गयाजी में विजयादशमी का पर्व इस बार सनातन धर्म के दो महत्वपूर्ण स्तंभों – शस्त्र और शास्त्र – के महत्व को दर्शाता दिखा। आश्विन शुक्ल पक्ष की विजयादशमी के शुभ अवसर पर, हिन्दू युवा शक्ति संघ, सूर्यकुण्ड ने मंगला गौरी मंदिर में एक भव्य शस्त्र पूजन समारोह का आयोजन किया। यह पूजन पूर्ण वैदिक विधि-विधान से संपन्न हुआ, जहाँ माँ मंगला की प्रतिमा के सामने अस्त्र-शस्त्र सजाए गए और मंत्रोच्चार के बीच उनकी विधिवत पूजा-अर्चना की गई।

परंपरा और शौर्य का संगम: 17 वर्षों से जारी है ये अनुष्ठान
मंदिर के प्रधान पुजारी आकाश गिरी ने बताया कि सनातन धर्म की प्राचीन परंपरा के अनुसार दशहरे पर शस्त्रों, वाहनों और यंत्रों की पूजा का विशेष विधान है। उन्होंने जोर दिया कि सनातन धर्म में शस्त्र (रक्षा का साधन) और शास्त्र (ज्ञान का साधन) दोनों का समान महत्व है। इसी परंपरा को निभाते हुए हिन्दू युवा शक्ति संघ पिछले 17 वर्षों से निरंतर यह अनुष्ठान कर रहा है। संघ का स्पष्ट मानना है कि सनातनियों को शास्त्र-ज्ञान के साथ-साथ आत्मरक्षा के लिए शस्त्र की परंपरा का भी पालन करना चाहिए।
मर्यादा पुरुषोत्तम की प्रेरणा: क्यों पूजे जाते हैं अस्त्र-शस्त्र?
दशहरे पर शस्त्र पूजन की मान्यताएं सदियों पुरानी हैं। राम कचहरी मंदिर के महंत शशिकांत दास ने इस संबंध में दो प्रमुख कथाएं बताईं। एक कथा के अनुसार, प्रभु श्री राम ने लंका युद्ध पर जाने से पहले विजय सुनिश्चित करने के लिए शस्त्रों की पूजा की थी।
दूसरी कथा, महिषासुर राक्षस के वध से जुड़ी है। जब महिषासुर ने स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया, तब देवताओं ने देवी माँ को अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। इन हथियारों की शक्ति से ही देवी ने महिषासुर का संहार कर विजय प्राप्त की। यही कारण है कि विजय का पर्व यानी विजयादशमी के दिन इन शक्तियों की पूजा की जाती है।


