सीमा पर तैनात सैनिकों की निस्वार्थ सेवा
पंजाब के फिरोजपुर जिले के रहने वाले महज दस वर्षीय श्रवण सिंह ने अपनी छोटी उम्र में बड़ा साहस और देशभक्ति का परिचय दिया। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब भारतीय सेना के जवान सीमा पर तैनात थे, तब श्रवण रोज़ उनके लिए पानी, दूध, चाय, लस्सी और छाछ लेकर पहुंचता था। भीषण गर्मी और अपनी सेहत की परवाह किए बिना उसने सैनिकों की सेवा को अपना कर्तव्य समझा। श्रवण का कहना है कि जब उसने जवानों को देश की रक्षा करते देखा तो मन में विचार आया कि वह भी उनके लिए कुछ करे।
राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मान
श्रवण सिंह की इस असाधारण बहादुरी और सेवा भावना को देश के सर्वोच्च स्तर पर सराहना मिली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित किया। पुरस्कार मिलने के बाद श्रवण ने कहा कि उसे बेहद खुशी हो रही है और उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे इतना बड़ा सम्मान मिलेगा। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर 26 दिसंबर को मनाए जाने वाले वीर बाल दिवस का उल्लेख करते हुए साहिबजादों के बलिदान को याद किया और बच्चों से उनके आदर्शों पर चलने की प्रेरणा दी।
बीमारी से संघर्ष, हौसले में कोई कमी नहीं
श्रवण सिंह की कहानी को और भी प्रेरणादायक बनाता है उसका स्वास्थ्य संघर्ष। साढ़े चार साल की उम्र में हॉर्निया ऑपरेशन और छह साल की उम्र में डायबिटीज (शुगर) की बीमारी से जूझने के बावजूद उसका हौसला कभी कमजोर नहीं पड़ा। उसे रोजाना इंसुलिन लेनी पड़ती है, फिर भी उसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सैनिकों की मदद जारी रखी। परिवार के लोग बताते हैं कि उसकी मां अक्सर उसे धूप में जाने से रोकती थीं, लेकिन श्रवण कहता था कि जब सैनिक तपती धूप में देश की रक्षा कर सकते हैं, तो वह उनकी सेवा क्यों नहीं कर सकता।


