आखिरकार 30 साल बाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा आ ही गया, इस मसौदे में नेशनल एजुकेशन कमिशन बनाने और मंत्रालय का नाम शिक्षा मंत्रालय करने की बात कही ही गई है। साथ ही इस मसौदे के मुताबिक उच्च शिक्षा के लिए सिर्फ एक रेगुलेटर बनेगा और मानव संसाधन मंत्रालय का नया नाम शिक्षा मंत्रालय होगा। एक राष्ट्रीय शिक्षा आयोग भी बनाया जाएगा। शिक्षा का अधिकार सिनियर सेंकेंडरी तक लागू रहेगा।
इसके अलावा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ लिबरल ऑर्ट्स भी बनाया जाएगा। लिबरल आर्ट्स के लिए हर जिले में संस्थान खुलेंगे। नालंदा, तक्षशिला मिशन के तहत उच्च शिक्षा मिलेगी और नेशनल रिसर्च फाउंडेशन का भी गठन होगा। नेशनल रिसर्च फाउंडेशन से उच्च शिक्षा में क्वालिटी रिसर्च पर फोकस होगा। इस ड्राफ्ट के मुताबिक नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम भी बनेगा। नेशनल एजुकेशन टेक्नोलॉजी फोरम से शिक्षा में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल बढ़ेगा। मसौदे के मुताबिक एनसीईआरटी शिक्षा का पाठ्यक्रम तैयार करेगा।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदा आते ही विवाद शुरू हो गया, शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में दक्षिण के राज्यों में तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने पर बवाल हो गया, इस विवाद के बाद अब सरकार की ओर से इसमें बदलाव किया गया है, अब सरकार की ओर से ड्राफ्ट शिक्षा नीति में बदलाव किया गया है, जिसके तहत हिंदी के अनिवार्य होने वाली शर्त हटा दी गई है।
सोमवार सुबह भारत सरकार ने अपनी शिक्षा नीति के ड्राफ्ट में बदलाव किया, पहले तीन भाषा फॉर्मूले में अपनी मूल भाषा, स्कूली भाषा के अलावा तीसरी लैंग्वेज के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने की बात कही थी, लेकिन सोमवार को जो नया ड्राफ्ट आया है, उसमें फ्लेक्सिबल शब्द का इस्तेमाल किया गया है, यानी अब स्कूली भाषा और मातृ भाषा के अलावा जो तीसरी भाषा का चुनाव होगा, वह स्टूडेंट अपनी मर्जी के अनुसार कर पाएंगे, संशोधित मसौदे के अनुसार अब कोई भी तीसरी भाषा किसी पर थोपी नहीं जा सकती है, इसमें छात्र अपने स्कूल, टीचर की सहायता ले सकता है, यानी स्कूल की ओर से जिस भाषा में आसानी से मदद की जा सकती है छात्र उसी भाषा पर आगे बढ़ सकता है।
भाषा का ये विवाद पूरी तरह से राजनीतिक रंग अख्तियार कर लिया, दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टियों ने केंद्र सरकार पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया। द्रमुक के राज्यसभा सांसद तिरुचि सिवा और मक्कल नीधि मैयम नेता कमल हासन ने इसे लेकर विरोध जाहिर किया है। तिरूचि सिवा ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि हिंदी को तमिलनाडु में लागू करने की कोशिश कर केंद्र सरकार आग से खेलने का काम कर रही है।
सिवा ने कहा कि हिंदी भाषा को तमिलनाडु पर थोपने की कोशिश को यहां के लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे। वहीं, कमल ने कहा कि मैंने कई हिंदी फिल्मों में अभिनय किया है, मेरी राय में हिंदी भाषा को किसी पर भी थोपा नहीं जाना चाहिए। विवाद बढ़ता देख सरकार ने मसौदे में संशोधन किया। बहरहाल भारत का शिक्षा तंत्र 15 लाख स्कूलों, 80 लाख से ज्यादा शिक्षकों और इन स्कूलों में 25 करोड़ से ज्यादा बच्चों के साथ दुनिया में सबसे बड़ा शिक्षा तंत्र है।
भारत की 12वीं योजना में यह अनुशंसा की गई कि अध्यापकों के सेवापूर्व और सेवाकालीन पेशेवर विकास प्रशिक्षण की खराब गुणवत्ता की मुख्य वजह उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षक प्रशिक्षकों का अभाव है ऐसे में शिक्षा नीति में शिक्षकों के प्रशिक्षण और स्कूलों के गुणवत्ता पर भी सिर्फ कागजों पर नही बल्कि पूरी शिक्षा व्यवस्था पर ध्यान देने की जरूरत है।