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November 22, 2025

पीएम मोदी का ‘गमछा दांव’, कैसे बना स्टेटस सिंबल और चुनावी हथियार?

The CSR Journal Magazine
बिहार के चुनावों में इस बार गमछे ने न सिर्फ स्थानीय पहचान को उभारा, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक दांव भी खेला। नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से गमछा लहराया। इससे पहले भी उन्होंने चुनावी रैलियों और जीत के जश्न पर इसे अपनाकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पीएम मोदी ने गमछा लहराकर खुद को मेहनतकश किसानों और मजदूरों से भावनात्मक रूप से जोड़ा, जो बिहार की राजनीति में एक मजबूत प्रतीकात्मक संदेश था। यह उनकी व्यापक वस्त्र-आधारित रणनीति का हिस्सा था, जिसके जरिए वह क्षेत्रीय पहचान के साथ जुड़कर मतदाताओं से भावनात्मक तालमेल बैठाते हैं।

लालू की ‘देसी’ पहचान से तेजस्वी की दूरी: गमछा संस्कृति का बदलाव

बिहार की राजनीति में गमछा लंबे समय से मेहनतकश समाज का प्रतीक रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संस्थापक लालू प्रसाद यादव ने हरे गमछे को अपनी राजनीतिक शैली का एक अभिन्न हिस्सा बनाया। यह रंग उनकी ‘देसी’ पहचान और पार्टी के मुख्य आधार (मुस्लिम-यादव) का प्रतीक बन गया। लालू ने इसे कार्यकर्ताओं का “लाइसेंस” तक बताया था।
हालांकि, नई पीढ़ी के नेता तेजस्वी यादव ने जानबूझकर इस ‘गमछा संस्कृति’ से दूरी बनाने की कोशिश की, ताकि पार्टी की छवि को आधुनिक और समावेशी बनाया जा सके, जो केवल एक जातीय पहचान तक सीमित न रहे।

तेजस्वी को ‘हरा’ गमछा क्यों पड़ा भारी?

लालू का गमछा, जो कभी ‘ग्रामीण’ और ‘पिछड़े’ वर्ग का शक्तिशाली प्रतीक था, अब RJD के लिए उसकी सीमाओं को दर्शाने लगा। विशेषज्ञों के अनुसार, गमछे का यह अत्यधिक पहचान RJD को अति पिछड़ा वर्ग (EBC) जैसे व्यापक वोट बैंक तक पहुंचने से रोक सकता था।
पीएम मोदी ने इस खाली जगह का इस्तेमाल किया। उन्होंने मधुबनी गमछा पहनकर अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और महिला मतदाताओं को जोड़ने का प्रभावी प्रयास किया। यह वर्ग पारंपरिक रूप से नीतीश कुमार का मुख्य मतदाता माना जाता है। इस रणनीति ने गमछे को सिर्फ सादगी का प्रतीक नहीं, बल्कि स्पष्ट राजनीतिक वफादारी और विचारों के अलगाव का माध्यम बना दिया।

100 करोड़ का कारोबार, ‘आम आदमी’ का कपड़ा, खास सम्मान का प्रतीक

गमछा सिर्फ राजनीतिक हथियार या सांस्कृतिक पुल ही नहीं है, बल्कि यह 6 जिलों से करीब 100 करोड़ रुपये का कारोबार भी करता है। यह एक चेकदार, सस्ते सूती कपड़े का टुकड़ा है जिसका इस्तेमाल पसीना पोंछने, सिर ढकने या धूल झाड़ने के लिए किया जाता है। पूर्वी भारत में इसे ‘गमोसा’ या ‘अंगोछा’ भी कहते हैं।
असम में यह सम्मान का प्रतीक ‘गमोसा’ है, जिसे मेहमानों को भेंट किया जाता है। धार्मिक आयोजनों में भी इसका महत्व है, जैसे बिहार की प्रसिद्ध छठ पूजा में इसे प्रसाद की टोकरी में रखा जाता है। यह साबित करता है कि गमछा सिर्फ एक कपड़ा नहीं, बल्कि एक मजबूत सांस्कृतिक, सामाजिक और अब राजनीतिक पहचान है।

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