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November 7, 2025

TECHNOLOGY ने जिंदगी आसान की, पर रिश्तों में आई ठंडक, आखिर क्यों फीकी पड़ रही है FAMILY BONDING?

The CSR Journal Magazine
क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे दादी-नानी की छोटी रसोई में सिर्फ खाना नहीं बनता था, बल्कि रिश्तों की मिठास भी पकी जाती थी? गैस की सीटी से ज्यादा उस रसोई में दादी-नानी की कहानियों की आवाज गूंजती थी। बच्चे उनके पास बैठकर सुनते, पिता जी दिनभर की बातें साझा करते, और पूरा परिवार जमीन पर साथ बैठकर खाना खाता। यह आत्मीयता, यह अपनापन आज के हाई-टेक डाइनिंग टेबल पर शायद ही महसूस होता है।

चूल्हे का जादू और खोती गर्माहट

आज की मॉडर्न रसोईयां बड़ी, चमकदार और हर तरह के गैजेट्स से भरी हैं। माइक्रोवेव, इंडक्शन और डिशवॉशर ने हमारे काम को आसान बना दिया है। लेकिन इस सुविधा के बीच कहीं कुछ अनमोल चीजें खो गई हैं वह है परिवार का साथ, बातचीत की मिठास और रिश्तों की गर्माहट। पुराने जमाने की रसोई में जब दाल चूल्हे पर धीमी आंच में पकती थी, तो उसके साथ रिश्तों की खुशबू भी घरभर में फैल जाती थी। दादी की आवाज में कहानी, मां के हाथों की खुशबू और बच्चों की हंसी ये सब मिलकर घर को सिर्फ एक मकान नहीं, बल्कि भावनाओं का संसार बना देते थे।

रसोई: सिर्फ खाना बनाने की जगह नहीं

दादी-नानी की रसोई परिवार का असली ‘सोशल हब’ हुआ करती थी। सुबह की पहली चाय से लेकर रात के आखिरी निवाले तक, हर पल रसोई में जिंदगी गूंजती थी। दादी आटा गूंथते हुए किसी पुरानी कहानी की शुरुआत करतीं, मां सब्जी काटते हुए अपने दिन की बात कहतीं, और बच्चे उन्हीं के बीच खेलते-कूदते बड़े होते थे। उस समय रसोई सिर्फ खाना पकाने की जगह नहीं थी, बल्कि प्यार, बातचीत और अपनापन का सबसे बड़ा मंच थी। हर काम सामूहिक होता था कोई रोटी बेलता, कोई परोसता, तो कोई बस साथ बैठकर बातें करता। इन्हीं छोटे-छोटे पलों में परिवार के सदस्यों के बीच वह गहरा जुड़ाव बनता था, जो आज की तेज रफ्तार जिंदगी में कहीं खो गया है।

स्वाद में छिपी ममता और अपनापन

पुरानी रसोई का स्वाद सिर्फ मसालों का नहीं था, उसमें भावनाओं की खुशबू भी घुली होती थी। हाथ से पिसे मसालों की महक, मिट्टी के चूल्हे की आंच और प्यार से परोसी थाली इन सबमें दादी की ममता और मां का दुलार झलकता था। जमीन पर पत्तल में साथ बैठकर खाना खाने से जो समानता और अपनापन पैदा होता था, वह आज के हाई-टेक डाइनिंग टेबल पर शायद ही दिखे। अब थाली में स्वाद तो है, पर उस खाने में जुड़ाव की कमी महसूस होती है।

मॉडर्न गैजेट्स और परिवार की दूरी

आज हर कोई अपनी व्यस्त जिंदगी में उलझा है। काम का बोझ, ऑनलाइन मीटिंग्स और मोबाइल की स्क्रीन ने इंसानों के बीच दीवारें खड़ी कर दी हैं। खाना बनाने का समय भी अब भागमभाग में बीत जाता है। डाइनिंग टेबल पर भी हर हाथ में फोन होता है बातें कम, नोटिफिकेशन ज्यादा। हंसी, कहानियां और साथ बैठने की आदतें धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। मॉडर्न गैजेट्स ने हमारा समय तो बचाया है, लेकिन उन्होंने वह भावनात्मक जुड़ाव छीन लिया जो परिवारों की पहचान हुआ करता था।

रिश्तों की मिठास कैसे लौटाएं?

इसका मतलब यह नहीं कि हमें मॉडर्न किचन या टेक्नोलॉजी को छोड़ देना चाहिए। बल्कि जरूरत है पुराने और नए दौर के बीच संतुलन बनाने की। कोशिश करें कि हफ्ते में एक दिन पूरा परिवार साथ बैठकर खाना बनाए। फोन को एक तरफ रखें, और बातचीत को वापस लाएं। बच्चों को सिखाएं कि रसोई सिर्फ खाना बनाने की नहीं, रिश्तों को जोड़ने की जगह भी होती है। अगर हम थोड़ी-सी कोशिश करें, तो मॉडर्न किचन में भी दादी-नानी के दौर की वही गर्माहट, वही हंसी और वही रिश्तों की मिठास फिर से लौट सकती है।
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