बिहार के चुनावों में इस बार गमछे ने न सिर्फ स्थानीय पहचान को उभारा, बल्कि एक बड़ा राजनीतिक दांव भी खेला। नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से गमछा लहराया। इससे पहले भी उन्होंने चुनावी रैलियों और जीत के जश्न पर इसे अपनाकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश दिया।
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि पीएम मोदी ने गमछा लहराकर खुद को मेहनतकश किसानों और मजदूरों से भावनात्मक रूप से जोड़ा, जो बिहार की राजनीति में एक मजबूत प्रतीकात्मक संदेश था। यह उनकी व्यापक वस्त्र-आधारित रणनीति का हिस्सा था, जिसके जरिए वह क्षेत्रीय पहचान के साथ जुड़कर मतदाताओं से भावनात्मक तालमेल बैठाते हैं।
लालू की ‘देसी’ पहचान से तेजस्वी की दूरी: गमछा संस्कृति का बदलाव
बिहार की राजनीति में गमछा लंबे समय से मेहनतकश समाज का प्रतीक रहा है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के संस्थापक लालू प्रसाद यादव ने हरे गमछे को अपनी राजनीतिक शैली का एक अभिन्न हिस्सा बनाया। यह रंग उनकी ‘देसी’ पहचान और पार्टी के मुख्य आधार (मुस्लिम-यादव) का प्रतीक बन गया। लालू ने इसे कार्यकर्ताओं का “लाइसेंस” तक बताया था।
हालांकि, नई पीढ़ी के नेता तेजस्वी यादव ने जानबूझकर इस ‘गमछा संस्कृति’ से दूरी बनाने की कोशिश की, ताकि पार्टी की छवि को आधुनिक और समावेशी बनाया जा सके, जो केवल एक जातीय पहचान तक सीमित न रहे।


