बिहार में चुनाव भले अभी दूर हो, लेकिन सियासी जमीन तैयार हो चुकी है. एक तरफ विपक्षी गठबंधन एकजुट होने की कोशिश में है, तो दूसरी तरफ सत्ता पक्ष वोटरों को लुभाने में जुटा है. और अब सुप्रीम कोर्ट की नजर भी इस पूरे चुनावी प्रक्रिया पर टिक गई है. आने वाले हफ्ते और भी दिलचस्प होने वाले हैं.
चुनाव नजदीक आते ही बड़ा बिहार का सियासी पर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है. सभी पार्टियां अपनी-अपनी रणनीतियों को धार देने में जुट गई हैं. इसी क्रम में आज महागठबंधन की एक महत्वपूर्ण बैठक शुरू हो गई है. यह बैठक राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव के पटना स्थित आवास (1 पोलो रोड) पर शुरू हुई.
सीएम नीतीश कुमार महिलाओं को साधने की कर रहे कोशिश
वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी चुनावी मोर्चे पर बड़ी घोषणा कर दी है. उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं की प्रोत्साहन राशि 1,000 रुपये से बढ़ाकर 3,000 रुपये प्रति माह करने का ऐलान किया है. इस फैसले को चुनाव से पहले सरकार की जनसंपर्क नीति और महिलाओं को साधने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
मतदाता पुनर्निरीक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश
उधर बिहार में मतदाता सूची को लेकर भी हलचल है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक संस्था है, लेकिन अगर मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) के दौरान बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाते हैं, तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस मुद्दे पर 12 और 13 अगस्त को सुनवाई करने की बात कही है. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ने याचिकाकर्ता की ओर से कहा कि 1 अगस्त को प्रकाशित होने वाली ड्राफ्ट लिस्ट से कई लोगों को जानबूझकर बाहर किया जा रहा है, जिससे वे वोट डालने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं.