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December 11, 2025

कराची का कुख्यात रहमान डकैत: अपराध, राजनीति और रहस्यों से भरी कहानी

The CSR Journal Magazine
फिल्म धुरंधर में अक्षय खन्ना द्वारा निभाया गया किरदार “रहमान डकैत” वास्तविक जीवन के अपराधी सरदार अब्दुल रहमान बलोच पर आधारित है। उसकी कहानी लियारी की तंग गलियों से शुरू होकर पाकिस्तान की राजनीति, पुलिस और अंडरवर्ल्ड के सबसे ऊँचे स्तर तक पहुँचती है।
रहमान का जन्म 1976 में कराची के लियारी इलाके में हुआ, जो गरीबी, गैंगस्पर, नशे और अपराध के लिए बदनाम रहा है। उसके पिता और चाचा ड्रग कारोबार से जुड़े थे, जिससे बचपन से ही रहमान अपराध की छाया में पला। केवल 13 साल की उम्र में उसने एक व्यक्ति पर चाकू से हमला किया—यह उसका पहला दर्ज अपराध था।
जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, हत्या, रंगदारी और ड्रग तस्करी उसकी पहचान बनते गए। 1990 के दशक में उसने अपने दो ड्रग सप्लायरों—नदीम अमीन और नन्नू—की हत्या कर दी। 1998 में उसने सूलेमान बिरोही की हत्या की, जिससे उसकी पहचान कराची के सबसे ख़तरनाक गैंगस्टरों में हो गई। इसी बीच उसके चाचा की हत्या ने उसे और क्रूर बना दिया।
रहमान की जिंदगी का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा वह है जब उसने शक के आधार पर अपनी मां तक की हत्या कर दी। कई रिपोर्टों के अनुसार उसे डर था कि उसकी मां पुलिस को जानकारी दे रही है या दुश्मनों के संपर्क में है।
1997 में अदालत ले जाते समय वह पुलिस कस्टडी से फरार हो गया। इसके बाद उसने अपनी खुद की गैंग खड़ी की और हाजी लल्लू जैसे बड़े गैंगस्टरों के साथ रिश्ते बनाए। कुछ समय बाद दोनों के बीच दुश्मनी शुरू हो गई और लियारी में भयंकर गैंगवार छिड़ गई—जिसमें आने वाले वर्षों में लगभग 3,500 लोग मारे गए।

2000 के दशक में रहमान का प्रभाव इतना बढ़ गया कि कराची के चुनावों तक में उसका हस्तक्षेप होने लगा।
उसने खुद को “सरदार अब्दुल रहमान बलोच” कहना शुरू किया और पीपल्स अमन कमेटी नाम से संगठन बनाया। स्कूल, क्लिनिक और सामुदायिक कामों के जरिए उसने कुछ इलाकों में रॉबिनहुड जैसी छवि भी बनाई।
लेकिन उसका आतंक, अपहरण और वसूली लगातार बढ़ते गए।

गुप्त गिरफ्तारी और ज़रदारी का दखल

18 जून 2006 को क्वेटा में पुलिस अफसर चौधरी असलम ने गुप्त अभियान चलाकर रहमान डकैत को पकड़ लिया। पूछताछ में उसने 79 अपराध कबूल किए, जिनमें हत्या, अपहरण और ड्रग तस्करी शामिल थे।
लेकिन इस गिरफ्तारी को पाकिस्तान सरकार ने कभी सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया। अफसरों के अनुसार, ऑपरेशन के दौरान चौधरी असलम को आसिफ अली ज़रदारी का कॉल आया जिसमें कहा गया:
“उसे मत मारो, अदालत में पेश करो—एनकाउंटर नहीं।”
गिरफ्तारी छुपाई गई और रहमान को एक गुप्त स्थान पर रखा गया।

फिल्मी अंदाज़ में रिहाई

20 अगस्त 2006 को हथियारबंद लोग एक घर में घुसकर उसे छुड़ा ले गए। रहमान ने दावा किया कि उसने “पैसा देकर” खुद को छुड़ाया है। उसके भागने के बाद कराची में फिर अपराध और हिंसा बढ़ गई।

अंत और विरासत

2010 में पुलिस एनकाउंटर में उसकी मौत हुई, लेकिन उसकी कहानी आज भी कराची की गैंगवार, राजनीति और अपराध के गठजोड़ का प्रतीक मानी जाती है।

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