बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी प्रमुख बेगम खालिदा जिया के निधन पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त किया है। पीएम मोदी ने साल 2015 में ढाका में हुई मुलाकात की पुरानी तस्वीरें साझा करते हुए उन्हें बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री और भारत–बांग्लादेश संबंधों में अहम योगदान देने वाली नेता बताया। हालांकि, खालिदा जिया की राजनीतिक विरासत को लेकर भारत-विरोधी नीतियों और पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादी संगठनों को कथित समर्थन जैसे विवाद भी लंबे समय से चर्चा में रहे हैं।
पीएम मोदी का शोक संदेश और पुरानी मुलाकात की यादें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए खालिदा जिया के निधन पर दुख जताया। उन्होंने लिखा कि ढाका में पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी चेयरपर्सन बेगम खालिदा जिया के निधन का समाचार बेहद दुखद है। पीएम मोदी ने उनके परिवार और बांग्लादेश के लोगों के प्रति संवेदनाएं व्यक्त कीं और ईश्वर से परिवार को इस कठिन समय में शक्ति देने की कामना की। पीएम मोदी ने 2015 में ढाका यात्रा के दौरान खालिदा जिया से हुई गर्मजोशी भरी मुलाकात को याद करते हुए कहा कि बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में उनका योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी सोच और विरासत भारत–बांग्लादेश साझेदारी को आगे भी दिशा देती रहेगी।

लंबी बीमारी के बाद हुआ निधन
बेगम खालिदा जिया लंबे समय से बीमार चल रही थीं और चिकित्सकों के अनुसार उनकी स्थिति काफी समय से नाजुक थी। उनका जन्म 15 अगस्त 1945 को दीनाजपुर जिले में हुआ था। वे बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान की पत्नी थीं, जिनकी 1981 में हत्या कर दी गई थी। खालिदा जिया बांग्लादेश की राजनीति में एक मजबूत और प्रभावशाली नेता के रूप में जानी जाती थीं। उन्होंने 1991–1996 और 2001–2006 के बीच दो बार देश की प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया और बांग्लादेश की बहुदलीय राजनीति में अहम भूमिका निभाई।
भारत-विरोधी नीतियों और उग्रवाद को लेकर आरोप
खालिदा जिया और उनकी पार्टी बीएनपी पर अपने शासनकाल के दौरान भारत-विरोधी रुख अपनाने के आरोप लगते रहे। भारत का आरोप रहा कि उनके कार्यकाल में पूर्वोत्तर भारत के अलगाववादी संगठनों जैसे यूएलएफए, एनडीएफबी, एनएलएफटी और एटीटीएफ को बांग्लादेश में शरण और समर्थन मिला। यह भी कहा गया कि 1990 के दशक और 2000 के शुरुआती वर्षों में इन संगठनों की गतिविधियां बीएनपी शासन के दौरान मजबूत हुईं। आरोपों के अनुसार, पाकिस्तानी एजेंसियों के साथ मिलकर इन समूहों को समर्थन दिया गया और उनके शीर्ष नेता बांग्लादेशी शहरों में सुरक्षित ठिकानों पर रहे।


