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November 27, 2025

राजस्थान में जनआधार न होने पर मुफ्त इलाज से वंचित मरीज, सरकारी अस्पतालों में देना पड़ रहा भारी खर्च

The CSR Journal Magazine
राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में उपचार अब उन लोगों के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है, जिनके पास जनआधार या राजस्थान लिंक आधार उपलब्ध नहीं है। बीमा योजना में पंजीकरण न होने या दस्तावेज अधूरे होने पर मरीजों को मुफ्त इलाज का लाभ नहीं मिलता। नतीजतन, ऐसे लोगों को सरकारी अस्पतालों में भी इलाज के लिए उतनी ही राशि चुकानी पड़ रही है, जितनी निजी अस्पताल वसूलते हैं।

दस्तावेज़ न होने पर मरीज सीधे पेड कैटेगरी में

राज्य की मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य महाशिविर योजना (मां) के पैकेज रेट के आधार पर सभी सरकारी अस्पताल शुल्क निर्धारित कर रहे हैं। जिन मरीजों का जनआधार सत्यापन नहीं हो पाया है, उन्हें सीधे पेड कैटेगरी में भेजा जा रहा है, जहां हर इलाज के लिए तय पैकेज के हिसाब से भुगतान करना अनिवार्य है।

मजदूर और बाहरी राज्यों से आए परिवार सबसे ज्यादा परेशान

राजस्थान में कई वर्षों से रहकर काम करने वाले मजदूर, कर्मचारी और बाहरी राज्यों से आए परिवारों के लिए यह व्यवस्था बड़ी समस्या बन गई है। कई लोग यहां टैक्स देते हैं, किराए पर रहते हैं, वर्षों से काम कर रहे हैं, लेकिन जनआधार बनवाने या आधार को राज्य से लिंक कराने में आने वाली दिक्कतों के कारण वे सरकारी सुविधाओं से वंचित हो रहे हैं। अस्पताल प्रशासन ऐसे मरीजों को यह कहते हुए पेड कैटेगरी में डाल देता है कि बिना दस्तावेज मुफ्त उपचार संभव नहीं है।
सरकारी अस्पतालों में पेड कैटेगरी के तहत लगने वाले शुल्क भी कम नहीं हैं। साधारण आईसीयू का खर्च 4,700 रुपए प्रतिदिन है, वहीं वेंटिलेटर आईसीयू के लिए 7,500 रुपए प्रतिदिन तक देना पड़ता है। जनरल वार्ड में भर्ती होने पर भी मरीजों को 1,800 रुपए प्रतिदिन का भुगतान करना पड़ता है। यह खर्च उतना ही है, जितना निजी अस्पतालों में लिया जाता है।
‘मां’ योजना के अंतर्गत बर्न केस का पैकेज 40,000 से 80,000 रुपए तक, कार्डियक उपचार 50,000 से 1.5 लाख रुपए, कार्डियोवैस्कुलर सर्जरी करीब 2 लाख रुपए और न्यूरो या ऑर्थो सर्जरी 50,000 से 1 लाख रुपए तक तय किए गए हैं। दस्तावेज पूरे होने पर ये उपचार नि:शुल्क हैं, लेकिन दस्तावेज न होने की स्थिति में मरीजों को यह पूरा खर्च अपनी जेब से देना पड़ता है।
इस व्यवस्था से खासतौर पर वे लोग प्रभावित हैं जो लंबे समय से राजस्थान में काम कर रहे हैं, मगर जनआधार और राज्य-लिंक आधार की प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाए। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों को इलाज कराने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है।
लोगों का कहना है कि दस्तावेज अपडेट न होने की समस्या उनकी मजबूरी है, लेकिन इसका खामियाज़ा उन्हें इलाज की भारी लागत के रूप में भुगतना पड़ रहा है। जरूरत है कि राज्य सरकार ऐसी व्यवस्था करे जिससे अस्थायी या लंबे समय से रह रहे मजदूरों और परिवारों को भी समय पर चिकित्सा सुविधाएं मिल सकें और उन्हें पेड कैटेगरी में भेजने की मजबूरी खत्म हो सके।
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