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June 3, 2025

पराली से बनी बायो ब्रिक्स बचाएंगी राजधानी को प्रदूषण से

Sustainable Architecture: 2015 में देश भर में दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण की बात हो रही थी। न्यूज़ चैनल्स, अख़बार, सोशल मीडिया, हर जगह दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण की बातें हो रही थीं। खासकर, हरियाणा और पंजाब में किसानों के पराली जलाने की समस्या पर चर्चा थी, कि कैसे यह वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है। इस समस्या यानि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण से निपटने का तरीका ढूंढ निकाला IIT Hyderabad के प्रियब्रत राउतराय और उनके सहयोगी अविक रॉय ने!

IIT हैदराबाद के PHD छात्र ने बना दिया Best Out Of Waste

Sustainable Architecture: IIT हैदराबाद के डिज़ाइन विभाग के PHD स्कॉलर प्रियब्रत राउतराय और उनके साथी, अविक रॉय ने मिलकर खेतों में फसल के बाद बचने वाली पराली का इस्तेमाल करके ‘Bio Brick’ बनाई, जिसे बिल्डिंग मटीरियल के तौर पर इस्तेमाल में लिया जा सकता है। सितंबर, 2021 में IIT Hyderabad में Bio Brick से बने एक गार्ड-रूम का उद्घाटन किया गया। यह भारत का पहला ऐसा निर्माण है, जो Bio Brick से बनाया गया था। प्रियब्रत और अविक ने बताया कि कैसे Bio Brick के माध्यम से वह पराली जलाने की समस्या और Sustainable Architecture पर काम कर रहे हैं।
मूल रूप से Orissa के रहने वाले प्रियब्रत और अविक, दोनों ही आर्किटेक्ट हैं। प्रियब्रत ने अपनी PHD खत्म की है और अविक KIITS स्कूल ऑफ़ आर्किटेक्चर, भुवनेश्वर में शिक्षक हैं।
अविक बताते हैं, “डिज़ाइन में मास्टर्स की डिग्री करने के बाद, हम दोनों ही दिल्ली में अलग-अलग इंडस्ट्रीज में काम कर रहे थे। साल 2011 में, हमने साथ में मिलकर अपना Design firm, “R Square Dezign” शुरू किया। हमने कई डिजाइनिंग प्रोजेक्ट्स किए। लेकिन पिछले कुछ सालों में, जब दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण पर चर्चा बढ़ी तो हमारा ध्यान इस ओर गया। एक तरफ पराली की समस्या थी और दूसरी तरफ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बढ़ती ईंट की मांग। काफी समय तक विचार-विमर्श करके हमने इन दोनों परेशानियों का एक हल ढूंढ़ा और वही हल है Bio Brick।”

Farm Waste बनाये Bio Brick

Sustainable Architecture: प्रियब्रत बताते हैं कि एक तरफ पराली जलाने के कारण बढ़ रहे वायु प्रदूषण की समस्या थी, तो दूसरी तरफ किसान, जिनके पास पराली के प्रबंधन का कोई ठोस समाधान नहीं था, और दिल्ली की खराब हवा के लिए उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा था। वहीं, कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री की बात करें, तो यह सच है कि पर्यावरण को हानि पहुंचाने के लिए यह इंडस्ट्री भी जिम्मेदार है। देश में लगभग 140000 ईंटों की भट्ठियां हैं, लेकिन फिर भी निर्माण कार्यों के लिए ईंटों की आपूर्ति नहीं हो पाती है। साथ ही, ईंट बनाने के लिए मिट्टी की सबसे ऊपर परत का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके कारण मिट्टी की गुणवत्ता घट रही है।
ईंट की ये भट्ठियां न सिर्फ बहुत ज्यादा ऊर्जा लेती हैं, बल्कि इनसे होने वाला प्रदूषण भी काफी ज्यादा है। इस कारण अविक और प्रियब्रत ने सोचा कि कृषि अपशिष्ट यानी farm waste को कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लिए  क्यों  इस्तेमाल नहीं किया जा सकता? उन्होंने साल 2015 से इस पर काम करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले उन्होंने अलग-अलग फसलों जैसे गन्ना, गेहूं और चावल आदि के अपशिष्ट पर रिसर्च करना शुरू किया। इसी बीच, प्रियब्रत को 2017 में IIT हैदराबाद में PHD में दाखिला मिल गया और अविक ने कॉलेज में बतौर शिक्षक काम शुरू कर दिया।
2019 में अविक और प्रियब्रत ने ICED conference, Delft university में ‘Bio Brick’ पर एक Research भी पब्लिश की। उनका आईडिया सभी को अच्छा लगा और तब से दोनों इस प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। लगभग छह सालों की मेहनत के बाद आखिरकार वह अलग-अलग फसलों के अपशिष्ट से ईंट बनाने में कामयाब हो गए। उन्होंने अपनी ‘बायो ब्रिक’ को Rural Innovators Start-Up Conclave 2019 में प्रेजेंट किया। जहां उन्हें Sustainable Housing में Special Recognition Trophy मिली। इसके बाद, उन्होंने अपनी इस तकनीक के लिए पेटेंट फाइल किया और अप्रैल 2021 में उन्हें पेटेंट भी मिल गया।

Bio Brick से बनाया Sustainable गार्ड-रूम

Sustainable Architecture: अपनी तकनीक पर बात करते हुए अविक और  प्रियब्रत स्पष्ट करते हैं “हमने पराली से ईंट बनाने के लिए सीमेंट और चूने को बाइंडर के रूप में प्रयोग किया है। सबसे पहले पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है और फिर इसमें पानी के साथ चूना और सीमेंट मिलाया जाता है। इसके बाद इसे मोल्ड में डाल कर दो दिन तक सुखाया जाता है। दो-तीन दिन में ईंट तैयार हो जाती है। हमने IIT हैदराबाद के कैंपस में इस मटीरियल से 6×6 फ़ीट का एक गार्ड रूम बनाया है। इसकी दीवारें और छत, दोनों ही Bio Brick से बनी हैं।”
इस कमरे का स्ट्रक्चर बनाने के लिए उन्होंने मेटल के फ्रेम का इस्तेमाल किया है। प्रियब्रत कहते हैं, “सबसे पहले हमने मेटल का फ्रेम तैयार किया और फिर इसमें मोल्ड लगाकर Raw Material से दीवारें बनाई। मोल्ड को दो दिन बाद हटा दिया गया और इसके बाद, लगभग 10 दिन तक दीवारों को सूखने दिया गया ताकि यह अच्छे से मजबूत हो जाएं। इसके बाद हमने इसी तरह छत बनाने पर भी काम किया। छत के लिए PVC शीट पर Bio Brick लगाई गयी हैं। इससे यह इंसुलेटर का काम करेंगी। सितंबर 2021 में यह गार्डरूम बनकर तैयार हो गया था।”
उन्होंने बताया कि IIT हैदराबाद के BUILD (Bold Unique Idea Lead Development) प्रोग्राम के तहत उन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग मिली।

Bio Brick से बने गार्ड-रूम की खासियत

Bio Brick से बने होने के कारण कमरे के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से लगभग छह डिग्री कम रहता है। क्योंकि यह मटेरियल इंसुलेटर की तरह काम करता है। वहीं, चुने और सीमेंट को बाइंडर मटेरियल की तरह इस्तेमाल करने से यह आग प्रतिरोधी भी है। इसके अलावा, यह तकनीक न सिर्फ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में मिट्टी की ईंटों का सस्टेनेबल विकल्प है बल्कि किसानों के लिए अतिरिक्त आय का साधन भी हो सकती है। अगर किसानों को पराली के प्रबंधन का सही रास्ता दिया जाये तो कोई भी पराली नहीं जलाएगा, जिससे वायु प्रदूषण नहीं होगा। Bio Brick बनाना बहुत ही आसान है और किफायती भी। किसान इसे अपने खेतों में भी बना सकते हैं और आगे सप्लाई कर सकते हैं। मिट्टी की ईंट की तुलना में Bio Brick का वजन पांच गुना कम होता है तो सीमेंट की ईंटों से आठ गुना कम होता है।
सामान्य ईंट की तुलना में, अगर Bio Brick को बड़े स्तर पर बनाया जाए तो एक ईंट की कीमत दो से तीन रुपए आएगी। गांव और छोटे शहरों में, छोटे हाउसिंग मॉडल और किफायती आवास बनाने के लिए Bio Brick बहुत ही अच्छा और सस्टेनेबल रॉ मटेरियल है।

Bio Brick है Best Out Of Waste का उत्तम उदाहरण

Bio Brick के सस्टेनेबल प्रोजेक्ट के बारे में IIT हैदराबाद के डायरेक्टर, प्रोफेसर बीएस मूर्ति का कहना है कि ‘अपशिष्ट से कमाई’ का यह सबसे बेहतरीन उदाहरण है। इसलिए वह जल्द ही इसे ग्रामीण समुदायों तक पहुंचाने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को प्रपोजल भेजेंगे। संस्थान के डिज़ाइन विभाग के हेड, प्रोफेसर दीपक जॉन मैथ्यू कहते हैं कि यह आविष्कार किसानों जीवन में बदलाव लाएगा क्योंकि वे अपने खेती के अपशिष्ट से आमदनी कमा सकेंगे। इससे उन्हें अच्छे रोजगार के अवसर मिलेंगे।

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