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सवर्ण आरक्षण को लेकर नरेंद्र मोदी का मास्टरस्ट्रोक, आम चुनाव का ‘गेम चेंजर’ फैसला

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आरक्षण को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार का ये मास्टरस्ट्रोक राजनीतिक गेम चेंजर है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की चुनावी हार सरकार की आखें खोलने का काम कर गई। एससी, एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के बाद सवर्ण समाज में सरकार के प्रति नाराजगी साफ तौर पर देखी गई। सवर्ण समाज के लोगों ने इस नाराजगी को एक दिन के लिए भारत बंद का आव्हान करके जताया भी। भारत बंद का असर हिंदी भाषी राज्यों में काफी हद तक दिखा। इसके बाद भी सरकार इसे नजरअंदाज करके दलितों की तरफ ही झुकती गई। 2014 के लोकसभा चुनाव में 54 प्रतिशत सवर्ण समाज ने बीजेपी को वोट किया जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जीत की राह आसान हो गई। बीजेपी दलितों को साधने के चक्कर में अपने मूल वोटरों को भूल गई। जिसके बाद सवर्ण समाज में सरकार के खिलाफ गुस्सा दिखा।
इसके बाद भी सरकार ने इस पर कोई अमल नहीं किया। इसी दौरान नोटा के लिए लोगों ने वोट करने का निर्णय लिया। सरकार को इस चेतावनी का कोई असर नहीं दिखा। इसके बाद जब सरकार की आंख खुली तो पता चला की तीन बड़े हिंदी भाषी राज्य सरकार के हाथ से निकल गए हैं। मध्यप्रदेश और राजस्थान में तो 15 साल बाद बीजेपी का किला ढ़ह गया। प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में भी गिरावट आने लगी। सरकार के नोटबंदी और जीएसटी तक के बड़े फैसलों पर भी पीएम की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं दिखी। इसके बाद भी उत्तर प्रदेश में प्रचंड़ बहुमत की सरकार ने दिखा दिया कि जनता ने इसे स्वीकार कर लिया है। इसके बाद जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटा गया तो सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बनकर दिखी। इसका नतीजा तीनों राज्यों में हार के रुप में सामने आया। फिलहाल सरकार के इस फैसले को 2019 के लिए राजनीतिक फायदे के लिए लिया गया फैसला बताया जा रहा है।
मोदी के इस मास्टरस्ट्रोक का राजनीतिक कितना फायदा होगा ये जानने के लिए इतिहास के पन्नों को खंगालते है। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब साल 1990 में ओबीसी के लिए आरक्षण की नीति लागू की थी तब उनके इस क़दम को मास्टरस्ट्रोक कहा गया था, क्योंकि तभी भी कोई राजनीतिक दल उनके इस क़दम का खुलकर विरोध नहीं कर पाया था, साथ ही वीपी सिंह के नेतृत्व वाली सरकार भी आरक्षण की गेम खेला था लेकिन महज़ एक साल ही सरकार में टिक पाई थी, उन्हें इस क़दम का कोई बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाया था। मोदी का ये कदम भी मास्टर स्ट्रोक ही है क्योंकि विपक्ष का कोई भी दल इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा लेकिन आलोचना जमकर कर रहा है। बहरहाल देश हमेशा से ही आरक्षण की बेड़ियों में जकड़ा रहा है, वोट बैंक की पॉलिटिक्स देश और समाज दोनों को खोखला बना रही है। कभी जातिगत राजनीति तो कभी आरक्षण की राजनीति, ऐसे में जनता को समझना पड़ेगा कि ये राजनेता देश की जनता की जनता का हित देख रहे है या निजी स्वार्थ।