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October 25, 2025

जब भगवान शिव ने धर्म तोड़ा, लेकिन दुनिया को बचाया: ये 5 कहानियां बदल देंगी आपका नजरिया

The CSR Journal Magazine
भगवान शिव, जिन्हें “संहारक” और “सृष्टिकर्ता” दोनों माना जाता है, धर्म की मर्यादाओं को तोड़कर कई बार संसार की रक्षा कर चुके हैं। पुराणों में वर्णित पांच प्रमुख घटनाओं में शिव ने ब्रह्मा के एक सिर को काटा, समुंद्र मंथन के विष को अपने गले में समेटा, गंगा को अपने जटाओं में पकड़कर पृथ्वी पर उतारा, कामदेव को भस्म किया और सती के मृत्युपरांत तांडव किया। इन कार्यों को देख ऐसा लगता है कि शिव ने नियमों का उल्लंघन किया, लेकिन वास्तव में उन्होंने जीवन, न्याय और चेतना की रक्षा के लिए ऐसा किया। इस खबर में हम आपको बताते हैं कि कैसे शिव का यह धर्म नियमों से ऊपर जाकर भी सृष्टि और मानवता के लिए सबसे बड़ा संदेश देता है।

ब्रह्मा का सिर काटना: शक्ति का असली पाठ

हिंदू धर्म में ब्रह्मा, सृष्टि के रचयिता, सबसे उच्च स्थान पर माने जाते हैं। लेकिन जब ब्रह्मा ने अहंकार में आकर झूठ बोला और अपनी श्रेष्ठता दिखाने की कोशिश की, तो शिव ने भिक्षाटन रूप धारण कर उनके एक सिर को काट दिया। यह कार्य धर्म की दृष्टि से अत्यंत पाप माना जाता है, क्योंकि ब्राह्मण हत्या सबसे बड़ा पाप है। शिव ने कर्म को स्वीकार किया और तपस्या करते हुए संसार को यह सिखाया कि अहंकार किसी भी शक्ति को बड़ा नहीं बनाता।

समुंद्र मंथन का हलाहल पीना

समुंद्र मंथन के दौरान उत्पन्न हलाहल विष, सृष्टि को नष्ट करने की क्षमता रखता था। धर्मानुसार इसे अपने प्राकृतिक प्रवाह में छोड़ देना चाहिए था, लेकिन शिव ने बिना किसी अनुमति के इसे अपने गले में धारण किया। उनका यह कार्य धर्म का उल्लंघन था, लेकिन इसने सम्पूर्ण जीवों की रक्षा की। इसे देखकर स्पष्ट होता है कि कभी-कभी नियम से ऊपर उठकर बड़ा निर्णय लेना आवश्यक होता है।

गंगा को पृथ्वी पर लाना

संत राजा भगीरथ की प्रार्थना पर गंगा को पृथ्वी पर लाना था। लेकिन उसकी तीव्र धारा धरती को नष्ट कर सकती थी। शिव ने बिना किसी वैदिक अनुष्ठान या देव परिषद की अनुमति के गंगा को अपने जटाओं में समेटा और धीरे-धीरे पृथ्वी पर छोड़ा। धर्म के नियम तोड़कर भी शिव ने मानवता के लिए दिव्य जल की उपलब्धता सुनिश्चित की।

इच्छा को परिपक्व प्रेम में बदलना

जब पार्वती की तपस्या भंग करने के लिए देवताओं ने कामदेव को भेजा, तो उसने शिव को प्रेम की तीर मार दी। क्रोध में शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया। यह बिना न्याय के देवता को समाप्त करना धर्म का उल्लंघन था। लेकिन इस घटना ने कामदेव को अनंग बनाया और यह सिखाया कि प्रेम का असली रूप भौतिक इच्छा नहीं, बल्कि अंतरात्मा की भक्ति है।

शोक में ब्रह्मांड का सृजन और विनाश

सती के आत्मदाह के बाद शिव ने उनके शव के साथ ब्रह्मांड में विचरण किया और तांडव किया, जिससे सृष्टि के संतुलन पर खतरा आया। यह उनके लिए भी धर्म का उल्लंघन था, लेकिन उनके असीम शोक ने देश में शक्ति पीठों का निर्माण किया। उनकी पीड़ा और गुस्सा अंततः मानवता और देवत्व के लिए नई ऊर्जा लेकर आया।

शिव का धर्म: नियम नहीं, भावनाओं और चेतना की रक्षा

इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि शिव हमेशा धर्म का पालन नियमों की तुलना में आत्मा और परिस्थितियों के अनुसार करते हैं। कभी-कभी धर्म का सच्चा अर्थ नियमों का पालन नहीं, बल्कि जीवन और न्याय की रक्षा करना होता है। शिव हमें यह सिखाते हैं कि असली धर्म मन और कानून में नहीं, बल्कि विवेक और साहस में है।
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