बिहार के भागलपुर जिले में हुई एक अविश्वसनीय घटना ने साबित कर दिया कि “जाको राखे साइयां, मार सके न कोय” वाली कहावत आज भी सच है। मुंगेर जिले के बरियारपुर की रहने वाली कुमकुम देवी के साथ जो हुआ, वह किसी चमत्कार से कम नहीं है। वह सुल्तानगंज स्थित नमामि गंगे घाट पर गंगा स्नान कर रही थीं, लेकिन अचानक गंगा की तेज और अनियंत्रित धार में वह बह गईं।
डूबती महिला ने शव को बनाया सहारा, 7 किमी तक तैरकर बचाई जान
देखते ही देखते, वह बीच धार में पहुँच गईं, जहाँ बचने की सारी उम्मीदें खत्म हो चुकी थीं। उनके परिवार और वहाँ मौजूद लोगों ने भी मान लिया था कि वह अब जीवित नहीं बची हैं। लेकिन कुमकुम देवी ने हार नहीं मानी। तभी, गंगा की लहरों में उन्हें एक अज्ञात व्यक्ति का शव दिखा। एक पल के लिए तो वह घबरा गईं, लेकिन फिर उन्होंने हिम्मत जुटाई और उस शव को ही अपनी जीवन रेखा बना लिया। वह करीब सात किलोमीटर तक उसी शव को पकड़े रही, जैसे वह कोई लाइफ जैकेट हो।
नाविक बना देवदूत, गंगा से जिंदा बाहर आई महिला
यह संघर्ष तब तक जारी रहा, जब तक तिलकपुर गांव के पास एक नाविक की नजर उन पर नहीं पड़ी। नाविक ने तुरंत अपनी नाव को कुमकुम देवी की ओर मोड़ा और उन्हें पानी से बाहर निकाला। जब वह किनारे पर आईं, तो सभी हैरान थे। परिवार को तो पहले ही उनकी मौत की खबर मिल चुकी थी, लेकिन कुमकुम देवी को जिंदा देखकर उनकी आँखें भर आईं।
कुदरत का करिश्मा: जब हार के बाद भी मिली जीत’
यह घटना न सिर्फ कुमकुम देवी के मजबूत इरादों को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि जीवन की सबसे मुश्किल घड़ी में भी आशा की किरण हमेशा मौजूद होती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि जब हम हार मान लेते हैं, तब भी कुदरत हमें बचाने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेती है।
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