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December 5, 2025

किशोर देवव्रत रेखे: जानें कौन हैं जिन्होंने काशी में 50 दिन बिना रुके 2,000 मंत्रों का दंडक्रम पारायण किया

The CSR Journal Magazine
महाराष्ट्र के अहिल्या नगर के 19 वर्षीय वेदमूर्ति देवव्रत महेश रेखे ने हाल ही में काशी (वाराणसी) में शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा का अत्यंत कठिन वैदिक पाठ ‘दंडक्रम पारायण’ पूरा कर इतिहास रचा। यह वह सादना है जिसे पिछले लगभग 200 वर्षों में किसी ने भी पूर्ण नहीं किया था। देवव्रत ने बिना किसी किताब को देखे, 50 दिनों तक लगातार 2,000 मंत्रों का शुद्ध उच्चारण किया और इसे त्रुटिहीन रूप से संपन्न किया।

प्रारंभिक जीवन और वैदिक यात्रा

देवव्रत का जन्म महाराष्ट्र के अहिल्या नगर में हुआ। वे एक वैदिक परिवार से आते हैं, उनके पिता वेदब्रह्मश्री महेश चंद्रकांत रेखे स्वयं एक प्रतिष्ठित वैदिक विद्वान हैं। छोटे बच्चे के रूप में ही देवव्रत ने वेदों का अध्ययन शुरू कर दिया और माता-पिता की प्रेरणा एवं पिता के मार्गदर्शन में उन्होंने वर्षों तक कठोर अभ्यास किया। उनके गुरु, निलेश केदार, ने उन्हें इस कठिन मार्ग के लिए प्रशिक्षित किया और उनकी माता की प्रेरणा भी उनके साथ थी, जिन्होंने चाहा था कि देवव्रत इस कठिन पाठ को काशी में पूर्ण करे और भगवान विश्वनाथ को अर्पित करे।

दंडक्रम पारायण: एक कठिन वैदिक अनुशासन

दंडक्रम पारायण वेदों के आठ प्रमुख पाठों (विक्रुतियों) में से एक है और इसे वैदिक शब्दों की उच्चतम शुद्धता और लय में प्रस्तुत करने के लिए जाना जाता है। इसमें लगभग 2,000 मंत्र शामिल हैं और इसका अध्ययन एवं पूर्ण अभ्यास 1.5 साल का समय लेता है। देवव्रत ने इस पाठ को लगातार 50 दिनों तक बिना किसी रुकावट के पूरा किया। उन्होंने प्रतिदिन लगभग 3.5 से 4 घंटे का अभ्यास किया, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक संयम भी सिद्ध हुआ।

काशी में उपलब्धि और सम्मान

यह पाठ 2 अक्टूबर से 30 नवंबर तक वल्लभाराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय, रामघाट, वाराणसी में संपन्न हुआ। देवव्रत के इस इतिहासिक प्रयास के दौरान उनके पिता Abhishekam में उनके साथ थे। पाठ समाप्ति के उपलक्ष्य में उन्हें श्रींगेरी शंकराचार्य से 5 लाख रुपये का सोने का कंगन और 1,11,116 रुपये राशि से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उनके सम्मान में काशी में एक भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जिसमें 500 से अधिक वैदिक छात्र, संगीतकार और भक्त शामिल हुए।

प्रशंसा और प्रेरणा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देवव्रत के इस उपलब्धि की सराहना की। पीएम मोदी ने इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बताते हुए कहा कि यह सफलता हमारे गुरु-परंपरा की उच्चतम परंपरा को दर्शाती है। सीएम योगी ने इसे वैदिक अनुशासन और भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा का जीवंत उदाहरण बताया।

उद्देश्य और संदेश

देवव्रत ने अपने उद्देश्य के बारे में कहा कि इस साधना का लक्ष्य केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि इससे सनातन धर्म की प्रगति हो, विश्वभर में भारत की सांस्कृतिक चेतना बढ़े और समस्त विश्व आशीर्वादित हो। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने अभी अपनी यात्रा की शुरुआत की है और गुरु के चरणों में सेवा करना अभी बाकी है।देवव्रत महेश रेखे की यह उपलब्धि न केवल वैदिक ज्ञान के प्रति उनके समर्पण को दर्शाती है, बल्कि यह साबित करती है कि युवा पीढ़ी आज भी प्राचीन परंपराओं को संजो कर उन्हें जीवित रख सकती है।
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