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लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे छोटा स्वरूप है ग्राम पंचायत

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दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला देश हमारा भारत है। जहां का सबसे छोटा लोकतांत्रिक व्यवस्था ग्राम पंचायत है। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था तो मजबूत होती जा रही है लेकिन ग्राम पंचायत की व्यवस्था उतनी ही कमजोर होती जा रही है। इस साल 24 अप्रैल को पंचायती राज व्यवस्था (National Panchayati Raj Day) की 30वी वर्षगांठ है या यूं कहें कि सरकार के विकेंद्रीकरण के 3 दशक पूरे हो गए। भारत सरकार ने ग्राम पंचायतों और शहरी नगरपालिका परिषदों को संवैधानिक दर्जा दिया था ताकि पंचायती राज व्यवस्था में स्थानीय स्तर पर आर्थिक विकास हो सके और दूसरा सामाजिक न्याय व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन ये दोनों अवधारणाएं ही है। हकीकत कुछ और बन गया है।

देश का विकास ग्रामीण विकास के बिना संभव नहीं है

देश का विकास ग्रामीण विकास के बिना संभव नहीं है। क्योंकि 80 फीसदी जनता आज भी ग्रामीण इलाकों में रहती है लेकिन जब बात आती है ग्रामीण आर्थिक सम्पन्नता की तो ग्रामीण विकास का कितना विकास हुआ है ये किसी से छुपा नहीं है। भारत के गांव-गांव ने देश को कई बड़े नेता दिए है। कई केंद्रीय मंत्रियों की शुरुआत ही ग्रामीण राजनीति से हुई लेकिन बावजूद इसके पंचायती राज व्यवस्था में मजबूती नहीं आ रही है। इसके कई कारण है। आखिरकार ग्राम पंचायत कहने के लिए स्थानीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है लेकिन फिर भी कमजोर क्यों है तो इसके कई कारण है। गावों में अवसर की कमी के कारण युवाओं का गांव छोड़कर चले जाना। अगर किसी क्षेत्र में युवा वर्ग ही पलायन कर जाए तो वहां के मूलभूत विकास की बात कौन करेगा।

पलायन है ग्राम पंचायत के विकास में बड़ा रोड़ा

आजकल किसान का बेटा किसानी ना करते हुए वो शहर में जाकर मजदूरी करने को राजी है लेकिन खेती को ना कह रहा है। आज के दौर में कृषि घाटे का व्यापार बन गया है जिस पर कभी ग्रामीण विकास और उस क्षेत्र की समृद्धि की बुनियाद रखी जाती थी। वही बात करें ग्रामीण प्रतिनिधियों में साक्षरता के स्तर में कमी की जिसकी वजह से ग्राम पंचायत के प्रधान या सरपंच ग्रामीण क्षेत्रों को लेकर दूरदर्शी सोच या दृष्टिकोण नहीं रखते हैं। यहां तक कि महिला प्रतिनिधियों के कार्य उनके परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। हमारा देश 5 ट्रिलियन इकॉनमी के सपने देख रहा है लेकिन हमारी ग्राम पंचायतें अभी भी पैसों और फंड की कमी झेल रही है। ग्राम पंचायतों के पास राजस्व का अपना कोई स्तोत्र नहीं होता है। आज भी ग्राम पंचायत अपनी किसी भी विकास कार्य के लिए राज्य या फिर केंद्रीय वित्त आयोग के सहायता राशि पर निर्भर है।

ग्राम पंचायत को सशक्त बनाने में आम सहभागिता जरुरी

हालांकि पंचायती राज को सशक्त बनाने के लिए सरकार द्वारा तो कदम उठाये जा रहे है लेकिन निजी स्तर व ग्रामीण स्तर पर भी काम करने की जरूरत है। ग्राम पंचायतों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए युवाओं की सहभागिता को बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। ग्रामीण आजीविका वृद्धि में स्थानीय संसाधनों के ज्यादा से ज्यादा उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ग्राम पंचायतों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने के साथ ही वहां आजीविका के पर्याप्त संसाधन सृजित करने पर बल दिया जाना चाहिए।भारत के विकासशील से विकसित होने का सफर ग्रामीण विकास के माध्यम से ही पूर्ण होगा। केंद्रीय सरकार ने भी कई ऐसे दूरदर्शी सामाजिक तथा आर्थिक योजनाओं की शुरुआत की है जो न सिर्फ पंचायती व्यवस्था को सुधार करेगा बल्कि ग्रामीणों के जीवन को जल्द ही बदलाव देखने को मिलेगा।