सपनों की नगरी मुंबई में देश के कोने कोने से लोग रोजी रोटी की तलाश में आते है लेकिन इस लॉक डाउन ने इन मजदूरों को वो दंश दे गया जो शायद ही कभी ये भूलेंगे। कोरोना की संकट में लाखों की संख्या में मजदूर फंस गए है, सिर्फ मुंबई ही नहीं देश के कोने कोने से लोग दूसरे राज्यों में गए और लॉक डाउन की वजह से पिछले डेढ़ महीने से वो सभी अपने छोटे छोटे घरों में रहने को मजबूर हो गए है। एक आस जगी, मजदूरों की दिक्कतों और व्यथा को सरकारों ने समझा और अपने अपने मुलुक जाने के लिए एक पहल की शुरवात हुई, एक मई से प्रवासी मजदूर अपने अपने गांव, अपने अपने घर जाने लगे।
फंसे मजदूरों के श्रमिक ट्रेन से मुलुक जाने की राह आसान नहीं
लेकिन प्रवासी मजदूरों की ये राह आसान बिलकुल नहीं है। खासकर अगर हम मुंबई की बात करें तो यहाँ देश के अन्य शहरों के मुकाबले प्रवासी मजदूरों की संख्या लाखों में है, एक आकड़ों के अनुसार अकेले महाराष्ट्र में 10 लाख प्रवासी मजदूर मुंबई और महाराष्ट्र के शहरों में फंसे हुए है, इनकी श्रमिक ट्रेन से मुलुक वापसी में बहुत बाधाएं आ रही है। मुंबई की सड़कों पर मंगलवार को दो तरह की भीड़ देखने को मिल रही है एक तो शराबियों की ठेकों पर तो दूसरी प्रवासी मजदूरों का डॉक्टरों के क्लिनिक और पुलिस स्टेशनों में। प्रवासी मजदूरों को दर दर भटकने पर मजबूर किया जा रहा है। जहां एक तरफ मुलुक जाने का रजिस्ट्रेशन जटिल है वहीं इसे पूरा करने में मजबूरन लोगों को घरों से बाहर निकलना ही पड़ेगा।
दरअसल तीसरे चरण के लॉकडाउन शुरु होने के पहले केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को उनके गांव जाने की इजाजत भी दे दी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार की तरफ से तैयार की गयी कार्यपध्दति की वजह से गांव जाने के इच्छुक मजदूरों से लूट शुरु हो गयी है। पिछले दो दिनों से गरीब मजदूर अस्पताल और पुलिस थानों का चक्कर लगा रहे हैं। जिसकी वजह से सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन नहीं हो पा रहा है। मजदूरों से फार्म, डॉक्टर के सर्टिफिकेट आदि के लिए पैसे मांगे जा रहे हैं।
मजदूरों के श्रमिक ट्रेन के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना जटिल है प्रक्रिया
महाराष्ट्र सरकार की तरफ से मजदूरों के लिए उनके गांव जाने के लिए नियम बनाये गए है जिसके तहत उनके गृह प्रदेश का आधार कार्ड, मोबाइल नंबर एवं पंजीकृत डॉक्टर से चिकित्सा प्रमाण पत्र अनिवार्य किया गया है। मुंबई महानगर क्षेत्र में डीसीपी को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है। पुलिस थाने में फार्म भरने के लिए कहा गया है। जिसकी वजह से फार्म के लिए पुलिस थाने के बाहर एवं चिकित्सा प्रमाण पत्र के लिए अस्पताल एवं दवाखाने के बाहर मजदूरों की कतार लग रही है। मजदूरों को गांव जाने की अनुमति के बाद दलाल भी सक्रिय हो गए हैं, मजदूर पिछले डेढ़ महीने से बेरोजगार हैं। रहने के लिए घर और खाने के लिए राशन नहीं होने की वजह से हर हाल में गांव जाना चाहते हैं। जिसका फायदा उठाने की लुटेरों की टोली सक्रिय हो गयी है। पुलिस की तरफ से जारी फार्म के लिए 50 से 100 रुपये वसूल किया जा रहा है। जबकि डॉक्टर के सर्टिफिकेट के लिए 100 से 500 रुपये मांगे जा रहे हैं।
श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन के किराये पर राजनीति
केंद्र सरकार का मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए चलाई गई श्रमिक ट्रेनों के किराये पर राजनीति शुरु हो गई हैं। विपक्ष किसी भी तरह से इस मामले में केंद्र सरकार को बख्शने को तैयार नहीं है। पहले ये कहा गया कि इन मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए ट्रेन कोई किराया नहीं लेगा, इनका किराया प्रदेश सरकार को भुगतना होगा इसके लिए रेलवे की ओर से एक लेटर भी जारी किया गया था। लेकिन यात्रियों से किराया वसूलने पर प्रवासी मजदूरों को लेकर जमकर राजनीति हुई। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी सवाल उठाये। अब तो प्रदेश सरकार के नेताओं की ओर से भी इसमें अपनी-अपनी सफाई दी जा रही है और वो किराये का खुद भुगतान करने की बात कह रहे हैं।
दरअसल सबसे बड़ा कंफ्यूजन इस बात को लेकर पैदा हुआ है कि जब इन मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जाएंगी तो इनसे पैसे क्यों लिए गए। अब सभी प्रदेश सरकारें इन मजदूरों का किराया वहन करने के लिए तैयार हो गई हैं। इससे पहले इन मजदूरों को टिकट देकर उनसे पैसे लिए, इसी बात को लेकर विवाद पैदा हुआ। फिर सफाई देने का सिलसिला शुरू हुआ। जिसे रेलवे ने लेटर जारी कर साफ किया कि वो सिर्फ 85 फीसद किराया ले रहे हैं बाकी 15 फीसद ही किराया लिया जा रहा है। ये 15 फीसद भी प्रदेश सरकारें लेकर उसे रेलवे को देंगी।
मुंबई से नहीं छूटेगी ट्रेन?
बहरहाल अभी तक नासिक, वसई रोड और भिवंडी से ही उत्तर भारत की ओर श्रमिक ट्रेन गयी है। लाखों मजदूरों को मुंबई से कब उत्तर प्रदेश बिहार भेजा जायेगा इसकी जानकारी कोई नहीं दे रहा है। बस फॉर्म ही भरवाए जा रहें है। सूत्रों की माने तो मुंबई में कंटेंटमेंट जोन होने की वजह से मुंबई के किसी भी स्टेशन से फिलहाल बाहरगांव के लिए ट्रेन छोड़ने का विचार सरकार ने नहीं किया है। लिहाजा फंसे मजदूरों के मुलुक जाने की राह आसान नज़र नहीं आ रही है।