महाराष्ट्र एकमात्र राज्य है जहां सबसे ज्यादा सीएसआर खर्च किया जाता है। सरकारी आकड़ों की मानें तो साल 2022-2023 में अकेले महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीएसआर खर्च किया गया। 5809 Corporates ने 5497.3 Cr. का सीएसआर दान दिया। लेकिन अगर महाराष्ट्र सरकार से पूछे तो सरकार और सरकार के मुखिया एकनाथ शिंदे के दफ्तर को इसकी जानकारी नहीं होगी कि सरकार के साथ समन्वय बिठाकर कौन से कॉरपोरेट ने क्या और कितना सीएसआर खर्च किया है। क्योंकि महाराष्ट्र सरकार के पास कोई सीएसआर का सेंट्रलाइज्ड चैनल नहीं है। जिसकी वजह से कॉरपोरेट को बहुत ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
महाराष्ट्र सरकार के पास नहीं है सीएसआर का कोई सेंट्रलाइज्ड चैनल
महाराष्ट्र सरकार की हमेशा मांग होती है कि सरकार के लिए कॉरपोरेट्स अपना सीएसआर फंड खर्च करें जिसके लिए कई कोशिश भी करती है लेकिन हमेशा Maharashtra Government को असफलता ही मिली है। दरअसल सीएसआर का सेंट्रलाइज्ड चैनल नहीं होने की वजह से महाराष्ट्र सरकार के अलग-अलग विभाग अपनी-अपनी नीतियां बनाये हुए हैं लेकिन वो किसी काम के इसलिए नहीं होते क्योंकि उन नीतियों की वजह से ना Corporates आते है और ना ही CSR Fund आता है। ऐसे ही एक सीएसआर की कमेटी महाराष्ट्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने बनाया है। 13 अगस्त 2024 को बाकायदा हेल्थ डिपार्टमेंट ने एक जीआर निकाला है। जिसमे हेल्थ डिपार्टमेंट के लिए सीएसआर खर्च करने की अपील की गयी है।
स्वास्थ्य विभाग ने जारी किया जीआर, बनाई CSR कमेटी
राज्य सरकार ने सीएसआर फंड के आवंटन के संबंध में व्यापक नीति को मंजूरी दे दी है और इसके अनुसार स्वास्थ्य परियोजनाओं के लिए कंपनियों से सीएसआर के तहत एक लाख से 10 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता के प्रस्ताव को कैसे मंजूरी दी जाएगी और कौन जिम्मेदार होगा, इसकी नीति तय की गई है। साथ ही यह भी निर्धारित किया गया है कि राज्य में यदि कोई कंपनी सीएसआर के तहत प्रस्ताव लेकर आती है तो समन्वय समिति दो दिनों के अंदर जवाब देने के लिए बाध्य होगी।
इसके पहले भी बने है सरकारी सीएसआर कमेटी लेकिन सब फेल
बहरहाल इसके पहले भी इस तरह के CSR Committee बनायी जा चुकी है लेकिन इसका कोई असर देखने को नहीं मिला है। हम आपको बता दें कि 20 मई 2015 को महाराष्ट्र सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग ने भी ऐसा ही सीएसआर कमेटी बनायीं थी इसके साथ ही एक पेमेंट गेटवे बनाया था ताकि कॉरपोरेट्स सीधे पेमेंट गेटवे से पेमेंट कर सकें लेकिन आजतक एक रुपया नहीं आया। इसके साथ ही आदिवासी विभाग ने भी ऐसे ही जीआर निकालकर सीएसआर कमेटी बनायीं थी लेकिन कुछ भी सीएसआर नहीं हुआ। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या महज खानापूर्ति के लिए सरकार सिर्फ सीएसआर सेल बनाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती है?