मार्गशीर्ष जिसे मृगशीर्ष या अगहन भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग का नवां महीना है। यह कार्तिक मास के बाद और पौष मास से पहले आता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, मार्गशीर्ष माह भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय माना गया है। वर्ष 2025 में मार्गशीर्ष माह की शुरुआत 6 नवंबर, गुरुवार से होगी और इसका समापन 4 दिसंबर 2025, बृहस्पतिवार को होगा।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह अवधि नवंबर से दिसंबर के बीच पड़ती है। इस माह का नाम मृगशीर्ष नक्षत्र से पड़ा है, जो इसकी पूर्णिमा तिथि पर विद्यमान रहता है। संस्कृत में “मार्ग” का अर्थ ‘पथ’ और “शीर्ष” का अर्थ ‘श्रेष्ठ’ होता है, यानी मार्गशीर्ष वह महीना है जो मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचाने वाले श्रेष्ठ मार्ग की प्रेरणा देता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता (अध्याय 10, श्लोक 35) में कहा है, “मासानां मार्गशीर्षोऽहम्”, अर्थात् “मैं महीनों में मार्गशीर्ष हूं।” इसलिए यह महीना श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की आराधना के लिए अत्यंत शुभ और पवित्र माना जाता है।
मार्गशीर्ष माह का धार्मिक महत्व
शास्त्रों में मार्गशीर्ष माह को सतयुग के प्रारंभ का प्रतीक बताया गया है। इस पवित्र समय में साधना, जप-तप, ध्यान और दान करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, सफलता और सौभाग्य का आगमन होता है। इस महीने को ‘दान और तपस्या का समय’ कहा गया है, जब मनुष्य अपने भीतर की नकारात्मकता को त्यागकर भक्ति मार्ग की ओर अग्रसर होता है।
मार्गशीर्ष माह में क्या करें
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मार्गशीर्ष मास में प्रतिदिन यमुना स्नान करने का विशेष पुण्य बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा था कि जो व्यक्ति इस माह में यमुना स्नान करेगा, उसे सहज रूप से उनका आशीर्वाद प्राप्त होगा।
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इस माह में श्रीकृष्ण और भगवान विष्णु की भक्ति सर्वोच्च फलदायी मानी जाती है। श्रद्धालु को प्रतिदिन विष्णुसहस्रनाम, गीता पाठ या गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
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स्नान और पूजा के साथ-साथ दान का भी बड़ा महत्व है। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों, गरीबों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करना चाहिए।
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शाम के समय तुलसी माता के पास शुद्ध देशी घी का दीप जलाना अत्यंत शुभ माना गया है। पूजा में तुलसी दल अर्पित करना न भूलें, क्योंकि यह भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण दोनों को प्रिय है।
मार्गशीर्ष माह में क्या नहीं करें
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इस पवित्र माह में मांस, मदिरा और अन्य तामसिक चीजों का सेवन वर्जित है। कहा गया है कि ऐसा करने से पुण्यफल नष्ट हो जाता है।
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हिंदू परंपरा के अनुसार मार्गशीर्ष माह में जीरे का सेवन भी वर्जित माना गया है, क्योंकि यह शरीर की तपशक्ति को कम करता है।
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इस पवित्र काल में साधक को अहंकार, आलस्य, छल-कपट और ईर्ष्या जैसे दोषों से दूर रहना चाहिए। झूठ बोलना या दूसरों की निंदा करना भी निषिद्ध है।
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गुरु, माता-पिता या वरिष्ठ जनों का अपमान करने से मार्गशीर्ष माह का पुण्यफल नष्ट हो जाता है। इस समय उनका आशीर्वाद लेना अत्यंत शुभ होता है।
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इस महीने में पितरों के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए और उनके लिए तर्पण या श्राद्ध करना शुभ होता है। पितरों की निंदा करने से अशुभ फल मिलते हैं।
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इस माह में किसी को अपशब्द या कटु वचन नहीं बोलने चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से उसका नकारात्मक प्रभाव स्वयं पर पड़ता है।

