इस तस्वीर में ऐसी क्या खास बात है? शायद आप सभी इस चेहरे से नावाकिफ होंगे। ये बिहार के एक बाहुबली ब्रिजेश सिंह है जो कई मासूम और नाबालिक अनाथ बच्चियों के साथ बलात्कार के मामले में गिरफ्तार हुए हैं। अब एक बार फिर इस तस्वीर को देखिए। क्या इसके चेहरे की हँसी किसी शैतान या नरभक्षी की विजेता हँसी नही लगती? हाथों में हथकडी और चेहरे की यह मुस्कान हमारे समाज हमारी सरकार और हमारी कानून व्यवस्था के मुह पर एक करारा तमाचा है। ये हँसी उस यकीन की है जो जानती है कि एक भ्रष्ट तंत्र और अंधी सरकार इस नरपिशाच का कुछ नहीं बिगाड सकती। ये हँसी मजाक उडाती है हमारी संवेदनाओ, हमारी भावनाओं और हमारे खोखले लोकतंत्र का जो हम सभी को जीने का समान आधिकार देती है। वरना क्या कसूर था उन मासूम बच्चियों का जिन्हें इस आदमखोर की वासना और हैवानियत का शिकार बनना पडा?
हम फिर खामोश हैं। क्योंकि वो बच्चियाँ हमारी नही हैं। हम खामोश है क्योंकि मामला एक तथाकचित बाहुबली से जुडा है जिसकी सरकार में बहुत उँची पहुँच है। हम चुप हैं क्योंकि ब्रिजेश सिंह खुद तीन-तीन अखबारों के मालिक हैं। हम खामोश हैं क्योंकि खामोश रहना हमारी आदत में शुमार हो चुका है।
बिहार के एक बालिका गृह में, जो ‘सेवा संकल्प’ नामक एक एन जी ओ है और ब्रिजेश सिंह के द्वारा संचलित था सात से सत्रह वर्ष की अनाथ और अबोध बच्चियों के साथ अमानवीय तरीके से दुराचार और यौनाचार के मामले में तब सामने आया, जब मुंबई स्थित टाटा इंस्टीट ऑफ सोशल साइंस (टी ई स स) ने एक सोशल ऑडिट के तहत इस बालिका गृह का दौरा किया। इस दौरान बच्चियों ने जो आपबिती सुनाई, सुनकर रोंगटे खडे हो गए। इस कुकृत्य में लोकल माफिया और स्थानीय अखबार के मालिक ब्रिजेच सिंह की गिरफ्तारी हुई लेकिन इस पूरे मामले पर सरकार, मीडीया और जनता की खामोशी आशचर्यचकित करने वाली है। बात-बात पर बवाल करने वाली, संदेह के आधार पर पीट-पीट कर जान लेने वाली, कैंडल मार्च कर विरोध जताने वाली जनता खामोश क्यों है? शायद गोमांस, आरक्षण और जातिगत मुद्दों पर खूनखराबा और आगजनी करने वालों को इस मामले में कोई मसाला नजर नही आया। फिल्म जगत और बुद्धिजीवी समाज भी खामोश है। तख्तियों पर अपने भारतीय होने की शर्मिंदगी दर्शाने वाले कलाकर शायद इस बलात्कार कांड की शिकार बच्चियों का धर्म और मजहब नही जान पा रहें है वरना विरोध प्रदर्शन का वे कोई मौका नही छोडते। है कोई कलाकार जो इस कदर शर्मिंदा हो इस घटना से कि अपना पदक और सम्मान लौटा दे?
हमारी मीडिया खामोश है। एक खेल खेला गया पिछले दिनों अविश्वास प्रस्ताव का, जिसे हमारे चैनलों ने सीधे प्रसारण द्वारा हम तक पहुँचाया परंतु इस बलात्कार कांड का कोई सच हमारे सामने रख पाने में मीडिया नाकाम रही। शायद यह मामला उतना दमदार नही था टी आर पी के मामले में । या फिर हमारा निर्भीक मीडिया बाहुबली आरोपी के दबाव में आ गया। यूं भी गिरपद्य्तार हुए आरोपी के चेहरे की निश्चिंतता हमारे तंत्र का खौफनाक और घिनौना चेहरा सामने रखती है।
टी ई स स की ऑडिट रिपोर्ट फरवरी में सामने आई, परंतु इस मामले की फिर मई मे फाइल हुई और आरोपी की गिरपद्य्तारी होने मे एक महिने का वक्त लग गया। यह हमारी बहुमत से चुनी गई सरकार का राज्य है। बिहार मे सुशासप बाबू की सरकार के नाक तले इतना घिनौना कृत्य होता रहा, बच्चिया गायब होती रहीं और किसी को पता तक न चला, या शायद सभी को पता था क्योंकि इस बलात्कार कांड में ब्रिजेश सिंह के साथ और भी कई नाम शामिल हैं। जाहिर है अपनी राजनैतिक शक्तियों के चलते इन सभी को सरकार का संरक्षण प्रप्त है । किस दलदल में गिरता जा रहा है हमारा देश?
कुछ दिनों पहले थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन नामक विश्व की सबसे बडी समाचार एजेंसी ने एक सर्वे रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसके अनुसार महिलाओंके खिलाफ हिंसा और यौन उत्पीडन के मामलों के कारण हमारा देश महिलाओंके लिए असुरक्षित देशो मे विश्व में पहले स्थान पर है। इस रिपोर्ट पर हमारे आम समाज, बुद्धिजीवी वर्ग और सरकारी गलियारों में खूब हो हल्ला मचा। जिस देश में स्त्री को पूजनीय माना जाता है उस देश पर यह आरोप? आज उन सभी हो-हल्ला मचाने वालों के लब खामोश क्यों हैं? क्या इस मामले में उन्हें कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं नजर अया? क्या आगामी चुनाव की रणनीति बनाने वाली हमारी सरकार को इसमें हिंदू-मुस्लिम वाला कोई एंगल नही मिल पाया? क्या विपक्ष को इसमे सत्ताधारी पार्टी को घसीटने का कोई तार नजर नही आया? गोमांस के नाम पर जान लेने वाली जनता को इन मासूम बच्चियों के नोचे हुए जिस्म पर धर्म बाँटना नही आया? प्रधान सेवक जी, फिर प्रर्थना है आपसे, बोलिये और हमे आपने होने का अहसास दिलाइये। मौका है आपके पास आगामी चुनावों मे वोट बटोरने का। मौका है विपक्ष के पास सरकार को नीचा दिखाने और अपने फुर्सत के पलों को इस्तेमाल करने का। मीडिया से अनुरोध है कि अपने कैमरे उन बच्चियों के नोचे-खरोटे गए निजी अंगो पर फोकस करे और विकृत मानसिकता वाली गूँगी जनता का कुछा मनोरंजन करे। रही बात जनता की, तो उनके लिए मौका है फिर अपनी खामोशी इख्तियार करने का, क्यूंकि एक विशाल लोकतंत्र वाले महान देश में उनकी आवाज़ सुनने वाला कोई नही है। आइये, घरो में बैठकर रोज सवेरे अखबार में इस कुकृत्य की खबरों को चाय की चस्कियो मे उडाए और आने वाले गणतंत्र दिवस पर अपनी आजादी का जश्न मनाएँ।