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May 23, 2025

नालंदा विश्वविद्यालय: भारत में खुला था दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय

Nalanda University: नालंदा को तक्षशिला के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। राजगीर की पहाड़ियों के पास स्थित, पुनर्जीवित नालंदा विश्वविद्यालय कहता है- “सीखना यहीं होना है।” इस बौद्धिक परिदृश्य में होने का अनुभव प्रकृति और मनुष्य के बीच और जीवन और सीखने के बीच सहज सह-अस्तित्व के साथ सशक्त बनाता है। यह क्षेत्र भगवान बुद्ध, भगवान महावीर जैसे आध्यात्मिक देवताओं द्वारा प्रदान की गई सकारात्मकता से गुंजायमान है, जिन्होंने इस क्षेत्र में ध्यान किया और नागार्जुन, आर्यभट्ट, धर्मकीर्ति जैसे महान गुरुओं द्वारा विकसित विद्वत्तापूर्ण परंपराओं से, जिन्होंने प्राचीन नालंदा में प्रवचन दिए। प्राचीन मगध की विशेषता एक बौद्धिक उथल-पुथल थी, जो मानवता के लिए शायद ही कभी जानी जाती हो। कई प्रवचनों को समझने और ज्ञान को उसकी संपूर्णता में ग्रहण करने का अवसर ही नालंदा शिक्षा को सभी साधकों के लिए अद्वितीय और आकर्षक बनाता है।

नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास

भारत के कॉलेज और विश्वविद्यालय आज भले ही विश्‍व के टॉप शैक्षणिक संस्‍थापनों में शामिल न हो, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब यह देश विश्व में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। Oxford, Cambridge से भी 600 साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय बना था। ‘ना, आलम और दा’ शब्दों से मिलकर नालंदा बना है, जिसका मतलब है ऐसा उपहार, जिसकी कोई सीमा नहीं है। भारत में ही दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय खुला था, जिसे हम नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University) के नाम से जानते हैं। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 450 ई. में हुई थी। नालंदा विश्वविद्यालय प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था। 12वीं शताब्दी ई. के अंत तक 800 से अधिक वर्षों तक फला-फूला नालंदा विश्वविद्यालय! ऐसा माना जाता है कि इसमें 2,000 शिक्षक और 10,000 छात्र थे। नालंदा ने चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया जैसे दूर-दराज के स्थानों से विद्वानों को अपने परिसर में आकर्षित किया था। उन विद्वानों ने नालंदा के माहौल, वास्तुकला और शिक्षा के साथ-साथ नालंदा के शिक्षकों के गहन ज्ञान के बारे में भी अभिलेख छोड़े हैं। सबसे विस्तृत विवरण चीनी विद्वानों से प्राप्त हुए हैं और इनमें से सबसे प्रसिद्ध ज़ुआन ज़ांग हैं, जो कई सौ शास्त्रों को अपने साथ ले गए थे जिनका बाद में चीनी भाषा में अनुवाद किया गया था। इतिहासकारों के मुताबिक, सातवीं सदी में चीनी भिक्षु ह्वेनसांग ने भी यहां से शिक्षा ग्रहण की थी। 630 ईस्वी में भारत आए त्सांग 645 ईस्वी में चीन लौटे। वे अपने साथ नालंदा से 657 बौद्ध धर्मग्रंथों के लेकर गए थे। ह्वेन सांग को दुनिया के सबसे प्रभावशाली बौद्ध विद्वानों में से एक माना जाता है। इन ग्रंथों में से बहुतों का उन्होंने चीनी भाषा में अनुवाद किया। इसके अलावा उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी जिसमें नालंदा विश्वविद्यालय के अपने अनुभवों को भी लिखा है। उनके जापानी शिष्य, दोशो ने बाद में उनके लिखे ग्रंथों को जापानी में अनुदित करके बौद्ध धर्म का जापान में प्रसार किया, जहां यह एक मुख्य धर्म बना। यही वजह है कि ह्वेन त्सांग को बौद्ध धर्म को पूर्व के देशों में पहुंचाने वाले बौद्ध भिक्षु के रूप में याद किया जाता है।
ह्वेन त्सांग ने नालंदा का जो विवरण लिखा है, उसमें विशाल स्तूप का उल्लेख मिलता है। यह स्तूप- भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में से एक की स्मृति में बनाया गया एक विशाल स्मारक है। ह्वेनसांग ने अपनी किताबों में नालंदा विश्वविद्यालय की भव्यता के बारे में लिखा है। तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने एक बार कहा था, “हम लोगों को जो भी बौद्ध ज्ञान मिला, वो सब नालंदा से आया था।” बौद्ध के दो सबसे अहम केंद्रों में से यह एक था। यह प्राचीन भारत के ज्ञान और बुद्धिमत्ता के प्रसार के योगदान को दर्शाता है।

ख़िलजी के अतिक्रमण का शिकार बना नालंदा विश्वविद्यालय

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना गुप्त काल के दौरान पांचवीं सदी में कुमारगुप्त प्रथम ने किया था। इतिहास के अनुसार, सन् 1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद इसे नेस्तनाबूत कर दिया गया था। इतिहासकारों के अनुसार अफगानिस्तान में जन्मे तुर्की शासक बख्तियार खिलजी ने 1200 ईस्वी के आसपास बंगाल और बिहार पर अपना प्रभुत्व जमाने के लिए खूब उत्पात मचाया। खिलजी की सेना ने आक्रमण कर नालंदा विश्वविद्यालय को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। उसने कई बौद्ध भिक्षुओं को मार गिराया और विश्वविद्यालय परिसर को आग के हवाले कर दिया। कुछ इतिहासकार बताते हैं कि खिलजी और उसके सैनिकों को लगता था कि इसकी शिक्षाएं इस्लाम के लिए चुनौती हैं। हालांकि, कुछ बुद्धिजीवी इस मान्यता को खारिज करते हैं। यह भी कहा जाता है कि एक बार खिलजी बहुत अधिक बीमार था। उसका इलाज कई तरह से किया गया, जिसे लेकर कई तरह की कहानियां बताई जाती हैं। कहा जाता है कि खिलजी अपने इलाज से खुश नहीं था और गुस्से में उसने नालंदा विश्वविद्यालय को आग के हवाले कर दिया। कहा जाता है कि प्राचीन नालंदा महाविहार में इतनी पुस्तकें थीं कि आक्रमण के बाद तीन महीने तक उनमें आग की लपटें उठती रहीं। जब परिसर में आक्रमणकारियों ने आग लगाई तो अपनी जान बचाने में कामयाब कुछ बौद्ध कुछ हस्तलिखित पांडुलिपियां बचा पाए। उन्हें अब अमेरिका के Los Angeles County Museum Of Art और तिब्बत के Yarlung Museum में देखा जा सकता है। अब प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के केवल खंडहर शेष रह गए हैं।

अवशेष बताते हैं विश्वविद्यालय का भव्य इतिहास

प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा परिसर एक विशाल दीवार से घिरा हुआ था, जिसमें प्रवेश के लिए एक मुख्य द्वार था। उत्तर से दक्षिण की ओर मठों की कतार थी और उनके सामने अनेक भव्य स्तूप और मंदिर थे। मंदिरों में बुद्ध भगवान की सुंदर मूर्तियां स्थापित थीं, जो अब नष्ट हो चुकी हैं। दीवारों के अवशेष आज भी इतने चौड़े हैं कि इनके ऊपर ट्रक भी चलाया जा सकता है। पटना से 90 किलोमीटर और बिहार शरीफ से करीब 12 किलोमीटर दूर दक्षिण में आज भी इस विश्व प्रसिद्ध प्राचीन बौद्ध विश्वविद्यालय के खंडहर स्थित है। नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में कुछ रोचक तथ्य हैं जो आपको जान लेने चाहिए।
नालंदा विश्वविद्यालय स्थापत्य कला का एक अद्भुत नमूना है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस विश्वविद्यालय में 300 कमरे 7 बड़े-बड़े कक्ष और अध्ययन के लिए 9 मंजिला एक विशाल पुस्तकालय था। जिसमें, एक समय 3 लाख से भी अधिक किताबें मौजूद होती थीं।
नालंदा को तक्षशिला के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। वहीं, आवासीय परिसर के तौर पर यह पहला विश्वविद्यालय है, यह 800 साल तक अस्तित्व में रहा।
इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों का चयन मेरिट के आधार पर होता था और यहां छात्रों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी। इसके साथ उनका रहना और खाना भी पूरी तरह निःशुल्क होता था।
नालंदा विश्वविद्यालय में एक समय में 10 हजार से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे और 2700 से ज्यादा अध्यापक उन्‍हें शिक्षा देते थे।
नालंदा में सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ईरान, ग्रीस, मंगोलिया समेत कई दूसरे देशो के छात्र भी पढ़ाई के लिए आते थे।
नालंदा की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक सम्राट कुमारगुप्त ने की थी। इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। नालंदा में खुदाई के दौरान ऐसी कई मुद्राएं भी मिली हैं, जिससे इस बात की पुष्टि भी होती है।
इस विश्वविद्यालय की स्थापना का उद्देश्य ध्यान और आध्यात्म के लिए एक स्थान बनाने से था। ऐसा भी कहा जाता है कि गौतम बुद्ध ने कई बार यहां की यात्रा की और यहां पर रुक कर ध्‍यान लगाया।
इतिहास के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय में एक ‘धर्म गूंज’ नाम की एक लाइब्रेरी थी। इसका मतलब ‘सत्य का पर्वत’ था। लाइब्रेरी के 9 मंजिलों में तीन भाग थे, जिनके नाम ‘रत्नरंजक’, ‘रत्नोदधि’, और ‘रत्नसागर’ थे।
नालंदा में छात्रों को लिटरेचर, एस्ट्रोलॉजी, साइकोलॉजी, लॉ, एस्ट्रोनॉमी, साइंस, वारफेयर, इतिहास, मैथ्स, आर्किटेक्टर, लैंग्‍वेज साइंस, इकोनॉमिक, मेडिसिन समेत कई विषयों को पढ़ाया जाता था।
इस विश्वविद्यालय में कई महान विद्वानों ने पढ़ाई की थी, जिसमें मुख्य रूप से हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबन्धु, धर्मकीर्ति, आर्यवेद, नागार्जुन का नाम शामिल हैं।
नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास चीन के हेनसांग और इत्सिंग ने खोजा था। ये दोनों 7वीं शताब्दी में भारत आए थे। इन दोनों ने चीन लौटने के बाद नालंदा के बारे में विस्‍तार से लिखा और इसे विश्‍व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय बताया।
 नालंदा विश्वविद्यालय की एक खास बात यह थी कि, यहां लोकतान्त्रिक प्रणाली से सभी कार्य होता था। कोई भी फैसला सभी की सहमति से लिया जाता था। मतलब, सन्यासियों के साथ टीचर्स और स्टूडेंट्स भी अपनी राय देते थे।
खुदाई के दौरान यहां 1.5 लाख वर्ग फीट में नालंदा यूनिवर्सिटी के अवशेष मिले हैं। ऐसा माना जाता है कि ये सिर्फ यूनिवर्सिटी का 10 प्रतिशत हिस्सा ही है।
नालंदा शब्द संस्कृत के तीन शब्द ना +आलम +दा के संधि-विच्छेद से बना है। इसका अर्थ ‘ज्ञान रूपी उपहार पर कोई प्रतिबंध न रखना’ से है।
नालंदा की तर्ज पर नई नालंदा यूनिवर्सिटी बिहार के राजगीर में बनाई गई है। इसे 25 नवंबर, 2010 को स्थापित किया गया।

नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार

मार्च 2006 में, बिहार राज्य विधानसभा के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए, भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार का प्रस्ताव रखा था। प्राचीन नालंदा की पुनर्स्थापना की मांग करते हुए सहमत विचार एक साथ आए: सिंगापुर सरकार से; जनवरी 2007 में फिलीपींस में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) के सोलह सदस्य राज्यों के नेताओं से; और चौथे EA शिखर सम्मेलन में, अक्टूबर 2009 में थाईलैंड में। भारत की संसद ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2010 पारित किया और सितंबर 2014 में छात्रों के पहले बैच का नामांकन हुआ। मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार की राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण स्थान पर नालंदा विश्वविद्यालय परिसर के लिए 455 एकड़ जमीन आवंटित करने में देर नहीं लगाई। बी.वी. दोषी ने प्राचीन नालंदा के वास्तु को दर्शाते हुए पर्यावरण के अनुकूल वास्तुकला का डिज़ाइन तैयार किया, साथ ही इसमें विश्व मानकों से मेल खाने वाली सभी आधुनिक सुविधाएं भी शामिल की गईं। यह एक बड़ा कार्बन फुटप्रिंट-मुक्त नेट-ज़ीरो कैंपस है, जो कई एकड़ हरियाली और 100 एकड़ जल-निकायों में फैला हुआ है, जो वास्तव में सीखने के लिए एक निवास स्थान है।

पीएम मोदी ने किया नए कैंपस का उद्घाटन

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जून 2024 को नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। यह कैंपस प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों से करीब 20 किलोमीटर दूर स्थित है।
करीब 455 एकड़ के दायरे में फैला यह कैंपस विश्व का सबसे बड़ा नेट जीरो ग्रीन कैंपस माना जाता है। इसकी इमारतें कुछ इस तकनीक से बनाई गई हैं, जो गर्मी में ठंडी और ठंड के दिनों में गर्म बनी रहती हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस में 1 हजार 750 करोड़ रुपये की धनराशि से नए भवनों और अन्य सुविधाओं का निर्माण कराया गया। नालंदा यूनिवर्सिटी की दो एकेडमिक बिल्डिंग्स हैं। इनमें 40 क्लासरूम्स बनाए गए हैं और 300 सीटों वाला एक एक भव्य आडिटोरियम बनाया गया है।
नालंदा यूनिवर्सिटी के नए कैंपस में विशाल लाइब्रेरी, खुद का पावर प्लांट भी है।इस यूनिवर्सिटी में 26 विभिन्न देशों के विद्यार्थी स्टडी कर रहे हैं। पोस्ट ग्रेजुएशन, डॉक्टरेट रिसर्च कोर्स, शॉर्ट सर्टिफिकेट कोर्स, इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए 137 स्कॉलरशिप खास विशेषता है।

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