दूल्हे की मांग-बिना दिखावे की हों शादी की रस्में
दूल्हे और वर पक्ष की इन अनोखी मांगों को सुनकर लड़की वालों ने सभी मांगे सहर्ष मान लीं और पारंपरिक रीति रिवाजों के साथ विवाह संपन्न हुआ।
Hindu Sanskar में विवाह है सबसे पवित्र अनुष्ठान
Hindu Sanskar: वेदों के अनुसार, विवाह धर्म (कर्तव्य), अर्थ (धन और अन्य संपत्ति अर्जित करना), काम (शारीरिक और अन्य इच्छाएं) और मोक्ष (शाश्वत मुक्ति) को एक साथ आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता के साथ एक पुरुष और स्त्री इकाई के बीच एक मिलन है। वेदों ने गर्भधारण से लेकर विवाह, वृद्धावस्था और मृत्यु तक जीवन के विभिन्न चरणों के लिए सोलह विभिन्न संस्कारों की स्थापना की है। संस्कृत में संस्कार शब्द का अर्थ है ‘चेतना पर अमिट छाप छोड़ना और खुद के हर पहलू को विकसित करना।’ शास्त्रों और परिणामस्वरूप हिंदू धर्म में सोलह संस्कारों में से, विवाह संस्कार की पवित्र प्रथा सबसे महत्वपूर्ण है और जीवन की यात्रा में एक मील का पत्थर है। विवाह संस्कार एक जोड़े के जीवन को भागीदार के रूप में प्रभावित करता है और उन्हें समाज में निर्माता के रूप में अपना सही स्थान लेने में सक्षम बनाता है।
दिखावे और मनोरंजन का ज़रिया
Hindu Sanskar: हिंदू विवाह सिर्फ गाना-बजाना और डांस का आयोजन नहीं है। यह एक विधिवत धार्मिक संस्कार है, जिसे मानवीय व सामाजिक मूल्यों की मर्यादा का पालन करते हुए सम्पन्न करना आपेक्षित होता है। इसलिए विवाह को सोलह संस्कारों में स्थान मिला है। अब हिंदू विवाहों में गाना-बजाना और नाचना तथा पीना-पिलाना आदि अनिवार्य रूप से प्रवेश कर गए हैं। कभी होता रहा होगा, सादगी के साथ विवाह, पर अब विवाह का अर्थ है तड़क-भड़क और दिखावा! और यह कोई हिंदू शादियों में ही नहीं, बल्कि अन्य समुदायों के विवाहों में अनिवार्य रस्म बन गई है। शादी में पुरोहित मंत्र भी पढ़ता है और सप्तपदी भी संपन्न होती है, लेकिन नाच-गाना और बजाना भी बखूबी चलता है।Hindu Sanskar-लोग शादी में अपना स्तर, रुतबा और झूठी शानो-शौकत का प्रदर्शन करने के लिए कर्ज लेकर भी महंगी शादियां आयोजित कर रहे हैं। किसे सिर्फ लेडीज संगीत में बुलाना है, किसे सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है, किसे कॉकटेल पार्टी में बुलाना है, और किस VIP परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है! इस आमंत्रण में अपनेपन की भावना खत्म हो चुकी है। सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है। भौतिकता की पराकाष्ठा के समय में, जिसमें प्रत्येक कार्य व रिश्तों को धन की बुनियाद पर खड़ा किया जाने लगा है और वो सम्पूर्ण मानव जाति के लिये घातक कदम साबित हो रहा है, सम्प्रति विवाहों में धन का प्रदर्शन किन-किन तरीकों से होने लगा है-सब कल्पनातीत है। ना तो परवाह है रीति रिवाजों की, ना सामाजिक मूल्यों की! बस यदि है तो Menu में कितने प्रकार के व्यंजन हैं, पेय पदार्थ कितने हैं, बाहरी साज सज्जा कैसी है! यदि इसमें कोई कमी रह जाती है, तो सगे सम्बन्धी, मित्रगण अपनी प्रतिकूल टिप्पणी करने में देरी नहीं करते, जबकि विवाह सामाजिक समरसता को उर्वर बनाने का माध्यम है।
इन सबकी आलोचना से बचने के लिए इंसान, जिसके पास धन की कमी है, वो किसी वित्तीय संस्था या साहुकार से कर्ज लेकर उनकी आलोचना से बचने का प्रयास करता है। इस झूठी संस्कृति ने निम्न वर्ग को उच्च वर्ग की नकल करने के लिए, अपना शोषण करवाने को मजबूर कर दिया है। अब विवाहों में नैसर्गिक खुशियों का स्थान कृत्रिम साधनों के द्वारा अर्जित खुशियों ने ले लिया है, जिसमें मानसिक संतुष्टी के स्थान पर मानसिक अवसाद पनपने लगा है, जिसके चलते सात जन्म की कसमों से बंधा रिश्ता 7 कदम भी साथ नहीं चल पा रहा है।