अगले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव होने है। अभी से ही राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर छींटाकशी कर रही है। जहां एक तरफ विकास के मुद्दे पर योगी सरकार अपनी उपलब्धियां गिना रही है। वहीं विपक्ष को विकास की बयार तक महसूस नहीं हो रही है। हालांकि जनता सब जानती है कि धरातल की सच्चाई आखिरकार है क्या। बात विकास की हो रही है और सीएसआर का जिक्र ना हो ये संभव नहीं। क्योंकि बिना CSR से विकास आम जनमानस तक नहीं पहुंचती। देश के हर राज्य सीएसआर यानी कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड को देश के विकास को एक महत्वपूर्ण जरिया मानते है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सीएसआर फंड के लिए देश के हर कॉरपोरेट्स का दरवाजा खटखटा चुके है। लेकिन ये भी एक उत्तर प्रदेश की सच्चाई है कि योगी के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सीएसआर से कोई विकास काम ही नहीं हुआ है। बल्कि यूं कहें कि सीएसआर का एक भी रूपया ख़र्च ही नहीं हुआ है।
75 जिलों में से 19 ऐसे जिले है जहां CSR के तहत कोई भी विकास कार्य नहीं हुए
The CSR Journal की इस विशेष रिपोर्ट में आईये जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के ऐसे कौन से जिले है जहां कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड का एक भी रूपया इस्तेमाल ही नहीं हुआ है। दरअसल उत्तर प्रदेश में 75 जिले है। 75 जिलों में से 8 ऐसे जिले है जो सबसे पिछड़े है और नीति आयोग ने उन्हें एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट घोषित किया है। साल 2019-2020 में उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से शामली, कांशीरामनगर, एटा, इटावा, औरैया, जालौन, ललितपुर, महोबा, बांदा, कौशांबी, प्रयागराज, मिर्जापुर, संत रविदास नगर, मऊ, आज़मगढ़, संत कबीर नगर, आंबेडकर नगर, फैज़ाबाद, बस्ती यानी 75 जिलों में से 19 ऐसे जिले है जहां Corporate Social Responsibility के तहत कोई भी विकास कार्य नहीं हुए।
यूपी के ये है जिले जहां सीएसआर स्पेंडिंग है जीरो
अगर हम 2018-2019 की बात करें तो शामली, अमरोहा, संभल, बदायूं, कांशी राम नगर, इटावा, कानपुर देहात, हमीरपुर, महोबा, बांदा, इलाहाबाद, बलिया, मऊ, संत कबीर नगर, फैजाबाद, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज में भी सीएसआर के तहत किसी भी तरह के खर्च नहीं किये गए। यानी 75 जिलों में से 18 ऐसे जिले रहें जहां सीएसआर एक्सपेंडिचर जीरो रहा। साल 2017-2018 में शामली, बदायूं, कांशीरामनगर, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, हरदोई, हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, इलाहाबाद, संत रविदास नगर, मऊ, अंबेडकर नगर, फैजाबाद, संत कबीर नगर, गोंडा, बलरामपुर, महाराजगंज, बहराइच, ललितपुर ये ऐसे जिले है जहां सीएसआर स्पेंडिंग जीरो रहा।
सीएसआर (CSR) में पीछे है यूपी (उत्तर प्रदेश) – मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉरपोरेट अफेयर्स
मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉरपोरेट अफेयर्स ने ये आकड़े जारी किये है। दरअसल सामाजिक बदलाव के लिए सीएसआर यानी कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (Corporate Social Responsibility) बहुत मददगार साबित होता है लेकिन उत्तर प्रदेश में सीएसआर फिसड्डी साबित हो रहा है। इसका मुख्य कारण उद्योग जगत का यूपी में नहीं होना। भले ही यूपी की योगी सरकार निवेश के बड़े-बड़े आकड़े दिखा रही हो लेकिन धरातल पर इन निवेशों को नौकरियों और औद्योगिक इकाईयों में बनने के लिए अभी वक़्त लगेगा। कॉरपोरेट्स उत्तर प्रदेश में निवेश तो कर रहे है लेकिन वो भी सिमित इलाकों में, खासकर दिल्ली एनसीआर में। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार 5 साल पूरा करने जा रही है। लेकिन अभी तक कॉर्पोरेट्स अपने सीएसआर फंड का इस्तेमाल अपने यूनिट्स और जहां ये कॉर्पोरेट्स काम कर रही है वहां सीएसआर के निवेश नहीं कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार पर भरोसा, कानून व्यवस्था, कॉरपोरेट्स के लिए अनुकूल नीतियां भी बहुत मायने रखती है।
CSR नहीं यानी कॉरपोरेट्स द्वारा यूपी में निवेश नहीं
यूपी सीएसआर खर्च के मामले में टॉप टेन की लिस्ट में नहीं है। यानी देश की कॉर्पोरेट्स जिन जिन राज्यों में सबसे ज्यादा सीएसआर खर्च करती है, उस टॉप 10 की लिस्ट में यूपी (UP-Uttar Pradesh) का नाम नहीं है। सीएसआर खर्च पर जारी सरकारी आकड़ों की माने तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीएसआर खर्च किया जाता है। वही उत्तर प्रदेश में सीएसआर खर्च बहुत पीछे है। देश की तमाम कंपनीज अपने सीएसआर का खर्च करती है और साल 2019-20 (30 सितम्बर 2020 तक) का महाराष्ट्र में ये आकड़ा है 1313 करोड़ है वही उत्तर प्रदेश में ये अकड़ा महज 39 करोड़ ही है। ऐसे में CSR खर्च प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा हो इसके लिए योगी सरकार को सीएसआर नीतियों में बदलाव करके सकारात्मक पहल करनी चाहिए। बहरहाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश का चौतरफे विकास का दम भरते है लेकिन 75 जिलों के कई ऐसे जिलें है जहां सीएसआर से विकास कार्य ठप्प से पड़े है। योगी आदित्यनाथ लगातार देश के कॉरपोरेट्स से अपील भी करते आये है कि वो उत्तर प्रदेश में आएं, निवेश करें लेकिन ऊपर दिए ये आकड़े बताते है कि जिलों में CSR के तहत कुछ डेवलपमेंट के काम ही नहीं हुए यानी यहां कॉरपोरेट कंपनियों ने निवेश ही नहीं किया।