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December 24, 2025

बांग्लादेश और पाकिस्तान की बढ़ती नज़दीकी से भारत की चिंता क्यों बढ़ी? बदलती राजनीति, कट्टरपंथ और क्षेत्रीय सुरक्षा पर असर

The CSR Journal Magazine
अब लगभग 52 साल बाद परिस्थितियां बदलती दिख रही हैं। शेख़ हसीना के सत्ता से हटने के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच कूटनीतिक, व्यापारिक और वैचारिक संपर्क तेज़ हुए हैं, जो दक्षिण एशिया की राजनीति में नए समीकरण बना रहे हैं।
सोशल मीडिया पर यह अफ़वाह फैल गई कि हत्यारे भारत भाग गए हैं, हालांकि बांग्लादेश सरकार या पुलिस ने इसकी पुष्टि नहीं की। इन घटनाओं के बाद ढाका में भारतीय दूतावास के बाहर विरोध प्रदर्शन हुए और दोनों देशों ने अस्थायी रूप से वीज़ा सेवाएं भी रोक दीं। भारत ने इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए अंतरिम सरकार पर कट्टरपंथी तत्वों के ख़िलाफ़ सख़्ती न दिखाने का आरोप लगाया।
इसके अलावा पाकिस्तान ने बांग्लादेशी नागरिकों के लिए आसान वीज़ा नीति की घोषणा की। पाकिस्तानी नौसेना के जहाज़ का चटगांव बंदरगाह पहुंचना भी एक अहम संकेत माना जा रहा है। ये सभी कदम दिखाते हैं कि पाकिस्तान बांग्लादेश को रणनीतिक रूप से अपने क़रीब लाने की कोशिश कर रहा है।
शेख़ हसीना के जाने के बाद मुक्ति युद्ध की प्रतीकों और विरासत पर हमले, शेख़ मुजीब-उर रहमान के घर पर हमला और इतिहास की नई व्याख्या के प्रयास चिंता बढ़ाते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि अंतरिम सरकार के समर्थन से जमात-ए-इस्लामी को राजनीतिक लाभ मिल रहा है, जिससे बांग्लादेश का धर्मनिरपेक्ष ढांचा कमजोर हो सकता है।
इसके साथ ही पाकिस्तान और चीन इस स्थिति का फ़ायदा उठा रहे हैं। चीन की मध्यस्थता में बांग्लादेश-पाकिस्तान की त्रिपक्षीय बैठक और ढाका में बीजिंग की बढ़ती भूमिका भारत के लिए रणनीतिक चुनौती मानी जा रही है। भारत को डर है कि बांग्लादेश फिर से उग्रवादी संगठनों के लिए सुरक्षित ज़मीन बन सकता है।
बांग्लादेश और पाकिस्तान की बढ़ती नज़दीकी केवल द्विपक्षीय संबंधों का मामला नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर भारत की सुरक्षा, कूटनीति और क्षेत्रीय संतुलन पर पड़ता है। बदलती राजनीति, वैचारिक संघर्ष और बाहरी शक्तियों की सक्रियता ने दक्षिण एशिया को एक बार फिर अस्थिर मोड़ पर ला खड़ा किया है। भारत के लिए यह समय सतर्क, बहुपक्षीय और दूरदर्शी कूटनीति अपनाने की बड़ी परीक्षा है।

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