ऊपरवाले के बाद अगर हम किसी को भगवान का दर्जा देतें है तो वो डॉक्टर्स हैं। हमारे जन्म से लेकर मरण तक हम डॉक्टर्स पर निर्भर होते है, भगवान का दूसरा रूप माने जाने वाले डॉक्टर्स को आज हम सलाम कर रहें है, आज हम उनके सामने नतमस्तक हैं, क्योंकि आज का दिन है डॉक्टरों का, आज का दिन है उस भगवान रूपी इंसान का जिसकी महत्तवता इस कोरोनाकाल में हर कोई जानने लगा है। आज डॉक्टर्स डे (Doctors Day) है। कोरोना काल में डॉक्टर्स डे बेहद ही ख़ास हो जाता है वो इसलिए भी क्योंकि जहां पूरा देश कोरोना की महामारी से जूझ रहा है, जहां हर कोई मौत के खौफ से भाग रहा है, जहां पूरे देश में सब कुछ ठप्प है, मंदिर, मस्जिद बंद है। इबादद बंद है, पूजा बंद है। वही बिना अपनी जिंदगी और बिना अपने परिवार के बारें में सोचे एक डॉक्टर्स ही हैं जो देश के हर नागरिक की रक्षा कर रहें है, देश के हर नागरिक के सेहत की रक्षा कर रहें हैं।
कोरोना काल में डॉक्टर्स की कमी से जूझ रहे हैं मरीज
देश में कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहें हैं जिनसे निबटने की पूरी ज़िम्मेदारी डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स के कंधों पर है। मगर भारत जैसे विकासशील देश में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा बेहद कमज़ोर है। सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की तादाद बेहद कम है तो निजी अस्पतालों का महंगा इलाज ग़रीब और निम्न मध्यवर्ग के बूते के बाहर है। ऐसे में देशवासियों में बीमारियां घर कर रहीं है। यहां सवाल सिर्फ डॉक्टरों की कमी का है नहीं, बल्कि क्वालिटी डॉक्टरों की कमी तो और भी है। साल 2016 में इलाज न कराने की वजह से 8 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो गई, जबकि खराब इलाज कराने की वजह से करीब 16 लाख लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। मौतों का आंकड़ा देख बड़ी आसानी से ये समझा जा सकता है कि ये समस्या कितनी भयावह है क्योंकि इतनी मौत अबतक कोरोना से भी नहीं हुई है।
अस्पतालों में लगने वाली लंबी कतारें, मरीजों की भीड़ और अस्पतालों की कमी, अभी देश में स्वास्थ सेवाओं के नाम पर ऐसी ही कुछ छवि उभरती है। आंकड़ों की मानें तो अभी देश को 4.3 लाख डॉक्टरों की और जरूरत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक एक हज़ार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन इस पैमाने पर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कहीं नहीं टिकती। WHO के अनुसार देश में डॉक्टर मरीज के 1: 1000 अनुपात की जरूरत है जबकि अभी यह अनुपात 1: 1499 है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आंकड़ों के अनुसार देश में 1.3 अरब लोगों की आबादी का इलाज करने के लिए महज 10 लाख एलोपैथिक डॉक्टर हैं। इनमें से भी सिर्फ 1.1 लाख डॉक्टर ही हैं, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करते हैं। इस हिसाब से ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 90 करोड़ आबादी स्वास्थ्य देखभाल के लिए इन थोड़े से डॉक्टरों पर ही निर्भर है।
डॉक्टर्स के साथ अस्पतालों की भी भारी कमी
भारत में न तो पर्याप्त अस्पताल हैं, न डॉक्टर, न नर्स और न ही सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मचारी। स्वास्थ्य देखभाल की क्वालिटी और उपलब्धता में बड़ा अंतर है। यह अंतर केवल राज्यों के बीच नहीं है, बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी है। इसी स्थिति के कारण नीम-हकीम खुद को डॉक्टर की तरह पेश कर मौके का फायदा उठा रहे हैं। डॉक्टरों की गैरमौजूदगी में लोगों के पास इलाज के लिए ऐसे फर्जी डॉक्टरों के पास जाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं है।
देश में 57% डॉक्टर झोलाछाप
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 57 फीसदी एलोपैथिक डॉक्टरों के पास मेडिकल योग्यता नहीं है। उनमें से एक तिहाई डॉक्टर ऐसे हैं, जो केवल सेकेंडरी स्कूल तक ही शिक्षित हैं और दूसरों का इलाज कर रहे हैं। यह आम धारणा है कि बिना डिग्री के एलोपैथी की प्रैक्टिस करने वाले को फेक या झोलाछाप कहा जाता है। ऐसे तथाकथित डॉक्टर्स क्वालिफाइड डॉक्टरों की कमी का फायदा उठाकर मरीजों का इलाज करते है और मोटी कमाई करते है। कई ऐसे मामले देखें गए है जहां झोलाछाप डॉक्टर मरीजों के जान के साथ खिलवाड़ भी करते है और अच्छे खासे लोगों को जिंदगी भर दर्द दें जातें है।
मेडिकल कॉलेज ही पर्याप्त नहीं कैसे बनेंगे डॉक्टर
आजादी के वक्त देश में कुल 23 मेडिकल कॉलेज थे, जिनकी संख्या साल 2014 में 398 हो गई। रिपोर्ट के मुताबिक, डॉक्टरों की कमी पूरा करने के लिए साल 2014 तक देश में 398 नहीं बल्कि 1000 मेडिकल कॉलेज होने चाहिए थे। साल 2015 में आई संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर देश में हर साल 100 मेडिकल कॉलेज खोले जाए, तो भी डब्ल्यूएचओ के मानक यानि एक हज़ार लोगों पर एक डॉक्टर को पूरा करने में साल 2029 तक का वक्त लग जाएगा। और ये भी तभी संभव है जब इस दौरान बनने वाले डॉक्टर बेहतर मौकों के लिए विदेशों में नौकरी न करें।
डॉक्टरों के मामले में गांवों की हालत शहरों से भी खराब
देश में फिलहाल जितने भी डॉक्टर हैं उनमें से ज्यादातर शहरों में काम करते हैं। देश की लगभग 75 फीसदी डिस्पेंसरी, 60 फीसदी हॉस्पिटल और 80 फीसदी डॉक्टर शहरों में हैं। जबकि, देश की 70 फीसदी के करीब जनसंख्या गांवों में रहती है। इससे ये समझना मुश्किल नहीं है कि गांव के लोगों को कैसी स्वास्थ्य सुविधाएं मिलती होंगी। झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा है।
देश छोड़ने की वजह से भी है डॉक्टरों की कमी
देश में डॉक्टरों की कमी की एक प्रमुख वजह उनका विदेश जाना भी है। देश के ज्यादातर डॉक्टर अपनी प्रैक्टिस गांवों में या छोटे शहरों में नहीं करना चाहते हैं। इसीलिए वे डिग्री पूरी करके या तो विदेश में प्रैक्टिस करने चले जाते हैं या फिर वहां जाकर हायर एजुकेशन पूरी करते हैं। ज्यादातर डॉक्टर ज्यादा पैसे बनाने के लिए देश में प्रैक्टिस नहीं करना चाहते हैं। विदेशों में उनकी अच्छी इनकम होती है इसलिए वो वहां प्रैक्टिस करना ज्यादा पसंद करते हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं पर भारत करता है कम खर्च
स्वास्थ्य सेवा पर भारत अपनी कुल जीडीपी का सिर्फ 1.3 फीसदी हिस्सा खर्च करता है तो देश अपनी जीडीपी का बेहद कम हिस्सा ख़र्च करता है जबकि कई दूसरे देश अपने हेल्थकेयर सिस्टम को चाकचौबंद रखने के लिए अपनी जीडीपी का 6 फीसदी तक खर्च करते हैं। ये भी एक कारण है भारत देश में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी का।
मेडिकल की पढ़ाई बहुत है खर्चीली
देश में हर साल करीब प्राइवेट कॉलेजों से 55,000 डॉक्टरों को डिग्री मिलती है। ज्यादातर कॉलेज डोनेशन के नाम पर ज्यादा फीस की मांग करते हैं। कुछ कॉलेजों में तो डॉक्टर की डिग्री पाने के लिए 2-3 करोड़ रुपये फीस देनी पड़ती है। इसी फीस की भरपाई करने के लिए डॉक्टर विदेशों का रूख करते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर गरीब डॉक्टर बनने के सपने संजोये तो ये कैसे संभव हो पायेगा।
डॉक्टरों की सुरक्षा सबसे बड़ा सवाल
अक्सर हम देखते हैं कि डॉक्टर्स हड़ताल पर चले जाते है, हड़ताल पर जाने का कारण हमेशा एक ही होता है वो है डॉक्टरों की सुरक्षा, डॉक्टर्स मरीज को बचाने की हर संभव कोशिश करते है लेकिन अगर किसी पेशेंट की मौत हो जाती है तो डॉक्टर्स की लापरवाही बताकर मरीज के तीमारदार डॉक्टरों पर हमला बोल देतें है। कोरोना के इस संकटकाल में कई ऐसे ख़बरें आयी जहां मेडिकल और पैरामेडिकल स्टाफ पर हमले हुए। यहां तक कि देश के कई हिस्सों से खबर आ रही है कि स्वास्थ्यकर्मियों के लिए सुरक्षा किट जैसे मास्क, दस्ताने, सूट इत्यादि की कमी हो गई है जिसकी वजह से वे इनके अभाव में ही मरीजों और संदिग्ध मरीजों से संपर्क में आने पर मजबूर हैं। कई जगह इस वजह से खुद डॉक्टर ही संक्रमण का शिकार हो गए हैं।डॉक्टर अभी इस कमी से जूझ ही रहे थे कि उनके सामने एक नया संकट आ गया, देश भर में किराये के मकानों में रहने वाले डॉक्टरों, नर्सों और दूसरे स्वास्थ्यकर्मियों को वायरस के संवाहक होने के डर से उनके घरों से निकाला भी गया।
सुरक्षा के लिए मोदी सरकार लाई अध्यादेश
कोरोना वायरस से लोगों को बचाने के लिए स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस और अन्य लोग अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं। कई जगहों पर डॉक्टरों और पुलिस की टीम पर हमले भी हुए। अब केंद्र सरकार स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा के लिए अध्यादेश लाई है, जिसके मुताबिक हमला करने वालों को सात साल की जेल हो सकती है। सरकार के इस कदम का डॉक्टरों और उनके परिवार ने तहेदिल से स्वागत किया है। डॉक्टरों ने उम्मीद जताई है कि इससे उन्हें सुरक्षा मिलेगी और वे बिना किसी डर के काम कर सकेंगे।