आज डॉक्टर्स डे है (Doctors Day), हर साल 1 जुलाई को डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। Healthy Life हर किसी की प्रायोरिटी लिस्ट में टॉप पर होता है। हर कोई स्वस्थ जीवन जीना चाहता है। कहावत भी एक दम सही है Health is Wealth यानी सेहत सबसे बड़ी पूंजी है। हेल्दी व्यक्ति ही लाइफ को सही तरह से जी सकता है, एन्जॉय कर सकता है। इसके लिए डॉक्टर्स का रोल बहुत अहम होता है। छोटी बड़ी हर तरह की बीमारियों को डॉक्टर्स की मदद से ठीक किया जा सकता है। शायद इसलिए, इन्हें भगवान का दर्जा मिला हुआ है। हमें बीमारियों से बचाकर ठीक करने वाले डॉक्टरों के सम्मान में ही आज डॉक्टर्स डे (Doctors Day 2024) मनाया जा रहा है। किसी भी बीमारी या महामारी में डॉक्टर्स ही हमें मजबूती देते हैं जो ढाल बनकर गंभीर से गंभीर बीमारियों से हमें बचाते हैं।
आइये जानते है डॉक्टर्स की परेशानियां
हमारी जान बचाने वाले, हमें स्वस्थ शरीर देने वाले, हमारी बताई और बिना बताई हर समस्या का इलाज करने वाले डॉक्टर्स सिर्फ एक दिन ही नहीं बल्कि हर रोज सम्मान के हकदार है। डॉक्टर्स की लाइफ चुनौतियों से भरी है। ऐसे में क्या आपने कभी सोचा है कि हम सभी को ठीक करने वाले डॉक्टर आखिर खुद कितने सेहतमंद है। क्या उन्हें कोई प्रॉब्लम्स नहीं होती हैं। वे आखिरकार किन-किन दिक्कतों के बीच हमारा इलाज करते हैं। आइए जानते हैं उन चुनौतियों के बारें में जिनसे आज हमारे डॉक्टर्स जूझ रहे हैं। रहने के लिए हॉस्टल नहीं, काम का बोझ, कई बार मारपीट, धमकी और कई तरह की समस्याएं डॉक्टर्स को झेलनी पड़ती हैं। आज हम उन्ही डॉक्टर्स की लाइफ और उसमें आने वाले चैलेंजेस के बारे में बात कर रहे हैं।
नहीं है पर्याप्त हॉस्पिटल ना ही है पर्याप्त डॉक्टर
भारत को आजाद हुए लगभग 77 साल हो गए लेकिन आज भी मेडिकल क्षेत्र में पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। भारतीय आबादी का बड़ा हिस्सा बीमारियों से जूझता है और अस्पतालों में लंबी कतारों के साथ सुविधाओं का अभाव है। जहां Medical Diagnostic Equipment पुराने पड़ गए हैं। अपने देश में अस्पतालों (Hospitals and Doctors in Indian) और डॉक्टरों की उपलब्धता जनसंख्या के घनत्व के हिसाब से कम है और सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं, इंफ़्रा, डॉक्टर्स, दवाइयों, कुशल व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य सुविधाओं की कमी है। नाइट फ्रैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रति 1,000 लोगों पर 3 Hospital Bed होनी चाहिए ऐसे में इस अनुपात तक पहुंचने के लिए भारत को अतिरिक्त 24 लाख बेड्स की जरुरत है। फिलहाल भारत में अनुमानित 70,000 अस्पताल हैं, जिनमें से 63 फीसदी प्राइवेट हॉस्पिटल है। इन्हीं आभावों के चलते अपने देश में निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को विस्तार करने का मौका मिल गया जिसका गरीब लोगों से कोई वास्ता नहीं।
महाराष्ट्र रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन डॉक्टर्स के हक़ के लिए करती है काम
इस वजह से सरकारी अस्पतालों में बहुत ज्यादा प्रेशर है। डॉक्टरों पर बहुत ज्यादा प्रेशर है। डॉक्टरों को सुविधाएं, उनका हक़ मिले इसके लिए महाराष्ट्र में Maharashtra State Association of Resident Doctors (MARD) लगातार काम करती आ रही है। सरकार और डॉक्टरों के बीच सामंजस्य बिठाकर जनता की हित और मरीजों को बेहतर इलाज के लिए MARD काम करती आ रही है। Dr. Abhijit Helge, State President, MARD ने The CSR Journal से ख़ास बातचीत करते हुए बताया कि MARD के अथक प्रयासों से महाराष्ट्र में रेजिडेंट डॉक्टरों के हालात में कभी हद तक सकारात्मक बदलाव आया है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर डॉक्टरों को अगर सुविधाएं मिले तो देश की मेडिकल व्यवस्था में काफी हद तक सुधार आ सकता है।
डॉक्टर के लिए ये है परेशानी का सबब
डॉक्टर का पेशा एक नोबल पेशा माना गया है, एक आम नागरिक डॉक्टर्स को भगवान का दर्जा देता है। लेकिन ये डॉक्टर्स बहुत ही बुरे हालात में अपनी सेवाएं देते है। हम और आप किसी भी दफ्तर में कितना काम करते होंगे। कितने घंटे काम करते होंगे। सरकारी बाबू 8 घंटे, हम और आप ज्यादा से ज्यादा 12 घंटे, पुलिस 18 से 20 घंटे लेकिन हमारे रेजिडेंट डॉक्टर्स कम से कम 24 घंटे काम करते है। इनका वर्किंग हॉर्स 24-48 घंटे होते है। इस दौरान इन्हे ना नींद मिलती है और ना ही आराम। बिना सोये ये लगातार मरीजों की सेवा में लगे रहते है। सरकारी अस्पतालों में ये आम बात है। नेशनल मेडिकल कमीशन का नियम कहता है कि इन रेजिडेंट को वीक ऑफ देना जरुरी है। कभी कभी आलम ऐसे होते है कि इन्हे वीक ऑफ भी नहीं मिलता।
जर्जर हालात में रहने को मजबूर रहते है रेजिडेंट डॉक्टर्स, हिंसा के होते है शिकार
अगर 48 घंटों बाद इन्हे हॉस्टल जाने की इजाजत मिल जाती है तो इनके लिए हॉस्टल किसी नर्क से काम नहीं होता। Doctors Hostel जर्जर हालात में होते है। एक एक कमरे में 5-6 रेजिडेंट डॉक्टर्स रहते है। इन हॉस्टल्स में सुख सुविधाएं भी नहीं होती। ताकि ये डॉक्टर्स इत्मीनान से आराम कर सकें। कई राज्यों में रेजिडेंट डॉक्टर्स को बहुत कम और वो भी समय पर स्टायपेंड नहीं मिलता। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एक सर्वे के मुताबिक, कई बार लोग डॉक्टरों से लड़ाई कर लेते हैं या उन पर हमले कर देते हैं या फिर उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमें दायर कर दिए जाते हैं, जिनके डर से डॉक्टर्स जूझ रहे हैं। आईएमए के एक अध्ययन के अनुसार, 75 फीसदी से अधिक डॉक्टरों ने कार्यस्थल पर किसी न किसी प्रकार की हिंसा का सामना किया है. ज्यादातर मामलों में मरीज के परिजन शामिल थे। इसके अलावा नींद की कमी, तनाव हावी होना, सामाजिक चुनौतियों और रूढ़िवादिता के चलते देश में बड़ी संख्या में डॉक्टर्स मानसिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सर्वे की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में 82.7% डॉक्टर्स तनाव में हैं।
पर्सनल स्पेस की कमी, खुद को फिट रखना है चुनौती
सरकारी डॉक्टर हों या प्राइवेट आज भी भारत में इनकी संख्या काफी कम है। भारत में 1 डॉक्टर के ऊपर 834 मरीज का दवाब है। अब आप खुद ही सोचिए कि डॉक्टर्स की लाइफ कितनी व्यस्त होगी। कई बार त्योहार हो या कोई खास दिन डॉक्टर्स को ड्यूटी पर आना ही पड़ता है। अक्सर डॉक्टर्स की शिकायत रहती है कि वो अपनी फैमिली को टाइम नहीं दे पाते हैं। डॉक्टर्स का काम दिन-रात यानी 24 घंटे का होता है। ऐसे में खुद को फिट रखना भी उनके लिए बड़ी चुनौती बन जाता है। कई बार डे शिफ्ट और नाइट शिफ्ट में काम करना पड़ता है। ओवर टाइम भी करना पड़ता है। ऐसे में न खाने के लिए वक्त मिलता और न ही सोने के लिए। इस लाइफस्टाइल में लंबे समय तक खुद को फिट रखना बड़ी चुनौती बन जाता है। डॉक्टर्स के ऊपर खुद को फिट रखने की भी बड़ी जिम्मेदारी होती है। कई बार डॉक्टर्स के ऊपर कई तरह के दबाव भी बनाएं जाते हैं। बहुत सारे लोग डॉक्टरों को भगवान मानते हैं वो ठीक है, लेकिन डॉक्टर सब कुछ ठीक कर दें ये भी जरूरी नहीं है। इलाज करवाने आए लोग कई बार उन पर पैसे का दबाव या फिर किसी बड़े नाम का भी दबाव बनाते हैं। जिससे उन्हें प्रेशर में काम करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।