कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर – CSR) समाज की वो डोर है जिससे देश, कॉर्पोरेट कंपनीज और खुद समाज को जोड़ने का काम करती है।पूरी दुनिया में भारत में होने वाले सीएसआर पहल का सबसे अच्छा उदाहरण है। लेकिन इस बीच इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि करप्शन के मामलों में भी भारत ऊपरी पायदान पर है। करप्शन सरकारी दफ्तरों में है, करप्शन जन्म से लेकर मृत्यु तक हर काम में है।
भ्रष्टाचार पर दुनिया भर में अध्ययन करने वाली एजेंसी ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि भारत एशिया का सबसे भ्रष्ट देश है। रिपोर्ट के अनुसार 39 फ़ीसदी भारतीयों ने यह माना है कि सरकारी दफ्तर में बिना रिश्वत काम नहीं होता है। भारत में 47 फ़ीसदी लोगों ने यह माना है कि पिछले 12 महीनों में भारत में भ्रष्टाचार के मामले बढ़े हैं, 89 फीसदी लोगों ने ये माना है कि सरकारी भ्रष्टाचार सबसे बड़ी समस्या है।
हम हर साल 9 दिसंबर को भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरुकता फैलाने के लिए इंटरनेशनल एंटी करप्शन डे (International Anti Corruption Day) मनाते हैं। यूनाइटेड नेशंस (United Nations) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल 1 ट्रिलियन डॉलर का भुगतान रिश्वत के रूप में किया जा रहा है। जबकि 2.6 ट्रिलियन डॉलर को भ्रष्ट उपायों के कारण चुराया गया है। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम के अनुसार, यह अनुमान लगाया जाता है कि विकासशील देशों में भ्रष्टाचार के कारण 10 गुना धनराशि खो गई है।
करप्शन कर रही है सीएसआर को कमजोर
भ्रष्टाचार सबसे जटिल सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक घटनाओं में से एक है, जिसने दुनिया के सभी देशों को प्रभावित किया है। भारत में भी करप्शन सिर्फ आम जनमानस को प्रभावित नहीं किया है बल्कि भ्रष्टाचार कॉर्पोरेट जगत में भी है। कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Corporate Social Responsibility) पूरे देश भर में सामाजिक काम हो रहें है लेकिन यहां भी करप्शन ने घर कर रखा। सीएसआर (CSR) पहल के कई ऐसे काम हुए लेकिन भ्रष्टाचार सीएसआर और समाज की जड़े कमजोर कर रही हैं।
The CSR Journal ने उजागर किये हैं सीएसआर में करप्शन के कई घोटाले
सीएसआर पहल के कई ऐसे मामले The CSR Journal ने उजागर किये हैं जहां बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुए। चाहे यूपी के श्रावस्ती में सीएसआर घोटाला हो या फिर भारत पेट्रोलियम या हिंदुस्तान पेट्रोलियम में। सीएसआर के तहत ये भी मामले देखने को मिला है कि बजट खर्च तो पूरा हुआ लेकिन काम कम, यहां तक की निम्न दर्जे के भी काम हुए हैं। दरअसल यूपी के श्रावस्ती जिले में सीएसआर फंड के तहत हैंडपंप लगना था। सरकारी कंपनी उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लिमिटेड को हैंडपंप लगाने के लिए कॉर्पोरेट कंपनी ने सीएसआर के तहत लगभग 7 लाख रुपये का बजट प्रस्तावित किया था।
20 हैंडपंप लगाने के लिए उत्तर प्रदेश लघु उद्योग निगम लिमिटेड इलाहाबाद को इस बजट का 75 फीसदी रकम यानि 5 लाख 41 हज़ार रुपये संस्था को दे दिए गए, लेकिन संस्था ने निर्धारित समय में और जिला प्रशासन द्वारा निर्धारित जगह पर हैंडपंप न लगवाकर पैसा अपने पास ही रोके रखा। यही नहीं संस्था ने शर्तों का उल्लंघन करते हुए बिना अनुमति के 20 हैंडपंप में से 12 इंडिया मार्का हैंडपंप निर्धारित सूची के अनुसार न लगाकर मनमाने ढंग से लगाया।
बीपीसीएल और एचपीसीएल के पास नहीं है उनके लाभार्थियों की जानकारी
वही The CSR Journal ने RTI कानून की मदद से सीएसआर को लेकर भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (HPCL) के CSR पहल की जानकारी मांगी थी। जो जानकारी बीपीसीएल और एचपीसीएल ने दी वो चौंकाने थी। दोनों ही PSU से जानकारी मांगी गयी थी कि सीएसआर पहल के लाभार्थी कौन थे। जवाब में बताया गया कि कंपनी लाभार्थियों की डेटा बेस नहीं रखती। यानी बीपीसीएल और एचपीसीएल तो सीएसआर के तहत करोड़ों तो खर्च करती है लेकिन इन कामों के लाभार्थी कौन है ये जानकारी कंपनी के पास नहीं रहता।
सीएसआर के तहत पिछड़े इलाकों को आगे लाने के लिए और समाज से जोड़ने के लिए देश की कॉर्पोरेट्स कम्युनिटी के साथ मिलकर काम तो करती है लेकिन बीच के बिचौलिए करप्शन करने से बाज नहीं आते। सीएसआर फिल्ड में काम करने वाले जानकार ये भी बताते है कि कई मामलों में सीएसआर के काम नियमों को ताक पर किये जाते हैं। बहरहाल सीएसआर फंड से समाज में सकारात्मक बदलाव आ रहा है लेकिन सीएसआर फंड में ही अगर करप्शन होने लगे तो CSR और समाज का क्या हश्र होगा?