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April 1, 2025

जिंदा है रावण

अमृतसर में रावण दहन हो रहा था, रावण को जलते देख खुश हो रहे थे, रावण का अहम जल रहा था, अहंकारी रावण राख हो रहा था, रावण की बुराइयों पर राम की अच्छाई जीत पा रही थी, रावण मर रहा था लेकिन इसी बीच ऐसा हादसा हुआ जो भुलाए नही भूलता, वो चीख़, वो दर्द, वो मंजर, वो अफरातफरी, वो ट्रेन जो रौंदती हुई चली गई, हर तरफ मौत ही मौत थी, रावण दहन हो उठा था, रावण मर चुका था, साथ ही पटरियों पर दौड़ती मौत भी 60 लोगो को अपने आगोश में ले चुकी थी। इस दर्दनाक हादसे में प्रतीकात्मक रूप से रावण तो मर गया लेकिन अभी भी लोगों में रावण जिंदा है ऐसा हम इसलिए भी कह रहे है क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर अगर रावण दहन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है तो आखिरकार क्यों नही सुरक्षा के व्यापक इन्तेजामत किये गए, क्यों नही पुलिस भारी मात्रा में मौके पर मौजूद थी, क्यों नही लोगों को रेलवे ट्रैक से हटाया गया।
इस घटना के बाद आयोजक फरार है, आरोपों के घेरे में नवजोत कौर सिद्धू भी आई, घटना बड़ी होने के बाद मीडिया ने भी मामले को हाथों हाथ लिया, लगातार मामला सुखियों में छाया रहा, जमकर राजनीति हुई, हर कोई इससे बचने और मौत की आग में राजनीतिक रोटियां सेंकते नज़र आया। किसी भी शख्स ने इस मसले में सामाजिक जिम्मेदारी नही निभाया, ऐसे में क्यों न कहा जाय कि अमृतसर में हुए इस नरसंहार में आरोपी सभी लोगों में रावण अभी भी जिंदा है। युगों से साल दर साल पूरे देश में रावण का पुतला जलाकर दशहरे का त्‍योहार मनाया जाता है। अगर रावण सालों पहले मारा गया था तो फिर वो आज भी हमारे बीच जीवित कैसे है? अगर रावण का नाश हो गया था तो वो कौन है, जिसने 60 लोगों को पटरियों पर रौंद दिया। वो कौन है जो बिना इजाजत इस कार्यक्रम को अंजाम दे रहे थे, वो कौन है जिन्होंने अपनी सिटीजन सोशल रिस्पांसिबिलिटी नहीं निभाई। वो कौन है, जिन्होंने हमारी बेटियों को, बच्चों को, माताओं को, हमारे भाईयों को मौत के घाट सुला दिया। वो कौन है जो पैसे और पहचान के दम पर किसी अभी तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। वो कौन है जो सरकारी पदों का दुरुपयोग करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहें है।
वो रावण था, जिसने सालों कठिन तपस्या करके ईश्वर से शक्तियां अर्जित कीं और फिर इन शक्तियों के दुरुपयोग से अपने पाप की लंका का निर्माण किया था। और एक आज का रावण है, जो पैसे, पद, वर्दी और ओहदे रूपी शक्ति को अर्जित करके उसके दुरुपयोग से पूरे समाज को ही पाप की लंका में बदल रहा है। क्या ये रावण नहीं है, जो आज भी हमारे ही अंदर हमारे समाज में जिंदा है? हम बाहर उसका पुतला जलाते हैं लेकिन अपने भीतर उसे पोषित करते हैं। रावण जो कि प्रतीक है बुराई का, अहंकार का, अधर्म का, आज तक जीवित इसलिए है कि हम उसके प्रतीक एक पुतले को जलाते हैं न कि उसे, जबकि अगर हमें रावण का सच में नाश करना है तो हमें उसे ही जलाना होगा, उसके प्रतीक को नहीं।

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