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March 13, 2025

Unsung Warriors: भगत सिंह की फांसी का बदला लेने वाली क्रांतिपुत्री शांति-सुनीति

Unsung Warriors Of India: Shanti Ghosh, Suniti Chaudhary- सही कहा गया है कि स्वाधीनता मुफ्त में नहीं मिली है, बाकायदा उसकी कीमत चुकानी पड़ी है। देश की पराधीनता के दौरान ब्रिटिश सरकार के अत्याचार जब भारतीय जनमानस के धैर्य की सीमा को लांघने लगे, तब क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुक्मरानों को सबक सिखाने की ठानी। आज जानने की कोशिश करते हैं मात्र 15 वर्ष की उस क्रांतिपुत्री के बारे में, जिसने भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी का बदला लेने के लिए एक जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) का वध कर दिया था।

Stevens को यमलोक पहुंचाने वाली वीर बालिकाएं Shanti और Suniti

Tripura भारत का एक राज्य है, पर स्वतंत्रता से पूर्व वह बंगाल का एक जिला हुआ करता था तथा उसका मुख्यालय कोमिल्ला (Comilla) था। वहां के क्रूर Magistrate Stevens के अत्याचारों से पूरा जिला थर्रा रहा था। वह क्रांतिवीरों को बहुत कड़ी सजा देता था। अतः क्रांतिकारियों ने उसे ही मजा चखाने का निश्चय किया। यह काम आसान नहीं था, क्योंकि वह बहुत कड़ी दो स्तरीय सुरक्षा में रहता था। कार्यालय का अधिकांश काम वह सुरक्षा की दृष्टि से घर पर ही करता था। उससे मिलने आने वाले हर व्यक्ति की बहुत कड़ी तलाशी ली जाती थी। उन दिनों Comilla के फैजन्नुसा गर्ल्स हाई स्कूल की प्रधानाचार्या कल्याणी देवी थीं। वे सुभाषचंद्र बोस के गुरु वेणीमाधव दास की पुत्री थीं। उनकी छोटी बहन वीणा दास बंगाल के Governer Stanely Jackson के वध के अपराध में 13 वर्ष का कारावास भोग रही थीं। कल्याणी देवी बड़े प्रखर क्रांतिकारी विचारों की थीं और छात्राओं के मन में भी स्वाधीनता की आग जलाती रहती थीं।

शहीद Bhagat Singh, Rajguru, Sukhdev

कल्याणी देवी ने एक दिन कक्षा आठ की छात्रा शांति घोष Shanti Ghosh एवं सुनीति चौधरी Suniti Chaudhary को अपने पास बुलाया। फिर तीनों ने मिलकर Stevens को मारने की पूरी योजना बनाई। इससे पहले युगांतर पार्टी में महिलाएं पर्दे के पीछे रहकर ही क्रांतिकारियों की सहायता किया करती थीं। पहली बार यह तय किया गया कि महिलाएं पर्दे के पीछे से निकलकर सामने से अंग्रेजों का मुकाबला करेंगी। इनका मिशन था 23 मार्च 1931 को फांसी पर चढऩे वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत का प्रतिशोध लेना। 14 दिसम्बर, 1931 को शांति और सुनीति Shanti And Suniti अपने विद्यालय की वेशभूषा में Stevens के घर पहुंच गयीं। दोनों ने अपने कपड़ों में भरी हुई पिस्तौल छिपा रखी थी। द्वार पर तैनात संतरी के पूछने पर उन्होंने कहा कि हमारे विद्यालय की ओर से तीन मील की तैराकी प्रतियोगिता हो रही है, इसमें हमें जिलाधीश महोदय का सहयोग चाहिए। उन्होंने जिलाधीश महोदय के लिए एक प्रार्थना पत्र भी उसे दिया। संतरी ने उन्हें रोका और अंदर जाकर वह पत्र Stevens को दे दिया। स्टीवेंस ने उन्हें मिलने की अनुमति दे दी। उनके बस्तों की तो ठीक से तलाशी हुई, पर लड़की होने के कारण उनके शरीर की तलाशी नहीं ली गयी।अंदर जाकर दोनों ने जिलाधीश Stevens से यह आदेश करने को कहा कि तैराकी प्रतियोगिता के समय नाव, स्टीमर, मोटरबोट आदि नदी में न उतारें जिससे प्रतियोगिता ठीक से सम्पन्न हो जाए। स्टीवेंस ने कहा कि, ‘ प्रार्थना पत्र पर तुम्हारे विद्यालय की प्रधानाचार्या जी के हस्ताक्षर नहीं हैं। पहले उनसे हस्ताक्षर करा लाओ, फिर मैं अनुमति दे दूंगा।’ शांति और सुनीति मौका देख रही थीं। उन्होंने Stevens से ये बात लिखित में देने को कहा। स्टीवेंस ने कलम उठाई और लिखने लगा। इसी समय Shanti और Suniti। दोनों ने अपने कपड़ों में छिपी पिस्तौल निकाली और स्टीवेंस पर गोलियां दाग दीं। गोली की आवाज सुनते ही बाहर खड़े संतरी भीतर की ओर दौड़े, पर तब तक Stevens का काम तमाम हो चुका था।

मौत के गम पर भारी जीत की खुशी

सबने मिलकर दोनों बालिकाओं को पकड़ लिया। सब लोग डर से कांप रहे थे लेकिन Shanti और Suniti के चेहरे पर जीत की खुशी चमक रही थी। शांति और सुनीति अपने लक्ष्य की सफलता पर प्रसन्न थीं। दोनों को न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। शांति उस समय चौदह तथा सुनीति साढ़े चौदह वर्ष की थी। अवयस्क होने के कारण उन्हें फांसी नहीं दी जा सकती थी, अतः उन्हें आजीवन कालेपानी की सजा देकर Andaman भेज दिया गया। इस प्रकार दोनों वीर बालिकाओं ने अपनी युवावस्था के सपनों की बलि देकर क्रांतिवीरों से हो रहे अपमान का बदला ले लिया। लेकिन इसके दुष्परिणामों से Shanti के परिवार को गुजरना पड़ा। Shanti के पिता की सरकारी Pension रोक दी गई। बड़े भाइयों को बिना किसी कारण, बिना किसी Trial के हिरासत में ले लिया गया। छोटे भाई की कुपोषण से मौत हो गई।

ज़िंदगी को फिर ढर्रे पर लाने की कोशिश

1939 में Shanti Ghosh को जेल से रिहा कर दिया गया। उनकी रिहाई Gandhiji और British Government के बीच Amnesty Negotiations का परिणाम थी। जेल से छूटने के बाद Shanti Ghosh ने अपने अव्यवस्थित जीवन को व्यवस्थित करने के लिए अपनी पढ़ाई पुन: आरंभ की। इसके साथ ही वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस Indian National Congress की सदस्य भी बन गईं। इसके पश्चात वर्ष 1942 में उन्होंने चटगांव (अब बांग्लादेश में) के रहने वाले क्रांतिकारी प्रोफेसर चितरंजन दास से विवाह कर लिया। देश की स्वाधीनता के बाद वह राजनीतिक गतिविधियों में निरंतर जुड़ी रहीं। इसी के परिणामस्वरुप वह वर्ष 1952-62 और 1967-68 तक क्रमश: बंगाल विधानसभा और विधान परिषद की सदस्या रहीं। शांति घोष ने बांग्ला भाषा में अपनी आत्मकथा ‘अरुण बहनी’ (Arun Bahni) भी लिखी।

इतिहास के पन्नों से नदारद Shanti Ghosh Suniti Chaudhary

देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाली यह वीरांगना अपने जीवन के करीब 73 बसंत मातृभूमि की सेवा में व्यतीत करने के पश्चात 28 मार्च 1989 को चिरनिद्रा में चली गई। शांति घोष के साहसिक कार्य को भारतीय जनमानस तक पहुंचाने के लिए वर्ष 2010 में ये मदर्स,’ Ye Mothers’ नामक एक फिल्म का निर्माण भी किया गया। Canadian Writer ‘Geraldine Forbs ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय महिला और स्वतंत्रता आंदोलन’ (Indian Women And The Freedom Movement’ में शांति घोष और सुनीति चौधरी से की गई बातचीत का वर्णन करते हुए एक कविता, ‘तू अब आजाद और प्रसिद्ध है’ के साथ दोनों क्रांति पुत्रियों की फोटो भी छापी। शांति घोष और सुनीति चौधरी(Shanti Ghosh Suniti Chaudhary) द्वारा देश की स्वाधीनता में दिए गए योगदान के लिए हम भारतवासी सदैव उनके ऋणी रहेंगे।

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