार्यकाल प्रथम बैठक से पांच वर्ष तक का होता है।
ग्राम पंचायत की संरचना
National Panchayati Raj Day: ग्राम पंचायत की संरचना में निर्वाचित मुखिया, उप मुखिया एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के निर्वाचित सदस्य (Ward Member) सम्मिलित होते हैं। निर्वाचन में विजयी होने के उपरांत मुखिया, उप मुखिया एवं प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र के सदस्य (वार्ड सदस्य) को शपथ ग्रहण या प्रतिज्ञा लेना अनिवार्य है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में ग्राम पंचायत के सदस्यों (वार्ड सदस्य) के कुल स्थानों का 50 प्रतिशत स्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित किया जाता है। अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों का आरक्षण पंचायत में उनकी जनसंख्या के अनुपात में होता है। पिछड़े वर्ग का आरक्षण अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण के पश्चात् 20 प्रतिशत तक होता है। आरक्षित एवं अनारक्षित श्रेणी में 50 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित किया जाता है। आरक्षण का यही नियम मुखिया पद हेतु होनेवाले आरक्षण पर भी लागू है।
ग्राम पंचायत अपनी प्रथम बैठक की तिथि से 5 वर्षों की अवधि तक रहती है, उससे अधिक नहीं। ग्राम पंचायत सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण/ प्रतिज्ञा लेने की तिथि से यानी पांच वर्ष पूरा होते ही मुखिया और उपमुखिया की पदावधि समाप्त हो जाती है।
मुखिया/ वार्ड सदस्य के मृत्यु, त्याग-पत्र, अयोग्यता, पदच्युति अथवा अन्य कारणों से मुखिया का पद रिक्त हो जाने पर यथाशीघ्र उक्त पद पर राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचन कराना आवश्यक है। मुखिया एव उप मुखिया दोनों का स्थान रिक्त हो जाने पर कार्यपालक पदाधिकारी 15 दिनों के अंदर पंचायत सदस्यों की बैठक बुलाकर उप मुखिया का चुनाव कराना होता है, जिसके लिए सदस्यों को कम से कम सात दिन पहले सूचना देनी होती है। ऐसी बैठक की अध्यक्षता कार्यपालक पदाधिकारी द्वारा की जाती है, परन्तु कार्यपालक पदाधिकारी को उस चुनाव में मत देने का अधिकार नहीं है।
ग्राम पंचायत की बैठक
National Panchayati Raj Day: ग्राम पंचायत की बैठक दो माह में कम से कम एक बार ग्राम पंचायत के कार्यालय में आयोजित किया जाना अनिवार्य है। इसके लिए मुखिया जब भी उचित समझे तब सूचना देकर ग्राम पंचायत की बैठक आयोजित कर सकता है। इसके अतिरिक्त ग्राम पंचायत के एक तिहाई सदस्यों के लिखित अनुरोध पर, अनुरोध प्राप्त होने की तिथि से 15 (पन्द्रह) दिनों के अन्दर विशेष बैठक आयोजित किया जाना अनिवार्य है। ग्राम पंचायत की सामान्य और विशेष बैठक आयोजन की नोटिस में बैठक का स्थान, तिथि समय तथा बैठक का एजेण्डा स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए। ग्राम पंचायत की बैठक के लिए कार्यावली (ऐजेण्डा) मुखिया/ उप मुखिया की सहमति से पंचायत सचिव के द्वारा बनाई जाती है। हर बैठक की कार्रवाई के विवरण को उसके लिए उपलब्ध रजिस्टर में अंकित किया जाना चाहिए और बैठक में भाग लेने वालों का हस्ताक्षर होना अनिवार्य है। यह आम जनता के निरीक्षण के लिए उपलब्ध रहनी चाहिए। सामान्य बैठक की सूचना बैठक के सात दिन पूर्व तथा विशेष बैठक की सूचना तीन दिन पूर्व देना अनिवार्य है। ग्राम पंचायत की बैठक की अध्यक्षता करने का दायित्व मुखिया का है। मुखिया की अनुपस्थिति में बैठक की अध्यक्षता उपमुखिया द्वारा किया जायेगा।
ग्राम पंचायत की बैठक में कोरम (गणपूर्ति) हेतु कम-से-कम कुल सदस्यों की संख्या के आधे सदस्यों की उपस्थिति अनिर्वाय है। बगैर कोरम के ग्राम पंचायत की बैठक में लिए गए निर्णय मान्य नहीं होते हैं। कोरम की ओर ध्यान दिलाये जाने की स्थिति में एक घंटा तक प्रतीक्षा करने के उपरांत अगर बैठक स्थगित की जाती है, तो अगली बैठक की पुन: लिखित सूचना दी जाएगी। स्थगित बैठक की अगली बैठक में भी कुल सदस्य संख्या की आधी गणपूर्ति आवष्यक होगी। ग्राम पंचायत की बैठक चाहे वह सामान्य हो या विशेष या बजट पास कराना हो या अन्य कोई प्रस्ताव पारित कराना हो तो उक्त सभी बैठक में कोरम कुल सदस्य संख्या का 50 प्रतिशत होना अनिवार्य है।
ग्राम पंचायत के कार्य
National Panchayati Raj Day: ग्राम पंचायतों का मुख्य कार्य ग्रामीण विकास में सहयोग करना तथा ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम सभा में निर्णय की प्रक्रिया में आम आदमी को जोड़ना है। बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के अनुसार ग्राम पंचायतों को निम्न कार्य आवंटित किए गए हैं :-
संसाधनों के प्रबंधन व उत्पादन संबंधी कार्य, ग्रामीण व्यवस्था व निर्माण संबंधी कार्य, मानवीय क्षमता वृध्दि संबंधी कार्य
कृषि तथा कृषि विस्तार, सामाजिक और फार्म वनोद्योग,लघु वन उत्पाद, ईंधन और चारा, पशुपालन, दुग्ध उद्योग व मुर्गी पालन, मछली पालन
खादी, ग्राम तथा कुटीर उद्योग, ग्रामीण स्वच्छता एवं पर्यावरण, ग्रामीण गृह निर्माण, पेयजल व्यवस्था
सड़क, भवन, पुल, पुलिया, जलमार्ग, विद्युतीकरण एवं वितरण, गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत, जनवितरण प्रणाली
सार्वजनिक संपत्ति का रख-रखाव, बाजार तथा मेले, ग्रामीण पुस्तकालय तथा वाचनालय, खटालों, कांजी हाऊस तथा ठेला स्टैण्ड का निर्माण एवं रख-रखाव
कसाईखानों का निर्माण एवं रख-रखाव, सार्वजनिक पार्क, खेलकूद का मैदन आदि का रख-रखाव, सार्वजनिक स्थानों पर कूड़ादान की व्यवस्था, झोपड़ियों एवं शेडों का निर्माण तथा नियंत्रण
सामान्य कार्य के अधीन योजना बनाना एवं बजट तैयार करना, अतिक्रमण हटाना तथा बाढ़- सुखाड़ आदि प्राकृतिक आपदाओं के समय आम जन को सहायता प्रदान करना, गांव के अनिवार्य सांख्यिकी आंकड़ों को सुरक्षित रखना
धर्मशालाओं, छात्रावासों एवं अन्य वैसे ही संस्थानों का निर्माण एवं उसका रख-रखाव करना, शिक्षा, प्राथमिक व माधयमिक स्तर तक, वयस्क तथा अनौपचारिक शिक्षा
लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, महिला व बाल विकास, गरीबी उन्मूलन (गरीबी हटाना), कमजोर वर्गो, विशेष रूप से अनुसूचित जाति तथा जनजाति का कल्याण, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा खेलकूद को बढ़ावा देना, शारीरिक एवं मानसिक रूप से नि:शक्त व्यक्तियों के लिए सामाजिक कल्याण
उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त, समय-समय पर सरकार द्वारा जो कार्य पंचायत को सौंपे जाएं, उन्हें कार्यान्वित करना।
ग्राम पंचायत का बजट
एक ग्राम पंचायत में 1 साल में कितना पैसा आता है, यह ग्राम पंचायत की जनसंख्या, आकार, और विकास कार्यों पर निर्भर करता है। लेकिन, आम तौर पर, एक ग्राम पंचायत को हर साल कम से कम 9 लाख रुपये का बजट मिलता है। इसके अतिरिक्त, मनरेगा जैसे केंद्र सरकार के कार्यक्रमों से भी धन मिलता है, जो लगभग 12 करोड़ रुपये प्रति वर्ष हो सकता है। पंचायतें करों के माध्यम से अपने राजस्व का केवल 1 प्रतिशत अर्जित करती हैं। उनका अधिकांश राजस्व केन्द्र और राज्यों द्वारा दिए गए अनुदान से आता है। आंकड़े बताते हैं कि 80 फ़ीसदी राजस्व केन्द्र सरकार के अनुदान से आता है, जबकि 15 फ़ीसदी राज्य सरकार के अनुदान से आता है। राज्य राजस्व हिस्सेदारी और अंतर-राज्य असमानताएं इस प्रकार हैं-
अपने-अपने राज्य के राजस्व में पंचायतों की हिस्सेदारी न्यूनतम बनी हुई है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश में पंचायतों की राजस्व प्राप्तियां राज्य के स्वयं के राजस्व का मात्र 0.1 प्रतिशत है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह 2.5 प्रतिशत है, जो सभी राज्यों में सबसे अधिक है। प्रति पंचायत अर्जित औसत राजस्व के संबंध में भी राज्यों में व्यापक भिन्नताएं हैं। केरल और पश्चिम बंगाल क्रमशः 60 लाख रुपये और 57 लाख रुपये प्रति पंचायत के औसत राजस्व के साथ सबसे आगे हैं, जबकि असम, बिहार, कर्नाटक, ओडिशा, सिक्किम और तमिलनाडु में प्रति पंचायत राजस्व 30 लाख रुपये से अधिक था। आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिजोरम, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में औसत राजस्व काफी कम है, जो प्रति पंचायत 6 लाख रुपये से भी कम है।
विशेष श्रेणी राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार-2025,
24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर बिहार में विशेष श्रेणी पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। पहली बार, पंचायती राज मंत्रालय ने जलवायु कार्रवाई और आत्मनिर्भरता में पंचायतों के प्रयासों को मान्यता देने के लिए विशेष श्रेणी पुरस्कारों की शुरुआत की है। इस वर्ष का राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (NPRD) एक विशेष क्षण होगा, जब विशेष श्रेणी राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार-2025, 24 अप्रैल, 2025 को बिहार के मधुबनी जिले के लोहना उत्तर ग्राम पंचायत में आयोजित होने वाले NPRD -2025 के राष्ट्रीय समारोह में प्रदान किए जाएंगे। यह पहली बार है कि पंचायती राज मंत्रालय ने स्वयं के स्रोत से राजस्व (OSR) में वृद्धि के जरिये जलवायु कार्रवाई और आत्मनिर्भरता की प्रमुख राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में ग्राम पंचायतों के अनुकरणीय प्रयासों को प्रोत्साहित करने और मान्यता देने के लिए समर्पित विशेष श्रेणी पुरस्कारों को संस्थागत रूप दिया है। इसके अलावा, सतत विकास लक्ष्यों (LSDG) के स्थानीयकरण के साथ जुड़े पंचायतों के क्षमता निर्माण के लिए सर्वश्रेष्ठ संस्थानों के लिए पुरस्कार भी इस अवसर पर प्रदान किए जाएंगे। प्रमुख राष्ट्रीय प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में पंचायतों/संस्थाओं के उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने के लिए निम्नलिखित विशेष श्रेणी के राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार शुरू किए गए हैं:
जलवायु कार्रवाई विशेष पंचायत पुरस्कार (CASPA)-पंचायतों को जलवायु-उत्तरदायी स्थानीय सरकारों के रूप में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करना।
आत्मनिर्भर पंचायत विशेष पुरस्कार (ANPSA) – पंचायतों द्वारा स्वयं के स्रोत राजस्व में वृद्धि के जरिये आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
पंचायत क्षमता निर्माण सर्वोत्तम संस्थान पुरस्कार (PKNSSP)- पंचायती राज प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों के क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण में उत्कृष्टता को पहचानना। यह पुरस्कार मंत्रालय द्वारा 2023 में स्थापित किया गया था और पहले पुरस्कार 2024 में प्रदान किए गए थे।
राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार-2025 की विशेष श्रेणियों के पुरस्कार विजेता हैं:
जलवायु कार्रवाई विशेष पंचायत पुरस्कार (CASPA)
Rank 1: दव्वा एस ग्राम पंचायत, गोंदिया जिला, महाराष्ट्र
Rank 2: बिरदाहल्ली ग्राम पंचायत, हासन जिला, कर्नाटक
Rank 3: मोतीपुर ग्राम पंचायत, समस्तीपुर जिला, बिहार
Rank 3: गोलापुडी ग्राम पंचायत, कृष्णा जिला, आंध्र प्रदेश
पंचायत क्षमता निर्माण सर्वोत्तम संस्थान पुरस्कार (PKNSSP)
Rank 1: केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान (केआईएलए), केरल
Rank 2: राज्य ग्रामीण विकास और पंचायती राज संस्थान, ओडिशा
Rank 3: राज्य पंचायत एवं ग्रामीण विकास संस्थान, असम
प्रत्येक पुरस्कार में क्रमशः 1 करोड़ रुपये (रैंक 1), 75 लाख रुपये (रैंक 2) और 50 लाख रुपये (रैंक 3) की वित्तीय प्रोत्साहन राशि शामिल है। पुरस्कार विजेताओं को विशेष रूप से डिज़ाइन की गई ट्रॉफी और प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएंगे। गौरतलब है कि 6 पुरस्कार विजेता ग्राम पंचायतों में से 3 – बिहार (मोतीपुर ग्राम पंचायत), महाराष्ट्र (दव्वा एस ग्राम पंचायत) और ओडिशा (हटबद्रा ग्राम पंचायत) – की मुखिया महिला सरपंच हैं।
Security forces battled Maoist insurgents in Bijapur district where gun battles killed a minimum of three Maoist combatants. The anti-Naxal campaign launched its operation...