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‘ शौचालय की सोच ‘

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एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री क्या कर सकता है, ये नरेंद्र मोदी ने कर दिखाया है. 15 अगस्त को लाल किले से जब नरेंद्र मोदी ने देश के कार्पोरेट घरानों से , महिलाओं और ख़ासकर स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों  के निर्माण करने की अपील की, तो अगले अड़तालीस घंटों में ही करीब 200 करोड़ रूपये इस काम के लिए इकठ्ठा हो गए.  कार्पोरेट सामाजिक दायित्व के तहत, देश की दो बड़ी कंपनियों टीसीएस और भारती एअरटेल ने सौ-सौ करोड़ रूपये, शौचालयों के निर्माण के लिए सुरक्षित करने की घोषणा कर दी. 

  • टीसीएस 100 करोड़ की लागत से करीब 10,000 शौचालयों का निर्माण करेगी
  • भारती एअरटेल 100 करोड़ रूपये की लागत से पंजाब में शौचालय बनवाएगी 
  • ओरिएंटल बैंक 2 करोड़ रूपये लगाकर स्कूलों में 200 शौचालय निर्माण करेगी

कंपनी एक्ट की नई संशोधित धारा के तहत आनेवाली करीब 16,000 कंपनियों को चालू वित्त वर्ष से अपने शुद्ध मुनाफ़े की 2 फ़ीसदी रकम कार्पोरेट सामाजिक दायित्व या सीएसआर के कामकाज पर ख़र्च करना होगा. ऐसे में अगर प्रधानमंत्री ख़ुद किसी एक काम के बारे में अपील करते हैं तो उसकी अहमिअत समझी जा सकती है. कार्पोरेट जगत भी प्रधानमंत्री की इस समझ की तारीफ़ कर रहा है जिन्होंने शौचालय जैसे अनछुए मुद्दे को स्वतंत्रता दिवस जैसे अहम दिन उठाया. 

Girls Toilet1भारत जैसे देश में जहां लोगों के पास मोबाइल फ़ोन ज़्यादा हैं और शौचालय कम, सीएसआर के तहत ऐसी योजनाओं का क्रियान्वन आनेवाले दिनों में देश की मौजूदा तस्वीर को बदल सकता है. भारत में करीब 60 करोड़ की आबादी के पास शौचालय की सुविधा नहीं है. इसका बड़ा सामाजिक असर महिलाओं  की सुरक्षा और साक्षरता पर भी पड़ रहा है. स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से साफ़-सुरक्षित शौचालय ना होने की वजह से , किशोर उम्र की लड़कियां अक्सर स्कूल जाना छोड़ देती हैं. आंकड़ों के मुताबिक – 

  • करीब 47 फ़ीसदी लड़कियां स्कूल में शौचालय ना होने की वजह से स्कूल छोड़ रही हैं
  • 11 से 14 वर्ष उम्र की करीब 6 फ़ीसदी लड़कियों का स्कूल में नाम तक नहीं लिखवाया जा रहा

ऐसा नहीं कि सरकार को अब तक इसकी ख़बर नहीं थी क्योंकि ये सभी सरकारी आंकड़े ही हैं , फ़र्क बस इतना है कि सरकार की सोच कभी शौचालय तक गई ही नहीं. सामाजिक बदलाव की शुरुवात शौचालय से हो सकती है , प्रधानमंत्री की इस सोच की कार्पोरेट इंडिया ही नहीं सामाज मे भी काफ़ी सराहना हो रही है. 

Girl Toilet1यामिनी अय्यर, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की डायरेक्टर का कहना है “ जब हम स्कूलों में भारत की अगली पीढ़ी को संवारने की बात करते हैं,  तो उन्हें कम से कम स्वच्छ वातावरण तो देना ही होगा, ज़ाहिर है शौचालय जनकल्याण की अहम ज़रुरत है”

भारत में लड़कियों की शिक्षा और महिलाओं का सशक्तिकरण देश की तरक्की के लिए बेहद ज़रुरी है. जहां आज भी 40 फ़ीसदी बाल विवाह, 47 फ़ीसदी की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है, वहां बदलाव की शुरुआत तो शौचालय से ही होनी चाहिए. 

मोदी सरकार की ‘स्वच्छ भारत’ मुहिम से कार्पोरेट सामाजिक दायित्व या सीएसआर के काम को भी सही दिशा मिल रही है, जो काम आज़ादी के सत्तर बरसों में नहीं हो सके हैं – सरकार और कार्पोरेट की सहभागिता से अानेवाले कुछ वर्षों में ज़रुर संभव हैं.