तेरा धिआन किधर है मेरा सीएसआर इधर है
साल 2015 शुरू हो गया है और यह पहला वित्तीय वर्ष होगा जब भारतीय कार्पोरेट जगत को सीएसआर यानि कार्पोरेट सामाजिक दायित्व के तहत किए गए अपने काम का लेखा जोखा कार्पोरेट मंत्रायल के समक्ष रखना होगा। बीते दो बरसों से कार्पोरेट और सोशिअल जगत में सीएसआर को लेकर काफ़ी कुछ कहा और सुना गया, अलग अलग राय मश्विरे दिए गए। लेकिन साथ ही एक और नई चीज़ नज़र आई – सीएसआर या भलाई के काम काज के प्रचार प्रसार के लिए अनोखे एवं रचनात्मक तरीकों का इस्तेमाल। जैसे ये सब कह रहे हों – तेरा धिआन किधर है – ये मेरा सीएसआर इधर है ।
इन्होंने खींचा ध्यान:
आइस बकेट चैलेंज पूरे विश्व में पर्यावरण के प्रति जागरुगता फैलाने का अभियान बना तो देश में राइस बकेट चैलेंज की शुरुवात कर कुछ लोगों ने ग़रीबी, भूखमरी और कुपोषण के प्रति आम लोगों और खासकर कॉर्पोरेट इंडिया का ध्यान खींचा। वहीं ऐक्टर वरुण पुर्थी ने अपने ‘God has send me’ सोशिअल एक्सपेरिमेंट वीडियो अभियान के तहत ग़रीब मगर मेहनतकश्त लोगों को 1000 रुपये के नोट बांटे और दिखाया कि आचानक धन प्राप्ति से इन ग़रीबों को कितनी खुशी मिली। एक हज़ार रूपये की कीमत मध्याम, उच्च मध्यम और रईस वर्ग के लिए ज्यादा नहीं मगर जिसकी रोज़ की कमाई ही सौ-दो सौ रूपये हो उसके लिए 1000-500 रूपये बड़ी सहायता हो जाती है।
कॉर्पोरेट इंडिया के लिए सीख:
लेकिन ध्यान खींचना ही सब कुछ नहीं है, इन रचनात्मक संदेशों में एक बड़ी सीख छीपी है – कॉर्पोरेट जगत के लिए। एक तो अपने सीएसआर के कार्यों के प्रचार प्रचार के लिए क्रिएटिव तरीकों का इस्तेमाल, जो विज्ञापन एजेंसियों ने शुरु भी कर दिया है। लेकिन उससे बड़ा संदेश है – इस रचनात्मकता को अपने सीएसआर के कामकाज में ले आता ताकि भारत की जटिल सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का निपटारा किया जा सके।
रचनात्मक सीएसआर के बिंदु
- संवृद्ध डेटा और कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर कॉर्पोरेट जगत सामाजिक एवं पर्यावरण की समस्याओं को बड़े पैमाने पर निपटा सकता है
- टॉप मैनेजमेंट में अगल अलग क्षेत्रों के अनुभवी लोगों को शामिल करने से वैश्विक समस्याओं को निपटाने में मदद मिलेगी साथ कंपनी भी तरक्की करेगी
- कंपनियों को देश के भीतर और दुनियाभर में मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए आने आना चाहिए, इसे कंपनी के बिज़नेस अजेंडा का हिस्सा बनाना चाहिए
- महिलाओं और बच्चियों के सशक्तिकरण के लिए कॉर्पोरेट इंडिया सीधे तौर पर अपनी रणनीति में रचनात्मक बदलाव ला सकता है
- लिंक्डइन पर पिछले साल करीब 35 लाख प्रोफेशनल्स ने अपनी प्रोफ़ाइल्स में सामाजिक सरोकार के कामों में स्वयंसेवक की भूमिका अदा करने की इच्छा ज़ाहिर की। कॉर्पोरेट इंडिया को ऐसे प्रोफेशनल्स को तरज़ीह देनी चाहिए
- पर्यावरण, मौसमी बदलाव और उसके निदान को वैश्विक कार्पोरेट में कफ़ी अहमिअत मिली है, भारतीय कॉर्पोरेट को इससे सीखना होगा
- वहीं सीएसआर इस शब्द को लेकर भी क्रिएटिव कम्यूनिकेशन की आवश्यकता है क्योंकि कई मायनों में कॉर्पोरेट सोशिअल रिसपांसिबिलिटी के प्रति लोगों में नकारात्मक मानसिकता पनपी है
कुल मिलाकर कॉर्पोरेट इंडिया को अपनी कथनी और करनी दोनों में तालमेल बिठाना होगा। साल 2015 सिर्फ कानूनी तौर से सीएसआर के नियमों के पालन की शुरुवात भर नहीं बनकर रह जाए, बल्कि इसे लागू करने में, योजनाएं बनाने में और सिद्धांतों को तय करने में भी रचनात्मकता लानी होगी। तभी साल 2015 सीएसआर के लिए क्रिएटिव और रोमांचकारी साल बन पाएगा, इसमें ना सिर्फ भारतीय कॉर्पोरेट बल्कि सीएसआर से जुड़े तमामा पेशेवर लोगों, यहां तक कि – कर्मचारियों, शेयरधारकों, निवेशकों और उपभोक्तों को भी रचनात्मक योगदान करना होगा.