थैलेसीमिया (Thalassemia) बीमारी से पीड़ित 13 साल के वेदांत ठाकरे की मदद के लिए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आगे आये है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Maharashtra Deputy CM Devendra Fadnavis) की मदद से वेदांत ठाकरे ने लाइलाज बीमारी थैलेसीमिया को मात दी है। अब वेदांत बिलकुल ठीक है। वेदांत के माता-पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। ऐसे में वेदांत का इलाज करवा पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। वेदांत का परिवार कर्जत (रायगढ़) के दूरदराज इलाके में रहता है और वेदांत के पिता की माली हालत को देखते हुए कुछ महीने पहले एक बीजेपी कार्यकर्ता के माध्यम से मदद की गुहार लगाने के लिए उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से संपर्क किया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तुरंत अपने कार्यालय को मदद के निर्देश दिए और मुंबई के नारायणा अस्पताल में वेदांत का इलाज शुरू हुआ।
देवेंद्र फडणवीस की मदद से वेदांत का हुआ Bone Marrow Transplant
पहले वेदांत को हर 21 दिन में खून चढाने की जरुरत पड़ती थी लेकिन सफल बोन मेरो ट्रांसप्लांट होने के बाद अब वेदांत पूरी तरह से ठीक हो गया है। फिलहाल वेदांत और उसके माता पिता बहुत खुश है और Devendra Fadnavis से मुलाकात कर इलाज के लिए शुक्रिया अदा किया। The CSR Journal से ख़ास बातचीत करते हुए Devendra Fadnavis ने कहा कि “बहुत कम लोग होते हैं जो हालात पर काबू पाते हैं और बिना थके लड़ते हैं। उनमें से एक है वेदांत है। इस बीमारी का इलाज एक कठिन परीक्षा की तरह है लेकिन वेदांत बहादुरी से आगे बढ़ता गया और आज थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी को मात दे दिया। देवेंद्र फडणवीस कहते है कि मैं इस कठिन यात्रा में वेदांत और उनके परिवार का समर्थन करने में सक्षम होने के लिए भाग्यशाली महसूस करता हूं”।
थैलेसीमिया का सफल इलाज के बाद वेदांत ने देवेंद्र फडणवीस से की मुलाकात
थैलेसीमिया मरीजों को हफ्ते में खून चढ़ाया जाता है ताकि हीमोग्लोबिन बनती रहे। भारत में पूरी दुनिया में थैलेसीमिया के मरीज (Thalassemia Patients) सबसे ज्यादा हैं। यहां तक कि इसे थैलेसीमिया कैपिटल कहा जाता है। हर साल 10 हजार से ज्यादा शिशु इस बीमारी के गंभीर रूप के साथ जन्म लेते हैं। आंकड़ों के अनुसार, हमारे देश में थैलेसीमिया के 3.5 करोड़ से अधिक वाहक हैं। ऐसा अनुमान है कि हर महीने लगभग 1 लाख मरीज ब्लड ट्रांसफ्यूजन से गुजरते हैं और केवल उन्हीं के इलाज के लिए 2 लाख यूनिट से भी ज्यादा खून की जरूरत होती है। इन हालातों में सुधार के लिए सरकारी सुविधाएं बहुत कम हैं। यही वजह है कि इलाज पर 90% से ज्यादा खर्च मरीज ही करते हैं और हर मरीज अनुमानतः हर साल 1 लाख रुपए इलाज पर खर्च करता है। थैलेसीमिया का परमानेंट इलाज महज बोन मेरो ट्रांसप्लांट है Permanent Cure for Thalassemia is Bone Marrow Transplant or BMT। एक बार बोन मेरो ट्रांसप्लांट हो जाता है तो ये लाइलाज बीमारी हमेशा के लिए ठीक हो जाता है।
थैलेसीमिया रोकथाम के लिए सीएसआर पहल
Thalassemia मरीजों के लिए कई एनजीओ और कॉर्पोरेट्स काम करते है। कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (CSR) के तहत बड़े पैमाने पर थैलेसीमिया मरीजों के लिए थैलेसीमिया बीमारी रोकथाम कार्यक्रम चलाया जा रहा है। कोल इंडिया की 12 वर्ष से कम उम्र के थैलीसीमिया से पीड़ित वंचित तबके के मरीजों के इलाज के लिए CSR से मदद कर रही है। कोल इंडिया के इस पहल के तहत वह समाज के गरीब और वंचित तबकों से आने वाले लोगों को वित्तीय मदद देती है। कोल इंडिया ने वर्ष 2017 में ‘थैलीसीमिया बाल सेवा योजना’ की शुरुआत की थी। इसके तहत थैलेसीमिया के मरीजों को हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण के लिए वित्तीय मदद दी जाती है। ऐसे ही बैंक ऑफ़ इंडिया, कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया, कॉनकोर एयर, एचपीसीएल, इंडियन आयल, ओएनजीसी जैसे कॉर्पोरेट्स भी थैलेसीमिया के लिए काम करते है।
जरूरतमंदों की मदद करता है डीसीएम देवेंद्र फडणवीस का मेडिकल हेल्प सेल
अगर आप बीमार है और आपकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है तो महाराष्ट्र सरकार आपकी आर्थिक मदद करती है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने डीसीएम मेडिकल हेल्प सेल बनाया है। देवेंद्र फडणवीस का यह विशेष चिकित्सा मदद कक्ष मंत्रालय में पांचवी मंजिल पर बनाया गया है। इस DCM Medical Relief Cell के जरिए राज्य भर के वह जरूरतमंद मरीज जिनकी सालाना आय 1 लाख 80 हजार से कम होगी, राज्य के 450 से ज्यादा अस्पतालों में मुफ्त में इलाज करवा सकेंगे। इसके अलावा जिन लोगों की सालाना आय 1 लाख 80 हजार से 3 लाख 60 हजार के बीच होगी तो फिर उन्हें इलाज में 50 प्रतिशत की छूट मिलेगी। गौरतलब है कि मरीजों का इसके तहत सभी बीमारियों का इलाज हो सकेगा। मुंबई के कोकिलाबेन, लीलावती, ब्रीच कैंडी और हिंदुजा जैसे बड़े नामी गिरामी अस्पताल इसमें शामिल हैं।