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August 5, 2025

Excellence Awards Edition 3 | Speech by Amit Upadhyay, Editor-in-Chief, The CSR Journal

The CSR Journal Magazine

तेरे दामन में तेरा चाँद है तो होगा ऐ फ़लक,

पर देख तेरे सितारे मेरी महफ़िल में उतर आए हैं।

क्या अपना पर्यावरण बचाने, अपने किसान भाइयों की मदद करने, किसी हुनरमंद को मौका देने और अपनी बेटियों को बचाने और पढ़ाने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार, न जी ओ और कॉर्पोरेट्स की हैं?

आज यह बैठ कर ये सारी बातें करना शायद बहुत मामूली और छोटा लगे पर ये हमारा पहला कदम हो सकता हैं मीलों की दूरी तय करने का।

वुमन एम्पावरमेंट – शायद कभी किसी ने इस पर गौर नहीं किया कि इस एक शब्द ने अपने भीतर कितने अर्थ समेटे हुवे हैं। अगर आज भी इस शब्द का प्रयोग करना पड़ रहा हैं तो इसकी वजह हैं हमारा इस सोच से बाहर न निकल पाना की पुरुष ही प्रथम हैं और स्त्री शारीरिक, मानसिक और हर तरह से पुरुष से कमज़ोर हैं। हमारा पुरुष सत्तात्मक समाज आज भी कही न कही एक सशक्त महिला के वजूद को स्वीकार करने में हिचकिचाता है।

एक औरत जब गर्भ धारण करती हैं तब से लेकर एक नये जीवन के इस संसार मे आने तक हर पल एक माँस के टुकड़े को अपना लहूँ और अपनी सांसे देकर उसमे प्राण डालती हैं। ऊपर वाले के बाद एक मात्र औरत ही है जो एक जीव का सृजन कर सकती है। वास्तव में देखा जाए तो राम , रहीम और यीशु को भी अवतार लेने के लिए एक औरत के गर्भ की शरण लेनी पड़ी थी। ज़रा सोचिए जो स्वयं सृष्टि के रचयता की जननी हैं वो स्त्री कमज़ोर कैसे हो सकती हैं?

मैं अपने देश की सारी महिलाओ का शत शत नमन करता हूँ। आत्म निर्भर और पढ़ी लिखी महिला से मजबूत कोई स्तंभ नहीं हैं और उस पुरुष जैसा कोई रोल मॉडल नहीं हैं जो महिलाओं के साथ हर परिस्तिथि में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहे।

सोच को बदलो, सितारे बदल जाएँगे

नज़र को बदलो नज़ारे बदल जाएँगे

कश्तियाँ बदलने की ज़रूरत नहीं

दिशाओं को बदलो किनारे बदल जाएँगे।

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