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November 8, 2025

काशी का Manikarnika Ghat, जहां हर चिता मिटाती है मोह-माया, सतयुग से जलती आग की राख में छिपा है “मोक्ष का रहस्य”

The CSR Journal Magazine
वाराणसी, या काशी, केवल एक शहर नहीं, बल्कि हिंदू धर्म का आध्यात्मिक हृदय है। गंगा के किनारे बसा यह नगर जीवन और मृत्यु का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यहां हर कोना, हर घाट, भगवान के प्रति भक्ति और मानव जीवन की नश्वरता की याद दिलाता है। इन्हीं में सबसे पवित्र और रहस्यमयी है मणिकर्णिका घाट, जिसे मोक्षदायिनी घाट भी कहा जाता है।
मणिकर्णिका घाट पर दिन-रात चिताएं जलती रहती हैं। यहां रोज़ाना करीब 250 से 300 शवों का अंतिम संस्कार होता है, जो शुभ तिथियों पर 400 से अधिक तक पहुंच जाता है। कहा जाता है कि इस घाट की अखंड अग्नि सतयुग से जल रही है, जिसे डोम राजा पीढ़ियों से संजोए हुए हैं। हर नई चिता इसी पवित्र अग्नि से प्रज्वलित की जाती है, जो कभी बुझती नहीं और मोक्ष का प्रतीक मानी जाती है।
मणिकर्णिका घाट का पौराणिक महत्व
मणि” और कर्णिका अर्थात रत्न और कर्णहार से नामित यह घाट सती माता के कर्णहार से जुड़ा है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के अपमानजनक यज्ञ का विरोध करते हुए आत्मदाह किया, तो भगवान शिव उनकी देह लेकर पूरे ब्रह्मांड में विचरण करने लगे। इसी दौरान उनके शरीर के 51 अंग पृथ्वी पर गिरे, जहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।मणिकर्णिका घाट वह स्थान माना जाता है, जहां सती का कर्णहार गिरा था।

मणिकर्णिका कुंड और डोम राजा की परंपरा

एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस स्थान पर शिव-पार्वती के स्नान हेतु मणिकर्णिका कुंड का निर्माण किया। कहा जाता है कि यहीं गिरा कर्णहार बाद में डोम समुदाय के पास सुरक्षित रखा गया। घाट पर स्थित मणिकर्णिका कुंड आज भी श्रद्धा का केंद्र है। कहते हैं। डोम अखंड अग्नि की देखभाल करते हैं और हर अंतिम संस्कार की व्यवस्था संभालते हैं। उनके अनुसार, यह अग्नि हजारों वर्षों से निरंतर जल रही है और कभी बुझी नहीं।

मोक्ष का रहस्य: जहां मिटता है मृत्यु का भय

मणिकर्णिका घाट को “मोक्षदायिनी” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां अखंड जलती अग्नि जीवन की नश्वरता और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक है। श्रद्धालु मानते हैं कि इस पवित्र स्थान पर अंतिम संस्कार के दर्शन मात्र से ही मृत्यु का भय मिट जाता है। यहां स्नान केवल शुद्धिकरण नहीं, बल्कि आत्मा को मुक्ति की ओर ले जाने वाला अनुभव है। मणिकर्णिका घाट वह स्थान है जहां जीवन और मृत्यु एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं। यहां हर चिता मोह-माया को भस्म करती है और हर राख आत्मा को मुक्ति का मार्ग दिखाती है। यही कारण है कि काशी का यह घाट आज भी श्रद्धा, रहस्य और मोक्ष की अनंत अग्नि से आलोकित है।

जहां अंत भी आरंभ बन जाता है

मणिकर्णिका घाट की यह अखंड अग्नि न केवल शवों को भस्म करती है, बल्कि मोह, अहंकार और भय को भी समाप्त करती है। यहां हर चिता जीवन की अस्थिरता और आत्मा की अमरता का संदेश देती है। जो व्यक्ति इस दृश्य को देखता है, वह जीवन और मृत्यु की सच्चाई को गहराई से अनुभव करता है।
मणिकर्णिका घाट केवल अंतिम संस्कार का स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण का प्रतीक है। यहां मृत्यु को अंत नहीं, बल्कि नई यात्रा की शुरुआत माना जाता है। गंगा की धारा, जलती अग्नि और श्रद्धा का वातावरण हर व्यक्ति को यह एहसास कराता है कि मोह-माया का अंत ही मोक्ष की शुरुआत है।
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