ओडिशा के ऐतिहासिक शहर पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर न केवल भारत के चार धामों में से एक है, बल्कि यह आस्था, संस्कृति और रहस्य का केंद्र भी माना जाता है। भगवान विष्णु के अवतार श्री जगन्नाथ को समर्पित यह मंदिर हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। खासतौर पर आषाढ़ महीने में होने वाली रथ यात्रा के समय यहां श्रद्धा का सागर उमड़ पड़ता है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान हैं, जो कलिंग स्थापत्य की भव्यता और भारतीय आस्था का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती हैं। यह न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारतीय स्थापत्य, खगोल विज्ञान, और रहस्यमय परंपराओं का भी अद्भुत संगम है। हर साल यहां आषाढ़ महीने में होने वाली रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है लाखों भक्त इसे देखने के लिए पुरी पहुंचते हैं।
12वीं सदी का स्थापत्य चमत्कार
पुरी मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में गंग वंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने करवाया था और इसे उनके उत्तराधिकारी राजा अनंगभीम देव तृतीय ने पूर्ण कराया। कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर लगभग 214 फीट ऊंचा है। इसके शिखर पर स्थित नीलचक्र (सुदर्शन चक्र) आठ धातुओं से बना है और आश्चर्यजनक रूप से यह हर दिशा से एक समान दिखाई देता है, यह स्थापत्य और खगोल विज्ञान का उत्कृष्ट उदाहरण है।
नवकलेवर: जब भगवान लेते हैं नया रूप
पुरी की सबसे रहस्यमय परंपराओं में से एक है ‘नवकलेवर’, जो हर 12 से 19 वर्ष में एक बार होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की लकड़ी की मूर्तियों को बदला जाता है। नई मूर्तियों के लिए विशेष नीम के पेड़ों का चयन किया जाता है ऐसे पेड़ जिन पर शंख, चक्र, गदा या पद्म के प्राकृतिक निशान होते हैं और जो किसी नदी या श्मशान के पास स्थित हों।पुरानी मूर्तियों को मंदिर परिसर के भीतर ‘कोइली वैकुंठ’ में दफनाया जाता है, जिसे धरती पर वैकुंठ कहा जाता है।
रथ यात्रा: जब भगवान निकलते हैं मौसी के घर
पुरी की रथ यात्रा को “महापर्व” कहा जाता है। हर साल आषाढ़ मास में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को तीन विशाल रथों में सवार कर गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह यात्रा भगवान के अपनी मौसी के घर जाने का प्रतीक मानी जाती है। रथ यात्रा के दिन करीब 10 लाख से अधिक श्रद्धालु इस आयोजन में शामिल होते हैं, और एक अनोखी बात यह है कि हर साल इस दिन हल्की वर्षा होना परंपरागत रूप से भगवान का आशीर्वाद माना जाता है।
दुनिया की सबसे बड़ी रसोई
मंदिर की रसोई को “महाप्रसाद शाला” कहा जाता है, जो प्रतिदिन 20,000 से 50,000 लोगों के लिए भोजन तैयार करती है। यहां करीब 600 रसोइए और 400 सहायक मिट्टी के बर्तनों में लकड़ी की आग पर खाना पकाते हैं। सबसे अद्भुत तथ्य यह है कि जब कई बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, तो ऊपर रखा बर्तन पहले पक जाता है और नीचे वाला बाद में यह आज तक विज्ञान के लिए अनसुलझा रहस्य है। फिर भी, प्रसाद की मात्रा रोज़ बदलती है पर कभी कम या ज्यादा नहीं पड़ती इसे भगवान की लीला माना जाता है।
मंदिर के वो रहस्य जो आज भी हैरान करते हैं
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दिन के किसी भी समय मंदिर के गुंबद की छाया जमीन पर नहीं दिखती।
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सिंहद्वार में प्रवेश करते ही समुद्र की लहरों की गूंज शांत हो जाती है, जबकि बाहर निकलते ही फिर सुनाई देने लगती है।
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ध्वज की दिशा: मंदिर का ध्वज हमेशा हवा की उलटी दिशा में फहराता है।
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वायु प्रवाह का उल्टा नियम: पुरी में दिन में हवा समुद्र से जमीन की ओर और शाम को जमीन से समुद्र की ओर बहती है जो सामान्य नियम से उलट है।

