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March 13, 2025

मराठी न बोलने पर मचा बवाल, विवादों में घिरी Airtel कंपनी,

Marathi भाषा को लेकर आए दिन कई विवाद सामने आए है। इस बीच Airtel कंपनी से संबंधित एक मामला देखने को मिला है, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है।
मुंबई: हाल ही में RSS के सीनियर नेता भैया जी जोशी ने कहा था कि मुंबई में रहने के लिए Marathi भाषा का आना जरुरी नहीं है। उनके इस बयान के बाद काफी विवाद हुआ था, जिसके बाद उन्हें अपने बयान के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। उनके बयान पर राजनीति होने लगी और कहा गया कि Marathi भाषा के सम्मान से कोई समझौता नहीं होगा। इतना ही नहीं, केरल के बेलगावी और महाराष्ट्र के बीच में मराठी भाषा को लेकर हंगामा मच गया था। अब एक बार फिर मराठी न बोलने पर विवाद हुआ है। ये मामला कांदिवली के चारकोप स्थित Airtel के सर्विस सेंटर से जुड़ा हुआ है। Airtel की एक महिला कर्मचारी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें महिला कर्मचारी मराठी बोलने में असमर्थता और आपत्ति जता रही है। जब एक युवक उससे Marathi में बातचीत करने की बात कहता है। इस पर महिला कर्मचारी कथित रूप से कहती है कि मुझे मराठी नहीं आती है, आप को जो करना है कर सकते हैं।

विधान भवन में गूंजा Marathi मुद्दा

Marathi में बात न करने का यह मामला विधान भवन में भी गूंजा। राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के पोते व विधायक रोहित पवार ने Airtel की आलोचना की और कहा कि कंपनी को मराठी भाषा का सम्मान करना चाहिए। उनका कहना है कि अगर कंपनी को महाराष्ट्र में अपनी सेवाएं प्रदान करनी है तो उसे अपने कर्मचारियों से मराठी में बात करने को कहना चाहिए। रोहित पवार ने Airtel के खिलाफ यह आरोप लगाया कि कंपनी ने Marathi भाषा को नजरअंदाज कर दिया, जो कि महाराष्ट्र की पहचान और संस्कृति का हिस्सा है। उनका कहना था कि यह बहुत जरूरी है कि कंपनियां और संस्थाएं स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा दें और उनका सम्मान करें, क्योंकि इससे स्थानीय लोगों से जुड़ाव बढ़ता है और वे अपनी भाषा में संवाद करने में सहज महसूस करते हैं। बीजेपी की महिला नेता चित्रा वाघ ने कहा कि Marathi भाषा के सम्मान के साथ कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अगर महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी आनी चाहिए। इस आलोचना ने मराठी बनाम हिंदी के मुद्दे को फिर से सामने ला दिया, जिससे राजनीतिक और सामाजिक हलकों में इस पर गहन चर्चा हो रही है। कई लोग यह मानते हैं कि महाराष्ट्र में मराठी भाषा को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, जबकि कुछ इसे हिंदी के साथ संतुलित तरीके से उपयोग करने का समर्थन करते हैं।

जोर जबरदस्ती से काम नहीं चलता

महाराष्ट्र में सिर्फ Marathi भाषा का मुद्दा पिछले कई वर्षों से लगातार उठता रहा है। कभी कोई नया नियम पारित कर, तो कभी ज़बरदस्ती मारपीट कर, महाराष्ट्र में हर भाषा प्रांतीय लोगों को Marathi बोलना अनिवार्य करने की कोशिशें चलती रही हैं। संघ के भैयाजी जोशी के बयान पर बवाल अभी बंद भी नहीं हुआ और Airtel Staff का ये नया क़िस्सा सामने आ गया। ‘ महाराष्ट्र में रहना है तो मराठी सीखना है’ जैसी परिस्थिति हर किसी के लिए आसान नहीं है। भारत एक बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक देश है। देश के किसी भी कोने में चले जाइए, आपको हर भाषा, प्रांत के लोग मिल जाएंगे। उदाहरण के लिए, Bengaluru एक Cosmopolitan City और IT hub होने के कारण वहां देश के हर प्रांत से लोग आकर Settle होते हैं। सबकी अलग बोली, अलग भाषा होती है। Bengaluru की Official भाषा Kannada है, लेकिन वहां बड़े पैमाने पर English और हिंदी बोली जाती है। शहर में आकर बसने वाले हर शख्स से Kannanda सीखने की उम्मीद बेमानी और नाजायज़ है। ये बात और है कि किसी शहर में लंबे समय तक रहते-रहते लोग वहां की भाषा टूटी-फूटी ही सही, सीख ही जाते हैं। लेकिन लाठी के बल पर भाषा सीखने को बाध्य करना तो जायज़ नहीं लगता!

भाषा किसी भी प्रांत की सांस्कृतिक विरासत

Bengaluru का उदाहरण मात्र इसलिए है कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है। किसी भी प्रांत में, किसी भी क्षेत्र में हर भारतीय को अपनी मर्जी से जीने की आज़ादी है, और हर प्रांतीय सरकार को इस आज़ादी का सम्मान करना चाहिए। लेकिन ये बात भी दीगर है कि देश के हर प्रांत की अपनी परंपरा, संस्कृति और क्षेत्रीय भाषा है, जो उस प्रांत विशेष की पहचान है। चाहे आप देश के किसी भी कोने से आकर कहीं भी बस जाएं, जहां आप रहते हैं, उस क्षेत्र की, उस प्रांत की संस्कृति का सम्मान करना आपका कर्तव्य है। वहां की मिट्टी का सम्मान करना आपका धर्म है। भाषा का सम्मान होना ही चाहिए, क्यूंकि हमारे आपके बीच भाषा ही कड़ी है। 200 साल तक देश पर अपनी हुकूमत चलाने वाले फिरंगियों की गुलामी से हम अब तक आज़ाद नहीं हो पाए। अंग्रेज़ी अब भी हिंदी को पीछे छोड़कर हमारी प्रथम भाषा बनी हुई है। जब हम ग़ुलामी की भाषा के Impression से इस क़दर जुड़े रह सकते हैं तो अपनी प्रांतीय भाषाओं पर इतना बवाल क्यों? ना ज़ोर से, ना ज़बरदस्ती से, प्यार से सीखा भी जा सकता है और सिखाया भी जा सकता है।

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