वाराणसी, 5 नवंबर 2025: कार्तिक पूर्णिमा की रौशनी में जगमगाती काशी एक बार फिर “देवों की दिवाली” मनाने जा रही है।कार्तिक माह (अक्टूबर–नवंबर) की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं। यह दिन दीपदान, स्नान और दान-पुण्य के लिए श्रेष्ठ माना गया है। इसी दिन देव दीपावली, त्रिपुरारी पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती जैसे बड़े पर्व भी पड़ते हैं। इस बार की देव दीपावली न केवल आस्था का प्रतीक होगी, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी बेहद विशेष रहने वाली है। हर साल की तरह इस वर्ष भी गंगा तट पर लाखों दीप जलेंगे, लेकिन 2025 का यह पर्व अपने दुर्लभ ग्रह योगों और आध्यात्मिक ऊर्जा के कारण ऐतिहासिक माना जा रहा है।
जब भगवान शिव ने किया त्रिपुरासुर का वध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देव दीपावली की उत्पत्ति उस क्षण से जुड़ी है जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक असुर का वध किया था, इसलिए इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है। त्रिपुरासुर और उसके भाइयों ने सोने, चांदी और लोहे के तीन अभेद्य दुर्ग बनाए थे। जब ये तीनों एक सीध में आए, तब शिव ने एक ही बाण से उन किलों को नष्ट किया। इस विजय पर देवताओं ने दीप जलाकर आनंद मनाया तभी से “देव दीपावली” की परंपरा चली आ रही है।
एक अन्य कथा के अनुसार, राजा दिवोदास के शासनकाल में देवताओं को काशी में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। बाद में भगवान शिव स्वयं ब्राह्मण रूप में प्रकट होकर राजा को मनाते हैं। शिव के पुनः काशी लौटने पर देवताओं ने दीपदान कर गंगा तट को प्रकाशित किया,और तब से यह पर्व “देवों की दिवाली” कहलाया।
काशी में दीपों का महासागर
इस वर्ष भी वाराणसी के दशाश्वमेध, असी, शीतला और पंचगंगा घाटों पर करीब 10 लाख दीपक जलाने की तैयारी है। गंगा आरती, दुग्धाभिषेक, शंखध्वनि और पुष्पार्चन के साथ पूरा वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाएगा। पर्यटन विभाग के अनुसार, इस बार आयोजन “Mini Bharat थीम” पर आधारित होगा जहां हर घाट पर भारत के विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झलक दिखाई देगी। लेज़र शो, 3D प्रोजेक्शन और ड्रोन लाइट्स काशी को सचमुच “सिटी ऑफ लाइट” में बदल देंगे।
शहीदों की स्मृति में सेना, वायुसेना और नौसेना के जवान घाटों पर “लास्ट पोस्ट” बजाकर पुष्पांजलि देंगे। हेलिकॉप्टर से पुष्पवर्षा और आकाश दीप छोड़े जाएंगे जो श्रद्धा और शौर्य का अनोखा संगम रचेंगे।
देव दीपावली 2025: मुहूर्त और तिथि
इस बार पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर की रात 10:36 बजे से प्रारंभ होकर 5 नवंबर की शाम 6:48 बजे तक रहेगी।
दीपदान का प्रदोषकाल मुहूर्त रहेगा शाम 5:15 से 7:50 तक। इसी दौरान गंगा किनारे दीपदान को सर्वाधिक शुभ माना गया है।
दुर्लभ ग्रह योग और राशियों पर प्रभाव
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस वर्ष देव दीपावली पर कई दुर्लभ योग बन रहे हैं। चंद्रमा मेष राशि में, शनि मीन में वक्री, गुरु उच्च राशि धनु में, और शुक्र अपनी तुला राशि में रहेंगे। सूर्य और शुक्र के मिलन से शुक्रादित्य योग, जबकि गुरु-चंद्रमा के संयोग से गजकेसरी योग बनेगा। साथ ही सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग भी इस दिन को अत्यंत शुभ बना रहे हैं।
-
इन संयोगों से विशेष रूप से मेष, कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों को शुभ फल मिलेंगे
-
मेष राशि: प्रॉपर्टी और निवेश से आर्थिक लाभ, रुके हुए कार्य पूरे होंगे, भाग्य खुलेगा।
-
कर्क राशि: माता लक्ष्मी की विशेष कृपा, अचानक धन लाभ और प्रमोशन के योग।
-
वृश्चिक राशि: करियर में नई दिशा, आत्मविश्वास में वृद्धि और अधिकारियों का सहयोग मिलेगा।
-
इसके अलावा मिथुन, सिंह और मीन राशि वालों के लिए भी यह समय शिक्षा, यात्रा और नए अवसरों के लिए अनुकूल रहेगा।
आस्था का अनोखा अनुभव
जब सूर्य ढलता है और गंगा की लहरों पर लाखों दीपक तैरते हैं, तो लगता है मानो आकाश धरती पर उतर आया हो। नाव से घाटों का यह दृश्य देखना जीवनभर की याद बन जाता है। काशी के लोग कहते हैं “दीये जलते हैं, तो देव उतरते हैं।” वास्तव में देव दीपावली सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि भारत की आस्था, संस्कृति और आत्मा का उजाला है जहां हर दीपक अंधकार को चुनौती देता है।
पौराणिक महत्व
-
देवों का अवतरण: मान्यता है कि इस दिन देवता पृथ्वी पर उतरकर गंगा स्नान और दीपदान करते हैं।
-
विष्णु पूजा: यह दिन भगवान विष्णु की पूजा, विशेषकर श्रीहरि के रूप में मत्स्यावतार से भी जुड़ा है।
-
गुरु नानक जयंती: सिख परंपरा में यह दिन प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है।

