महाराष्ट्र में सियासी घमासान जारी है, देवेंद्र फड़नवीस फिलहाल अल्पमत की सरकार के सरदार है या उनके पास पूर्ण बहुमत है ये अभी तक सिद्ध नहीं हो पाया है, सुप्रीम कोर्ट ने भी इसपर अभी तक कोई फैसला नहीं किया है लेकिन इस बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने अपना पदभार मंत्रालय पहुंचकर संभाल लिया है, कार्यभार संभालने के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने जो पहला काम किया वाकई में समाज को आईना दिखाने वाला है, देवेंद्र फड़नवीस जैसे ही मंत्रालय अपने दफ्तर पहुंचे उन्होंने उस चेक पर पहले सिग्नेचर किया जिसके लिए एक जिंदगी जद्दोजहद में थी। देवेंद्र फडणवीस ने सोमवार को मंत्रालय पहुंचकर सबसे पहले मुख्यमंत्री राहत कोष के चेक पर हस्ताक्षर किए जिसे मुख्यमंत्री ने कुसुम वेंगुरलेकर को सौंप दिया।
हम आपको बता दें कि मुख्यमंत्री राहत कोष के जरिये महाराष्ट्र के गरीब जरूरतमंद मरीजों की बड़ी बिमारियों के लिए जरुरत के हिसाब से आर्थिक मदद मुहैया कराई जाती है, मुख्यमंत्री वैधकीय चिकित्सा निधि खुद सीएम के अधीन आता है और गरीब मरीज को मदद की जाती है। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद से जरूरतमंद मरीजों को मिलने वाली यह सुविधा बंद हो गई है, जिसके कारण तमाम मरीजों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। जिंदगी की आस लिए महाराष्ट्र के कोने कोने से आर्थिक मदद के लिए जनता मंत्रालय पहुँचती थी लेकिन वहां राहत कोष बंद कर दिया था लेकिन जब ये मामला सुर्ख़ियों में आया तब खुद देवेंद्र फड़नवीस ने राज्यपाल से मिलकर मुख्यमंत्री वैधकीय चिकित्सा निधि को वापस सुचारु रूप से चालू करने की अपील की थी, बाद में राज्यपाल ने इसे मंजूर कर मरीजों को दिक्कत न हो इसके लिए आयुष्मान भारत के ऑफिस के जरिए प्रक्रिया को अगले आदेश तक पूरा किया जाएगा ऐसी बात कही गई।
विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद देवेंद्र फड़नवीस ने शनिवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, जबकि एनसीपी नेता अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। महाराष्ट्र की सियासत में उस दिन के बाद से ही भूचाल आ गया है। जब से राष्ट्रपति शासन लग तब से राज्यभर में 8 हजार से अधिक जरूरतमंद मरीज स्कीम का लाभ लेने के लिए इधर से उधर भटके लेकिन महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने के बाद देवेंद्र फड़नवीस ने जो पहला काम किया वो सामाजिक है और जनता के हित का है। एक आकड़ों की माने तो पिछले पांच साल में इस स्कीम के जरिए 21 लाख से अधिक मरीजों को तकरीबन 1600 करोड़ रुपये की मदद इलाज के लिए दी जा चुकी है।