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September 27, 2025

Navratri 2025: गरबा में तीन ताली क्यों बजाई जाती हैं? सदियों पुरानी रहस्य और नवरात्रि से जुड़ी परंपरा

The CSR Journal Magazine
नवरात्रि के दौरान गरबा और डांडिया रास का दृश्य भारत में हर जगह देखने को मिलता है। महिलाओं और पुरुषों का गोलाकार नृत्य, रंग-बिरंगे परिधान, और तीन तालियों की ध्वनि इस पर्व को और भी खास बना देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गरबा में तीन ताली बजाने की परंपरा के पीछे भी गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है?

तीन तालियों का महत्व

गरबा में बजाई जाने वाली तीन ताली केवल नृत्य का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि इसका आध्यात्मिक अर्थ भी है।यह माता दुर्गा के तीन रूपों- सत्व, रज और तम का प्रतीक है. साथ ही इसका संबंध ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति से भी माना जाता है. कहानी के अनुसार, जब महिषासुर राक्षस के आतंक से देवता परेशान हुए, तो उन्होंने देवी दुर्गा को आह्वान किया. मां ने लगातार नौ दिन युद्ध करके महिषासुर का वध किया. दसवें दिन यानी विजयादशमी पर वे शांत हुईं और तभी से दशहरा मनाया जाता है. इसी वजह से गरबा की तीन ताली को त्रिदेव की शक्ति और मां दुर्गा की विजय से जोड़ा जाता है.
पहली ताली – ब्रह्मा (इच्छा)
ब्रह्मा सृजन के देवता हैं। पहली ताली उनकी शक्ति का प्रतीक मानी जाती है, जो हमारी इच्छाओं और सृजन की ऊर्जा को जागृत करती है।
दूसरी ताली – विष्णु (पालन)
विष्णु पालन और संरक्षण के देवता हैं। दूसरी ताली जीवन की रक्षा और संतुलन की शक्ति को दर्शाती है।
तीसरी ताली – महेश (शिव) (संहार और पुनर्निर्माण)महेश संहार और पुनर्निर्माण के देवता हैं। तीसरी ताली हमारे जीवन में नकारात्मक शक्तियों के नाश और नई ऊर्जा के संचार का प्रतीक है
इन तीन तालियों की ध्वनि से उत्पन्न तरंगें देवी शक्ति, विशेषकर मां अंबा, को जागृत करती हैं और गरबा के दौरान नृत्य और पूजा की ऊर्जा को बढ़ावा देती हैं।

गरबा का इतिहास

गरबा का नाम संस्कृत शब्द “गर्भ दीप” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “गर्भ में दीपक”। यह दीपक मां दुर्गा के भीतर ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है।
प्रारंभ में मिट्टी के घड़े में दीपक रखकर उसे सजाया जाता था।घड़े के चारों ओर गोलाकार नृत्य किया जाता था, जिससे देवी शक्ति की उपासना होती थी।यह परंपरा आज भी नवरात्रि के दौरान पूरे देश और विदेशों में बड़े उत्साह के साथ निभाई जाती है।

गरबा का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

यह न केवल धार्मिक परंपरा है, बल्कि भारतीय संस्कृति और सामूहिक उत्सव की पहचान भी है।गरबा के माध्यम से न केवल देवी शक्ति की उपासना होती है, बल्कि सामूहिक नृत्य और संगीत के जरिए सामाजिक जुड़ाव और आनंद का अनुभव भी होता है।
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