Thecsrjournal App Store
Thecsrjournal Google Play Store
June 12, 2025

संत कबीर जयंती: गीता के सार की तरह हर युग में उतने ही प्रासंगिक लगते हैं कबीर

संत कबीर दास जी की जयंती आज यानी 11 जून, 2025 को मनाई जा रही है। कबीर दास जी एक ऐसे कवि और समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने दोहों के माध्यम से समाज में चल रहे कई सारे आडंबरों, भेदभाव और पाखंड को समाप्त करने का प्रयास किया था। कबीर दास 15वीं सदी के महान संत थे जिन्होंने समाज को अपनी भक्ति और सूफी परंपराओं के जरिए कई संदेश दिए। उन्हें भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत के तौर पर जाना जाता है। इसके साथ ही कबीर जाति, धर्म और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव के विरोधी थे। उन्होंने निराकार ईश्वर की भक्ति की हिमायत की थी। वे अपनी बातें आम लोगों तक पहुंचाने के लिए आम बोलचाल की भाषा को अपनाते थे। वे दोहों के जरिए लोगों में जागरूकता लाते थे। उनके उपदेश आज भी लोगों को मानवता, प्रेम और समानता का मार्ग दिखाते हैं।

कबीर दास के जन्म और जन्मस्थान, दोनों के बारे में कई भ्रांतियां

महान कबीर दास का जन्म ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही उनकी जयंती मनाई जाती है। इस दिवस कबीर पंथ के अनुयायी कबीर के दोहे पढ़ते है उनकी शिक्षा से सबक लेते हैं। लोग कथा सत्संग का आयोजन करते है। इस दिन लोग अक्सर उनके जन्म स्थान वाराणसी के कबीर चौथा मठ में धार्मिक उपदेश का आयोजन करते हैं। कई जगह तो कबीर दास जयंती के अवसर पर भव्य जश्न मनाया जाता है। जबकि कई जगहों पर धार्मिक जुलूस और शोभायात्रा भी निकाल जाती है। कबीरदास की जयंती न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है।
संत-कवि कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी के मध्य में काशी (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) में हुआ था। कबीर के जीवन के विवरण कुछ अनिश्चित हैं। उनके जीवन के बारे में अलग-अलग विचार, विपरीत तथ्य और कई कथाएं हैं। यहां तक कि उनके जीवन पर बात करने वाले स्रोत भी अपर्याप्त हैं। शुरुआती स्रोतों में ‘बीजक’ और ‘आदि ग्रंथ’ शामिल हैं। इसके अलावा, भक्त मल द्वारा रचित ‘नाभाजी’, मोहसिन फ़ानी द्वारा रचित ‘दबिस्तान-ए-तवारीख’, और ‘खज़ीनत उल-असफ़िया’ हैं।
ऐसा कहा जाता है कि कबीर की मां ने उनके जन्म के समय बड़े चमत्कारिक ढंग से गर्भ धारण किया था। उनकी मां एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण विधवा थीं, जो अपने पिता के साथ एक प्रसिद्ध तपस्वी के निवास पर तीर्थ यात्रा करने गई थीं। उनकी निष्ठा से प्रभावित होकर, तपस्वी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उनसे कहा कि वे जल्द ही एक बेटे को जन्म देंगी। बेटे का जन्म होने के बाद, बदनामी से बचने के लिए कबीर की मां ने उनका परित्याग कर दिया। छोटे से कबीर को एक मुसलमान बुनकर की पत्नी नीमा ने गोद ले लिया। कथाओं के एक अन्य संस्करण में, तपस्वी ने उनकी मां को आश्वासन दिया था कि जन्म असामान्य तरीके से होगा और इसलिए, कबीर का जन्म अपनी मां की हथेली से हुआ था! इस कहानी में भी उन्हें बाद में उसी नीमा द्वारा गोद ले लिया गया था। जब लोग बच्चे के बारे में नीमा पर संदेह और प्रश्न करने लगे, तब चमत्कारी ढंग से जन्में नवजात शिशु ने अपनी दृढ़ आवाज़ में कहा, “मैं एक महिला से पैदा नहीं हुआ, बल्कि प्रकट हुआ हूं। मुझमें ना तो हड्डियां हैं, ना खून, ना त्वचा है। मैं तो मानव जाति के लिए शब्द प्रकट करता हूं। मैं सर्वश्रेठ प्राणी हूं।”

कबीर के जन्मस्थान को लेकर कई मत

कबीर के जन्मस्थान के संबंध में तीन मत हैं, मगहर, काशी और आज़मगढ़ में बेलहरा गांव! मगहर के पक्ष में यह तर्क दिया जाता है कि कबीर ने अपनी रचना में वहां का उल्लेख किया है, “पहिले दरसन मगहर पायो पुनि कासी बसे आई” अर्थात् काशी में रहने से पहले उन्होंने मगहर देखा। मगहर वाराणसी के निकट ही है और वहां कबीर का मक़बरा भी है।
कबीर का अधिकांश जीवन काशी में व्यतीत हुआ। वे काशी के जुलाहे के रूप में ही जाने जाते हैं। कई बार कबीरपंथियों का भी यही विश्वास है कि उनका जन्म काशी में हुआ। किंतु किसी प्रमाण के अभाव में यह भी निश्चित तौर पर नहीं माना जा सकता। बहुत से लोग आजमगढ़ ज़िले के बेलहरा गांव को कबीर साहब का जन्मस्थान मानते हैं। वे कहते हैं कि ‘बेलहरा’ ही बदलते-बदलते लहरतारा हो गया। फिर भी पता लगाने पर न तो बेलहरा गांव का ठीक पता चला पाता है और न यही मालूम हो पाता है कि बेलहरा लहरतारा कैसे बन गया और वह आजमगढ़ ज़िले से काशी के पास कैसे आ गया ? वैसे आजमगढ़ ज़िले में कबीर, उनके पंथ या अनुयायियों का कोई स्मारक नहीं है।

‘कबीर’ नाम भी जन्म की तरह असाधारण

कबीर की और बाईबल की कहानियों में समरूपता देखी जा सकती हैं। इन दंतकथाओं की सत्यता पर प्रश्न उठते रहते हैं। कल्पनाएं और मिथक सामान्य जीवन की विशेषता नहीं हैं। साधारण मनुष्य का जीवन तो भुला दिया जाता है। आलंकारिक दंतकथाएं और अलौकिक कृत्य असाधारण जीवन से जुड़े होते हैं। भले ही कबीर का जन्म सामान्य रूप से ना हुआ हो, लेकिन इन दंतकथाओ से पता चलता है कि वे एक असाधारण और महत्वपूर्ण व्यक्ति थे।
उनके समय के मानकों के अनुसार, ‘कबीर’ एक असामान्य नाम था। ऐसा कहा जाता है कि उनका नाम एक काज़ी ने रखा था जिन्होंने उनके लिए एक नाम खोजने के लिए कई बार क़ुरान खोली और हर बार ‘कबीर’ अर्थात ‘महान’ शब्द पर उनकी खोज समाप्त हुई, जो ईश्वर, स्वयं अल्लाह के अलावा और किसी के लिए उपयोग नहीं किया जाता है। उन्होंने नाम ढूंढने के लिए जितनी भी किताबें खोलीं, सभी में लिखे हुए सारे शब्द ‘कबीर’ हो गए। इस तरह कहा जाता है कि कबीर ने स्वयं ही अपना नाम चुना था।

बिना कोई शिक्षा ग्रहण किए रच दिए ग्रंथ

कबीर ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली और न ही उन्होंने कभी कागज़ कलम को छुआ। वे अपनी आजीविका के लिए जुलाहे का काम करते थे। कबीर अपनी आध्यात्मिक खोज को पूर्ण करने के लिए वाराणसी के प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य बनना चाहते थे। स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध ज्ञानी कहे जाते थे पर वे कबीर को शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते थे। किन्तु कबीर ने उन्हें मन ही मन अपना गुरु मान लिया था। वे अपने गुरु से गुरु मंत्र लेना चाहते थे पर कोई उपाय नहीं सूझ रहा था।
जब संत रामानंद रात्रि चार बजे स्नान के लिए काशी घाट पर जाते थे तो कबीर दास उनके मार्ग में लेट जाते थे ताकि उनके गुरु मुख से जो भी पहला शब्द निकले उसे ही गुरु मंत्र मान लेंगे। एक दिन मार्ग में रामानंद के पैर कबीर पर पड़े तो संत रामानंद के मुख से स्वाभाविक ही ‘राम’ नाम निकल गया। बस, कबीर ने उसे ही गुरु मंत्र मान लिया। कुछ लोग मानते हैं कि कबीर दास जी के कोई गुरु नहीं थे। उन्हें जो ज्ञान प्राप्त हुआ वह अपनी ही बदौलत प्राप्त किया। कबीर दास जी ने स्वयं कोई ग्रंथ नहीं लिखा, उन्होंने सिर्फ उसे बोले थे। उनके शिष्यों ने उनके द्वारा कही गई बातों और उपदेशों को कलमबद्ध किया था। कबीर दास के बारे में जानकर ही आश्चर्य होता है कि उन्होंने कभी कागज कलम को हाथ तक नहीं लगाया, ना ही कोई पढ़ाई की और न ही उनके कोई औपचारिक गुरु थे।

कबीरदास जी की भाषा व प्रमुख रचनाएं

कबीर दास द्वारा लिखी गई पुस्तकें आम तौर पर दोहों और गीतों का संग्रह हैं। कुल 72 रचनाएं हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध कार्य रेख़्तास, कबीर बीजक, सुक्निधान, मंगल, वसंत, सबदास, सखियां और पवित्र आगम हैं। कबीर दास की लेखन शैली और भाषा बहुत ही सरल और सुंदर है। उन्होंने अपने दोहों को बहुत ही सहज और स्वाभाविक रूप से लिखा था जो अर्थ और महत्व से भरे हुए हैं। उन्होंने अपने दिल की गहराई से इन्हें लिखा है। उन्होंने अपने सरल दोहों और दोहों में समस्त विश्व के भाव को संकुचित कर दिया है। उनकी बातें तुलना और प्रेरणा से परे हैं।
कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं को बेहद सरल और आसान भाषा में लिखा है, उन्होंने अपनी रचनाओं में बड़ी बेबाकी से धर्म, संस्कृति, समाज एवं जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी राय रखी है। उनके काव्य में आत्मा और परमात्मा के संबंधों की भी स्पष्ट व्याख्या मिलती है उनकी प्रमुख रचनाएं हैं- साखी, सबद, रमैनी, कबीर बीजक, सुखनिधन, रक्त, वसंत, होली अगम! इन रचनाओं में कबीर का बीजक ग्रंथ प्रमुख है। उनकी रचनाओं में वो जादू है जो किसी और संत की रचनाओं में नहीं है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को “वाणी का डिक्टेटर” कहा है, और आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने उनकी भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ कहा है।

कवि का का साहित्यिक परिचय

कबीर एक महान संत भी थे और संसारी भी, समाज सुधारक भी थे और एक सजग कवि भी। वह अनाथ थे, लेकिन सारा समाज उनकी छत्रछाया में रहता था। कबीर के महान व्यक्तित्व एवं उनके काव्य के संबंध में हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ प्रभाकर माचवे ने लिखा है- “कबीर में सत्य कहने का अपार धैर्य था और उसके परिणाम सहन करने की हिम्मत भी। कबीर की कविता इन्हीं कारणों से एक अनोखे प्रकार की कविता है। वह कई रूढ़ियों के बंधन तोड़ता है वह मुक्त आत्मा की कविता है।” संत कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने स्वयं ही कहा है- ‘मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यो नहीं हाथ।’
अतः यह सत्य है कि उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं को नहीं लिखा है। इसके बाद भी उनकी वाणीयों के संग्रह के रूप में कई ग्रंथों का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों में- ‘अगाध-मंगल’, ‘अनुराग सागर’, ‘अमर मूल ‘, ‘अक्षर खंड रमैनी’, ‘अक्षर भेद की रमैनी’, ‘उग्र गीता’, ‘कबीर की वाणी’, ‘कबीर ‘, ‘कबीर गोरख की गोष्ठी’, ‘कबीर की साखी’, ‘बीजक’, ‘ब्रह्म निरूपण’, ‘मुहम्मद बोध’, ‘रेख़्ता विचार माला’, ‘विवेकसागर’, ‘शब्दावली ‘, ‘हंस मुक्तावली’, ‘ज्ञान सागर’ आदि प्रमुख ग्रंथ हैं इन ग्रंथों को पढ़ने से हमें कबीर की विलक्षण प्रतिभा का परिचय मिलता है।
कबीर की वाणियों का संग्रह ‘बीजक’ के नाम से प्रचलित है इसके तीन भाग हैं: 1-साखी, 2-सबद, 3-रमैनी!

ईश्वर एक है, और वो हमारे भीतर है

संतकबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। जिस प्रकार विश्व में एक ही वायु और जल है, उसी प्रकार संपूर्ण संसार में एक ही परम ज्योति व्याप्त है। सभी मानव एक ही मिट्टी से अर्थात् ब्रम्ह द्वारा निर्मित हुए हैं। कबीर दास ने ईश्वर प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर न मंदिर में है, न मस्जिद में, न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ स्थानों में! वह न योग साधना से मिलता है, और न वैरागी बनने से। ये सब उपरी दिखावे हैं, ढोंग हैं। इनसे भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती।

समाजसुधारक कवि कबीर दास

कबीर दास जी भक्तिकाल के अकेले ऐसे संत थे जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर समाज को सुधारने की कोशिश की। वो जब तक जिन्दा रहे, उन्होंने समाज के द्वारा बनाई गई कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उनका जीवन परिचय और उनकी रचनाएं पढ़कर अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे अपने समय से कितने आगे का सोचते थे। लोगों को जागरूक करने के लिए कितने बहुमूल्य कदम उठाए, इसका अंदाजा यही से लगाया जा सकता है कि लोग आज भी इस कवि को नहीं भूले हैं। इस कवि ने एक समाज सुधारक के तौर पर आम जनमानस के सामने उनकी समस्याओं को उजागर कर उनका भला करने की कोशिश की, और यही चीज उनकी कविताओं में भी देखने को मिलती है।

कबीर दास का सामाजिक और धार्मिक संदेश

कबीरदास के जन्म के समय भारत की हालत बहुत खराब थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की कट्टरता से लोग परेशान थे, और दूसरी तरफ हिंदू धर्म के पाखंड और कर्मकांड से धर्म कमजोर हो रहा था। लोगों में भक्ति की भावना नहीं थी और पंडितों की पाखंडपूर्ण बातें समाज में फैल रही थीं। ऐसे कठिन समय में कबीरदास का जन्म हुआ। Kabir Das जिस समय आए, उससे कुछ पहले भारत में एक बड़ी घटना हुई थी- इस्लाम धर्म का आगमन! इसने भारतीय समाज और धर्म को हिला कर रख दिया था। जाति व्यवस्था को पहली बार कड़ी चुनौती मिली थी। पूरे देश में हलचल और अशांति थी। कबीर दास जी की इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर उनके बारे में कहा जाता है कि वह जितने अच्छे कवि थे उससे कहीं अच्छे समाज सुधारक थे और धार्मिक सभ्यता और जातिवाद के खिलाफ थे।
आम जीवन के साथ-साथ कबीर दास जी के दोहों ने भी जातिवाद का डटकर विरोध किया है। इतना ही नहीं, उन्होंने हिंसा के साथ-साथ क्रूरता और अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई है। उन्होंने सच्चाई की लाठी का सहारा लेकर समाज का कल्याण करने की कोशिश की है, जिससे लोगों के मन से छल कपट और अहंकार जैसी भावना हमेशा हमेशा के लिए गायब हो जाए। इसी वजह से कहा जाता है कि वो अपने समय से आगे के लेखक थे।

आधुनिक समाज पर प्रभाव

कबीर दास जी ने अपनी वाणी के बल पर, अपनी लेखनी और अपने विचारों के बल पर समाज में फैल रही कुरीतियों और बुराइयों को दूर करने में एक अहम किरदार अदा किया है, धार्मिक पाखंड और कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने की कोशिश की है। उनका कहना है कि भगवान को पाने के लिए आपको कहीं बाहर जाने या उसे बाहरी दुनिया में ढूंढने की जरूरत नहीं। भगवान आपके अंदर ही है। कबीर दास सामाजिक समूह के साथ-साथ जाति और धर्म से जुड़े गंभीर मुद्दों पर अपनी रचनाओं की मदद से चोट करते हुए नजर आते हैं। इसके अलावा उनकी रचनाओं का आज के व्यवसाय और शिक्षा प्रणाली पर भी गहरा असर देखने को मिलता है। इन्हीं वजहों के चलते कबीर दास जी को संसार सुधारक के तौर पर जाना जाता है। उनके विचार इतने ज्यादा प्रखर थे कि उनको पढ़कर आज भी लोगों की जिंदगियां सुधर रही हैं। उन्होंने सभी धर्मों की समानता पर ज़ोर दिया और यह कहा कि हर धर्म का मूल संदेश एक ही है। Kabir Das की लेखन शैली जितनी ज्यादा सरल और सादगी से भरपूर थी। उन्होंने आम जनमानस की जिंदगी को भी ऐसे ही सरल और सादगी पूर्ण बनाने की भरपूर कोशिश की।

कबीर दास की मृत्यु नही हुई थी

सन 1518 में कबीर 120 वर्ष के हो चुके थे और उन्होंने अपनी सारी लीला कर ली और अब वक्त था प्रस्थान का! कबीर दास ने अपने कुछ अनुयायियों और काशी शहर के राजा बीरदेव सिंह बघेल, सर्व काशी के पंडितों – काजियों व अन्य हिन्दू मुसलमानों के साथ 120 वर्ष की उम्र में काशी से मगहर 192 किमी की पैदल यात्रा की।
दरअसल कुछ ब्राह्मणों ने अफवाह फैला रखी थी कि मगहर में मरने वाले की मुक्ति नहीं होती और काशी में शरीर छोड़ने से स्वर्ग मिलता है। कबीर दास जी लंबे समय तक काशी में रहे, लेकिन अंत समय में मगहर प्रस्थान किया। मगहर में एक चादर के ऊपर लेटकर एक चादर ऊपर से ओढ़ ली। थोड़ी देर बाद आकाश में एक रोशनी सी दिखाई दी और कबीर दास के शरीर की जगह सफेद चादर के नीचे सिर्फ सुगंधित फूल मिले। सभी हैरान रह गए, शरीर के लिए लड़ रहे बिजली खां पठान और बीर सिंह बघेल को अपनी गलती का एहसास हुआ। मुस्लिम एवं हिन्दू दोनों धर्मों के लोगों ने आधे- आधे फूल बांट लिए और उनकी याद में अलग अलग समाधि बना ली।

Latest News

Popular Videos