शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन मां दुर्गा के सातवें रूप – मां कालरात्रि की आराधना के लिए समर्पित होता है। उनका नाम सुनते ही जहां एक ओर उग्र और भयावह छवि सामने आती है, वहीं दूसरी ओर वे अपने भक्तों के लिए मां की ममता, करुणा और कल्याणकारी शक्ति का प्रतीक बन जाती हैं। यही कारण है कि उन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है, क्योंकि वे अपने उपासकों को केवल मंगलकारी फल प्रदान करती हैं।
मां कालरात्रि का रहस्यमय स्वरूप
मां कालरात्रि का रूप जितना दुष्टों और अधर्मियों के लिए भयावह है, उतना ही भक्तों के लिए सुरक्षा और शक्ति का स्रोत।उनका शरीर घने अंधकार जैसा श्याम है।वे तीन नेत्रों वाली हैं, जो सूर्य, चंद्रमा और अग्नि की तरह समस्त लोकों को प्रकाशित करते हैं।खुले और बिखरे केश मानो आकाश में चमकती बिजली का आभास कराते हैं।गले में अग्नि ज्वालाओं की माला उनकी शक्ति का बोध कराती है।उनकी चार भुजाएं हैं—दाहिने हाथ में अभय और वरद मुद्रा, जबकि बाएं हाथ में वज्र और खड्ग।उनके श्वास और मुख से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं।उनका वाहन गर्दभ (गधा) है। मां का भयंकर रूप जहां असुरों के लिए काल है, वहीं भक्तों के लिए मातृत्व और संरक्षण का अद्वितीय स्वरूप है।
सप्तमी की पूजा-विधि
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प्रातः स्नान कर पूजा स्थल को शुद्ध करें।
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धूप, दीप, अक्षत, रोली, सिंदूर तथा लाल फूल अर्पित करें।
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भोग में गुड़, शहद और जौ अर्पित करना विशेष फलदायी माना जाता है।
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पूर्वी भारत, विशेषकर बंगाल में इस दिन नवपत्रिका पूजा का भी आयोजन होता है।
मां कालरात्रि की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार जब असुर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में उत्पात मचाया, तब देवताओं ने मां दुर्गा से रक्षा की प्रार्थना की।मां दुर्गा ने अपने शरीर से अग्नि प्रकट की और उस अग्नि से उत्पन्न हुईं मां कालरात्रि। उनकी गर्जना से ही असुरों की सेनाएं भयभीत हो गईं। रक्तबीज नामक असुर का रक्त जैसे ही धरती पर गिरता, वैसे ही नए असुर उत्पन्न हो जाते। तब मां कालरात्रि ने अपने प्रचंड रूप से उसे परास्त किया और रक्त की बूंदें धरती पर गिरने से पहले ही पी लीं।इसके बाद उन्होंने शुंभ और निशुंभ का भी संहार किया।इसी कारण मां कालरात्रि को दुष्टों के लिए विनाश की देवी और भक्तों की रक्षक माना जाता है।
मां कालरात्रि की उपासना का महत्व
उपासना से भय और शत्रु का नाश होता है।साधक को साहस, आत्मविश्वास और निर्भयता की प्राप्ति होती है।
अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।तांत्रिक साधनाओं और सिद्धियों के लिए यह दिन विशेष माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार मां कालरात्रि की आराधना से शनि और राहु से जुड़ी पीड़ाएं दूर होती हैं।
आध्यात्मिक संदेश
मां कालरात्रि का स्वरूप हमें यह सीख देता है कि चाहे अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, भक्ति और विश्वास के प्रकाश से उसका अंत संभव है। उनका उग्र रूप दर्शाता है कि धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अन्याय का विनाश अनिवार्य है। वे नकारात्मक ऊर्जाओं और बुरी शक्तियों का नाश कर भक्तों को निराशा से बाहर निकालती हैं।मां कालरात्रि गधे पर सवार होकर चार भुजाओं से भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। उनके हाथ में मशाल और तलवार है, जबकि अन्य दो हाथ अभय और वरद मुद्रा में हैं।उनकी तीन आंखें अज्ञानता के अंधकार को ज्ञान और सत्य के प्रकाश से दूर करने का प्रतीक हैं।
सप्तमी का रंग और अर्पण
नवरात्रि 2025 के सातवें दिन का रंग नारंगी माना गया है। भक्तों को इस दिन मां को नारंगी वस्त्र, केसर और फूल अर्पित करने की परंपरा है।
मां कालरात्रि के ध्यान मंत्र
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या देवी सर्वभूतेषु कालरात्रि रूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्य नमो नमः।
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ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।
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ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
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ॐ काली महाकाली कालिके परमेश्वरी, सर्वानंद करें देवी नारायणी नमोस्तुते।