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November 4, 2025

वैकुंठ चतुर्दशी 2025: हरि और हर का पावन संगम, जानें क्यों खास है यह दिन?

The CSR Journal Magazine
वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और दुर्लभ पर्व है, जब भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की एक साथ पूजा की जाती है। यह तिथि हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को आती है। इस दिन साधकों को 52 मिनट का विशेष काल प्राप्त होता है, जिसे अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

वैकुंठ चतुर्दशी पर पूजा विधि

वैकुंठ चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नान और ध्यान के बाद साधक को अपने घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में या फिर पूजा स्थान में पीले रंग के कपड़े का आसन बिछाना चाहिए। इस आसन पर भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके पश्चात रोली, चंदन और केसर से दोनों देवताओं का तिलक करें तथा शुद्ध घी का दीपक जलाएं।
भगवान विष्णु को कमल का पुष्प अर्पित करें और भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाएं। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ‘शिव महिम्न स्तोत्र’ का पाठ तथा भगवान विष्णु के लिए ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। यदि ये पाठ संभव न हो, तो ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘ॐ नमो नारायण’ मंत्रों का जप भी उतना ही फलदायी माना गया है। पूजा पूर्ण होने के बाद दोनों देवताओं की आरती करें और परिवार की सुख-समृद्धि तथा सौभाग्य की कामना करें।

वैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागे, तो उन्होंने काशी में जाकर भगवान शिव की एक हजार कमल पुष्पों से पूजा करने का संकल्प लिया। पूजा के दौरान उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके पास एक कमल पुष्प कम है। अपने संकल्प को पूर्ण करने हेतु भगवान विष्णु ने अपने कमल सदृश नेत्र को निकालकर भगवान शिव को अर्पित कर दिया।
भगवान विष्णु की इस अतुलनीय भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने न केवल उनका नेत्र पुनः स्थापित किया बल्कि उन्हें सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया। जिस दिन यह अद्भुत घटना घटी, वही दिन कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी थी, जिसे आज वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है।

वैकुंठ चतुर्दशी का धार्मिक महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु के योगनिद्रा से जागने के बाद भगवान शिव सृष्टि का संचालन पुनः श्री हरि को सौंपते हैं। चातुर्मास के दौरान ब्रह्मांड की व्यवस्था का दायित्व भगवान शिव के पास रहता है, किंतु वैकुंठ चतुर्दशी के दिन यह दायित्व पुनः विष्णु को सौंप दिया जाता है। इसे ‘सत्ता हस्तांतरण का दिवस’ भी कहा जाता है, जब सृष्टि के संचालन का कार्य फिर से विष्णु भगवान के हाथों में आ जाता है।
इस दिन दोनों देवताओं की संयुक्त आराधना करने से साधक को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। वैकुंठ चतुर्दशी आत्मिक शुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और जीवन में संतुलन स्थापित करने का प्रतीक पर्व है। यह दिन यह संदेश देता है कि शिव और विष्णु अलग नहीं, बल्कि एक ही परम सत्य के दो रूप हैं, सृष्टि के पालन और संहार के संतुलन के प्रतीक।
वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व शिव और विष्णु की एकता तथा भक्ति, समर्पण और संतुलन का संदेश देता है। इस दिन की पूजा और कथा से मनुष्य को यह प्रेरणा मिलती है कि सच्ची श्रद्धा और निष्काम भक्ति से भगवान अवश्य प्रसन्न होते हैं और साधक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करते हैं।
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