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June 3, 2025

हमारी धरती की है हार्टबीट और एक नब्‍ज, धड़कता है दिल 

न्‍यूयॉर्क यूनिवर्सिटी जियोलॉजिस्‍ट माइकल रैम्पिनो और उनकी टीम ने धरती के रहस्‍यों का पता लगाने के लिए एक स्‍टडी की थी। माइकल के मुताबिक पृथ्‍वी की अपनी एक हार्टबीट और उसकी नब्‍ज भी है जो 2.75 साल की हो चुकी है। 2.75 करोड़ साल में एक बार धड़कता है ‘धरती का दिल’! 
पिछले 26 करोड़ सालों में धरती से डायनासोर खत्म हो गए। पैंजिया (Pangea) टूटकर अलग-अलग महाद्वीपों में बदल गया। लेकिन इंसानों ने धरती को बहुत तेजी से बदला है। मानव जाति के अस्तित्व के बाद धरती जितना बदली, उतना ये करोड़ों सालों में नहीं बदली। प्राचीन भूगर्भीय घटनाओं के अध्ययन से पता चला है कि धरती समय-समय पर खुद को स्वस्थ रखने के लिए 2.75 करोड़ साल में एक बाद बदलाव लाती है, यानी उसका भूगर्भीय ‘दिल धड़कता’ है। जब यह धड़कता है तो ज्वालामुखी फटते हैं, सुनामी आती है, समुद्री जलस्तर बढ़ता है, भूकंपीय Tectonic Plates शिफ्ट होती हैं, यानी प्रलय आता है।

2.75 करोड़ साल में एक बार धड़कता है धरती का दिल

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के भूगर्भशास्त्री माइकल रैंपिनो और उनकी टीम की स्टडी के मुताबिक अगली बार धरती का दिल करीब 2 करोड़ साल के बाद धड़केगा। यानी 2 करोड़ साल के बाद धरती पर फिर प्रलय आएगा। खैर फिलहाल तो इंसान और अन्य जीव सुरक्षित हैं। माइकल कहते हैं कि छोटी-मोटी प्राकृतिक घटनाएं आपदाएं नहीं हैं। बड़ी आपदा तो तब आएगी जब धरती का दिल धड़केगा। उसकी भूगर्भीय नसों में पल्स दौड़ेगी। आंकड़े बताते हैं कि ये एक सामान्य भूगर्भीय प्रक्रिया है, जो अचानक नहीं होती। कई भूगर्भीय हलचलों की एक शृंखला होती है जो आपस में संबंधित होती हैं। जब सारा क्रम एक साथ जुड़ता है तब धरती का दिल धड़कता है। ये ठीक वैसा ही है जैसे किसी इंसान की सांस अटक जाए, वह हाथ-पैर मार रहा हो, पसीने छूट रहे हों, उसके अंग कांपने लगे, अंत में जैसे ही एक बार सांस आती है, तब सबकुछ सामान्य हो जाता है। ठीक इसी तरह धरती की धड़कन अटकी हुई है। जैसे ही एक बार पूरी होगी, सब कुछ सही हो जाएगा लेकिन भारी तबाही के बाद।

धरती एक ही सांस में ला सकती है तबाही

करोड़ों सालों की स्टडी में ये पता चला कि है जब भी धरती सांस लेती है तब समुद्री और गैर-समुद्री जीवों का सामूहिक संहार होता है। सुनामी जैसी भयानक गतिविधियां होती है। महाद्वीप टूटकर बिखर जाते हैं। कुछ समुद्र में चले जाते हैं, तो कुछ समुद्र के अंदर से बाहर निकल आते हैं। पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति में परिवर्तन होता है। टेक्टोनिक प्लेट आपस में टकराकर या अलग होकर संतुलन बनाने का प्रयास करती है। हर 2.75 करोड़ साल में ऐसी गतिविधियां होती है। अगली गतिविधि करीब 2 करोड़ साल के बाद होगी। भूगर्भशास्त्री और वैज्ञानिक ऐसी गतिविधियों का अध्ययन कई सदियों से कर रहे हैं। इससे पहले 1920 और 1930 के बीच वैज्ञानिकों ने धरती की धड़कन आने का समय अंतराल 3 करोड़ साल बताया था। 1980-90 में यह 2.62 करोड़ से लेकर 3.06 करोड़ साल के बीच बताया गया था।
लेकिन अब नई स्टडी ज्यादा सटीक बताई जा रही है। पिछले साल की गई स्टडी के अनुसार प्रलय आने का अंतराल 2.75 करोड़ साल है। यानी लगभग इतने सालों के गैप के बाद धरती खुद-ब-खुद अपने आप को स्वस्थ करने के लिए परिवर्तन करती है। इसकी सबसे बेहतरीन स्टडी साल 2018 में मुलर और ड्यूकिविज ने की थी।
साल 2018 की स्टडी में University Of Sydney के दोनों रिसर्चर ने लिखा था कि उन्होंने धरती के कार्बन साइकिल और Tectonic Plate का अध्ययन किया था, जिसमें उन्होंने प्रलय आने यानी धरती पर बड़े स्तर के भूगर्भीय बदलाव का साइकिल 2.60 करोड़ साल बताया है। माइकल रैंपिनो की स्टडी में करीब 90 इवेंट ऐसे हैं जो समुद्री सामूहिक संहार का जिक्र करती हैं। लेकिन धरती पर भूगर्भीय धड़कन की साइकिल 2.60 करोड़ से 3.0 करोड़ साल है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इसकी वजह क्या है।

Meteorite टकराने से आता है प्रलय 

माइकल की एक स्टडी में यह बात बताई गई है कि ऐसे प्रलय उल्कापिंडों के टकराने की वजह से होते हैं। वहीं किसी अन्य शोधकर्ता ने इसकी वजह Planet X को बताया है। लेकिन क्या सच में धरती के अंदर भूगर्भीय ‘धड़कन’ होती है? जी हां, धरती के अंदर टेक्टोनिक प्लेट्स के हिलने और जलवायु परिवर्तन की वजह से धड़कन पैदा होती है। ये एक लंबी भूगर्भीय प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे होती रहती है। लेकिन फिर एक दिन एकसाथ होने पर यह प्रलय जैसी स्थिति बना देती है।

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