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बाल मजदूरी निगल रहा बचपन

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किसी ने क्या खूब कहा है कि मेरी मजबूरी को और मजबूर बनाया… जिंदगी जीने के लिए मदद मांगी, जब दुनिया से… तो उसने मजदूर बनाया…कुछ यही कहानी है हर उस मासूम की जो ना चाहते हुए भी मजदूर कहलाने लगा है, बाल मजदूर। जिस वक़्त हम और हमारा समाज हमारे बच्चों को सुनहरे भविष्य के लिए तैयार करता है, समाज के कुछ दरिंदे इन बच्चों के भविष्य को धुंधला कर देतें है। इनके कोमल हाथों में कलम पकड़ाने की बजाय ये लोग इन्हे हथौड़ा और फावड़ा पकड़ा देतें है।

कलम की बजाय हाथों में हथौड़ा और फावड़ा

बचपन, इंसान की जिंदगी का सबसे हसीन पल, न किसी बात की चिंता और न ही कोई जिम्मेदारी। बस हर समय अपनी मस्तियों में खोए रहना, खेलना-कूदना और पढ़ना, लेकिन सभी का बचपन ऐसा हो यह जरूरी नहीं। गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताड़ना के चलते ये बच्चे बाल मजदूरी के इस दलदल में धंसते चले जाते हैं। इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं, बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों, झाड़ू-पोंछे और औजारों के बीच बीतता है।

क्यों मनाया जाता है विश्व बाल श्रम निषेध दिवस

बच्चों को उनके बचपन से वंचित करना सबसे बड़ी क्रूरता है। पढ़ने और खेलने की उम्र में वे काम कर अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय यानि बचपन खो देते हैं। भले ही इसके खिलाफ आवाज़ें उठती हों, लेकिन अभी भी लाखों बच्चे बाल मजदूरी (Child Labour) के दलदल में फंसे हुए हैं। इसी से लड़ने के लिए विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) मनाया जा रहा है।

कब मनाया जाता है विश्व बाल श्रम निषेध दिवस

बच्चों को बाल मजदूरी के दलदल से निकालने के लिए हर साल 12 जून को ‘वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर’ मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation) द्वारा की गई थी। दुनिया भर में इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य बाल मजदूरी की बड़ी समस्या पर सबका ध्यान केंद्रित करना है, ताकि बच्चों के आर्थिक शोषण को खत्म किया जा सके।

क्या कहते है बाल मजदूरी के आकड़े

आंकड़ों की बात करें तो आज भी दुनिया भर में 152 मिलियन बच्चों को बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जाता है। अक्सर उनसे खतरनाक काम भी कराये जाते हैं। एक तरफ हम उज्जवल भविष्य की बात करते हैं वहीं बड़े पैमाने पर बच्चे बाल मजदूरी का शिकार होते हैं। पढ़ाई और खेलकूद के समय में वे काम में अपना बचपन गंवा देते हैं। बाल मजदूरी के कारण उनका बचपन तो खराब होता ही है, साथ ही साथ भविष्य भी बर्बाद हो जाता है। सरकार को इसके लिए कड़े कदम उठाने की जरूरत तो है ही, लेकिन जिम्मेदारी हम सब की भी बनती हैं क्योंकि उनसे मजदूरी कराने वाले लोग में से होते हैं और अक्सर हम भी इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाते।

देश में 1 करोड़ बाल मजदूर

2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 5 से 14 वर्ष की उम्र के 1.01 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। हालांकि 2001 के मुकाबले यह आंकड़ा कुछ कम हुआ है, लेकिन यह संतोषजनक नहीं है। 2001 में 1.26 करोड़ बच्चे मजदूरी करते थे। भारत से बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए नियम और कानून तो हैं, लेकिन उनका सख्ती से पालन नहीं होता है। अगर लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए और कानून का सही तरीके से पालन हो, तो देश से बाल मजदूरी को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है।

बच्चियों को घर में ही जबरन कराया जाता है बाल मजदूरी

भारत में बाल मजदूरी की समस्या सदियों से चली आ रही है। कहने को भारत देश में बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है फिर भी बच्चों से बाल मजदूरी कराई जाती है। बाल मजदूरी से बच्चों का भविष्य अंधकार में होता जा रहा है। कहने को सरकारे बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े वायदे और घोषणाएं करती हैं। फिर भी सिर्फ होता है ढाक के वही तीन पात। इतनी जागरूकता के बाद भी भारत देश में बाल मजदूरी का खात्मा दूर-दूर तक नहीं दिखता है। इसके उलट बाल मजदूरी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। मौजूदा समय में गरीब बच्चे सबसे अधिक शोषण का शिकार हो रहे हैं। आलम ये भी है कि जो गरीब बच्चियां होती है उनको पढ़ने भेजने के बजाय घर में ही बाल श्रम यानि घरेलु काम कराया जाता है।

बाल मजदूरी पर क्या कहता है कानून

बाल मजदूरी बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करती है। जो बच्चे बाल मजदूरी करते हैं वह मानसिक रूप से अस्वस्थ रहते हैं और बाल मजदूरी उनके शारीरिक और बौद्धिक विकास में बाधक होती है। बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित करती है जो कि संविधान के विरुद्ध और मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है। भारत में 1986 में बाल श्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ जिसके अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति गैरकानूनी है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है अनुच्छेद 23 के अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है और संविधान के अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्ट्री या फिर खदान में काम करने के लिए नियुक्त नहीं किया जाएगा और ना ही किसी अन्य खतरनाक नियोजन में नियुक्ति किया जाएगा और कानून 1948 के तहत 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के नियोजन को निषिद्ध करता है। फिर भी इतने कड़े कानूनों के होने के बावजूद होटलों और दुकानों में बच्चों से दिन रात काम कराया जाता है और विभिन्न कानूनों का उल्लंघन किया जाता है।
वर्तमान में भारत देश में कई जगह पर आर्थिक तंगी के कारण मां-बाप ही थोड़े पैसों के लिए अपने बच्चों को ऐसे ठेकेदारों के हाथ बेच देते हैं जो अपनी सुविधानुसार उनको होटलों, कोठियों व अन्य कारखानों आदि में काम करने पर मजबूर कर देते हैं और उन्हीं होटलों, कोठियों और कारखानों के मालिक बच्चों को थोड़ा बहुत खाना देकर मनमाना काम कराते हैं और घंटों बच्चों की क्षमता के विपरीत या उससे भी अधिक काम कराना, भरपेट भोजन ना देना और मन के अनुसार कार्य न होने पर पिटाई करना, यही बाल मजदूरों का जीवन बन जाता है। खतरनाक काम करते-करते बच्चों का यौन शोषण भी होता है। यह बच्चे कैंसर और टीबी जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रसित भी हो जाते हैं। इनका जीवन जीते जी नरक बन जाता है।

बाल मजदूरी के खात्मे के लिए सरकार के साथ समाज का साथ भी जरुरी

बड़े शहरों के साथ-साथ आपको छोटे शहरों में भी हर गली नुक्कड़ पर कई राजू-मुन्नी-छोटू-चवन्नी मिल जाएंगे जो हालातों के चलते बाल मजदूरी की गिरफ्त में आ चुके हैं। बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए जरूरी है गरीबी को खत्म करना। इन बच्चों के लिए दो वक्त का खाना मुहैया कराना। इसके लिए सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ सरकार ही नहीं आम जनता की भी इसमें सहभागिता जरूरी है। हर एक व्यक्ति जो आर्थिक रूप से सक्षम हो यदि ऐसे एक बच्चे की भी जिम्मेदारी लेने लगे तो सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा।