सचिन तेंदुलकर कहते हैं कि ‘मैं खुद को काफी भाग्यशाली समझता हूं कि मुझे आचरेकर सर जैसे निस्वार्थ इंसान से क्रिकेट सीखने का मौका मिला।’ आचरेकर सर को पाकर सचिन क्रिकेट के भगवान बन गए। चंद्रगुप्त मौर्य को चाणक्य जैसा गुरु मिला, तो वह नंद वंश को उखाड़ कर मगध का राजा बन गया था। यदि गुरु श्रेष्ठ मिल जाए तो उसका शिष्य श्रेष्ठतम बन सकता है, महान बन सकता है। जहां माता-पिता बच्चों का लालन-पालन करते हैं, वहीं अध्यापक उसे तराशने का काम करता है। माता पिता के बाद एक शिक्षक ही होता है जो अपने छात्र की तरक्की पर कभी ईर्ष्या नहीं करता। शिक्षक के महान होने की बात आज हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज शिक्षक दिवस है।
गैर शैक्षणिक कामों से शिक्षा के स्तर में आती है गिरावट
टीचर्स अपने स्टूडेंट्स का पढ़ाने के लिए तो बहुत मेहनत करते हैं लेकिन बावजूद शिक्षा के स्तर में सुधार आने के बजाय रिजल्ट्स लगातार खराब हो रहे हैं। आज विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर के निम्न होने के पीछे सबसे बड़ा कारण शिक्षक द्वारा गैर शैक्षणिक कार्यों में लगे रहना ही है। आज Teachers पढ़ाने के अलावा अन्य कामों के भार तले दब गया है। इतना ही नहीं इन कामों के पूरा न हो पर कार्रवाई के डर के कारण शिक्षक अपने मूल काम से दूर ही रहता है। देश के लगभग सभी राज्यों में शिक्षकों से गैर शिक्षण कार्य (Non Teaching Work of Teachers) करवाने का चलन सा बन गया है जिससे सब जगह स्कूल शिक्षा (School Education) बुरी तरह प्रभावित होती है।
शिक्षक का काम सिर्फ विद्या देना ना कि डाटा फीडिंग करना
हमारी सरकारें और प्रशासनिक व्यवस्था एक टीचर को सब काम करने वाला सर्वगुण युक्त नि:सहाय समझ लेती है जिससे आज हमारे अनेक शिक्षक गैर शैक्षणिक कामों में उलझकर रह गए हैं। अनेक स्थानों पर उनसे स्टाफ की कमी के कारण दफ्तरी काम भी लिए जाते हैं। कंप्यूटर पर डाटा फीडिंग हो या स्टूडेंट्स की फोटो अपलोड व सत्यापन, दिनभर में ऐसे ही जाने कितने काम शिक्षकों को पढ़ाने के अलावा करने पड़ते हैं। इनसे कहीं क्लर्क जैसा काम करते गलती हो जाए तो जॉब पर आफत बन आती है। मिड डे मील की पूरी जिम्मेदारी प्रधानाध्यापक व प्रभारी प्रधानाध्यापक की ही होती है। इसके अतिरिक्त विभाग द्वारा विद्यालय प्रबंध समिति के माध्यम से बच्चों को दिए जाने वाली अनेक सुविधाएं जैसे स्कूल यूनिफार्म, जूते, मोजे, बैग, पुस्तकें इत्यादि की खरीद-फरोख्त एवं बांटने की जिम्मेदारी भी अध्यापक की ही है।
यह प्रशासनिक कार्य है, न कि शिक्षा से जुड़े काम हैं। और तो और, ग्रामीण स्तर पर संचालित की जाने वाली अनेक योजनाओं में अध्यापक का ही सहारा लिया जाता है। चाहे ग्रामीणों को स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिया जाने वाला टीकाकरण हो या बच्चों एवं गर्भवती स्त्रियों को आयरन एवं कैल्शियम की गोली बांटनी हो, यहां तक कि पेट के कीड़ों की गोलियां भी अध्यापक को ही बांटनी होती है। सबसे बड़ा काम तो चुनाव के दरमियान आता है। इलेक्शन ड्यूटी में तो अनेक महिला अध्यापकों की हालत बहुत खऱाब हो जाती है।
टीचर्स को टीचर्स ही रहने दें, ना कराएं क्लर्क का काम
Non Teaching Work से जब स्कूल शिक्षा व्यवस्था बाधित होती है, इसका असर सीधे तौर पर बच्चों की दी जाने वाली शैक्षणिक गुणवत्ता (Quality Education) पर भी पड़ता है। गौरतलब है कि पूरे विश्व में शिक्षा व्यक्ति के जीवन का आधार समझी जाती है। किसी भी ढांचे को खड़ा करने के लिए उसकी नींव को मजबूत किया जाना जरुरी है। यदि नींव ही मजबूत नहीं होगी तो किसी भी ढांचे का अधिक समय तक टिके रह पाना संभव नहीं। हमारे टीचर ही शिक्षा की नींव बनाते हैं। यदि हम बच्चों को क्वालिटी स्कूल एजुकेशन दिलाना चाहते हैं तो टीचरों को टीचर ही रहने दिया जाना चाहिए।