app-store-logo
play-store-logo
December 13, 2025

क्या आप जानते हैं? मोरपंख और बांसुरी में छिपा श्रीकृष्ण का प्रेम, भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संदेश

The CSR Journal Magazine
भारतीय संस्कृति में जब भी भगवान श्रीकृष्ण की बात होती है, तो आंखों के सामने उनकी वही तस्वीर आती है, हाथ में बांसुरी, पीतांबर धारण किए हुए और मुकुट में सजा मोरपंख। पुराने मंदिरों, मूर्तियों, पेंटिंग्स और भक्ति साहित्य में भी श्रीकृष्ण को इसी रूप में दिखाया गया है। जानकारों के मुताबिक, मोरपंख और बांसुरी सिर्फ सजावट या वाद्य यंत्र नहीं हैं, बल्कि इनके पीछे लोकपरंपरा, संस्कृति और जीवन से जुड़े कई गहरे अर्थ छिपे हुए हैं।

ब्रज संस्कृति और आम जनजीवन से जुड़ाव

भगवान श्रीकृष्ण का जीवन ब्रज क्षेत्र से जुड़ा माना जाता है, जहां प्रकृति, पशु-पक्षी, संगीत और लोकसंस्कृति रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा थे। मोर उस इलाके में आम तौर पर पाए जाते थे और बांसुरी गांवों में बजाया जाने वाला एक लोकप्रिय वाद्य यंत्र रहा है। संस्कृति से जुड़े लोग मानते हैं कि इन प्रतीकों के ज़रिए श्रीकृष्ण को एक ऐसे भगवान के रूप में दिखाया गया, जो आम लोगों और प्रकृति के बहुत करीब थे।

मोरपंख से जुड़ी प्रचलित कहानियां

ब्रज की लोककथाओं में यह बात कही जाती है कि श्रीकृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर मोर नाचने लगते थे। ऐसी ही एक कहानी में बताया जाता है कि नृत्य करते समय एक मोर का पंख ज़मीन पर गिर गया, जिसे श्रीकृष्ण ने उठाकर अपने मुकुट में लगा लिया। वैष्णव परंपरा से जुड़े विद्वान इसे कोई ऐतिहासिक घटना नहीं मानते, बल्कि प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक बताते हैं।
एक दूसरी कहानी रामायण काल से जुड़ी लोकमान्यता के रूप में सुनाई जाती है। इसमें कहा जाता है कि वनवास के दौरान भगवान राम को एक मोर ने रास्ता दिखाया था। उसी स्मृति को याद रखते हुए अगले अवतार में मोरपंख धारण किया गया। इतिहासकारों के अनुसार, यह एक प्रेरणादायक लोककथा है, जिसे सांस्कृतिक संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए।

बांसुरी और भक्ति साहित्य का रिश्ता

भक्ति साहित्य में बांसुरी को श्रीकृष्ण का सबसे प्रिय वाद्य यंत्र बताया गया है। कई ग्रंथों और कविताओं में ज़िक्र मिलता है कि बांसुरी की मधुर धुन सुनकर ब्रजवासी भावुक हो जाते थे। जानकारों का कहना है कि इस तरह के वर्णन संगीत और भक्ति के गहरे रिश्ते को समझाने के लिए किए गए हैं।
दार्शनिक तौर पर बांसुरी को एक प्रतीक माना जाता है। बांसुरी खुद खाली होती है, लेकिन जब उसमें सांस जाती है, तो मधुर आवाज निकलती है। इसे इस बात से जोड़ा जाता है कि जब इंसान अपने अहंकार को छोड़ देता है, तभी वह किसी बड़े उद्देश्य का माध्यम बन पाता है।

प्रतीक और जीवन का संदेश

मोरपंख में कई रंग होते हैं, जिन्हें जीवन के अलग-अलग पहलुओं का प्रतीक माना जाता है। वहीं बांसुरी संवाद, संवेदनशीलता और संगीत से जुड़ी मानी जाती है। धार्मिक और सांस्कृतिक जानकारों के अनुसार, ये दोनों मिलकर श्रीकृष्ण के उस जीवन दर्शन को दिखाते हैं, जिसमें प्रेम, करुणा, संतुलन और कर्तव्य की अहम भूमिका रही है।

इतिहास और आस्था के बीच संतुलन

आधुनिक इतिहासकार और धर्म विशेषज्ञ साफ कहते हैं कि मोरपंख और बांसुरी से जुड़ी ज़्यादातर कहानियां लोकपरंपरा और भक्ति साहित्य से आई हैं। इन्हें पूरी तरह ऐतिहासिक तथ्य मानने के बजाय सांस्कृतिक धरोहर और प्रतीकात्मक कथाओं के रूप में देखना ज़्यादा सही है। भगवान श्रीकृष्ण के मोरपंख और बांसुरी सिर्फ धार्मिक चिन्ह नहीं हैं, बल्कि ये लोकजीवन, संगीत और जीवन दर्शन से जुड़े गहरे संदेश देते हैं। इनसे जुड़ी कहानियां प्रेम, समर्पण और प्रकृति से जुड़ाव की बात करती हैं। शायद यही वजह है कि सदियों बाद भी मोरपंख और बांसुरी श्रीकृष्ण की पहचान और भारतीय संस्कृति का अहम हिस्सा बने हुए हैं।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean upda
App Store – https://apps.apple.com/in/app/newspin/id6746449540
Google Play Store – https://play.google.com/store/apps/details?id=com.inventifweb.newspin&pcampaignid=web_share

Latest News

Popular Videos