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October 1, 2025

कन्या पूजन: बिना इस अनुष्ठान के अधूरी मानी जाती है नवदुर्गा की आराधना

The CSR Journal Magazine
​दुर्गा पूजा के महापर्व पर, विशेष रूप से महाअष्टमी और महानवमी के पावन दिनों में, एक अति महत्वपूर्ण और हृदयस्पर्शी अनुष्ठान होता है—कन्या पूजन। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति के सम्मान का सबसे पवित्र प्रदर्शन है।
​यह परंपरा इस मूलभूत मान्यता पर आधारित है कि देवी दुर्गा की शक्ति हर स्त्री में निहित है। छोटी, कुँवारी कन्याओं (जिन्हें कंजक भी कहा जाता है) को देवी का सबसे शुद्ध, पवित्र और साक्षात रूप माना जाता है। भक्तजन नौ दिनों की आराधना का पूर्ण फल पाने के लिए इन “जीवित देवियों” का आह्वान करते हैं।

शक्ति का सम्मान-​ बालिकाओं में नवदुर्गा का वास

​कन्या पूजन की विधि स्नेह, श्रद्धा और समर्पण से भरी होती है। भक्तगण नौ कन्याओं (नवदुर्गा के नौ स्वरूप) और एक बटुक (लड़का, जिन्हें बटुक भैरव का रूप माना जाता है) को आदरपूर्वक अपने घर बुलाते हैं। घर के सदस्य, विशेषकर बड़े-बुजुर्ग, इन कन्याओं के पैर धोकर उनका स्वागत करते हैं, जो अतिथि सत्कार और पवित्रता का प्रतीक है। कन्याओं को प्रेमपूर्वक आसन पर बिठाया जाता है और उन्हें खीर, पूड़ी, हलवा और चना जैसे सात्विक एवं स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। भोजनोपरांत, उन्हें दक्षिणा और उपहार देकर विदा किया जाता है। सबसे महत्वपूर्ण क्षण वह होता है, जब बड़ी उम्र के लोग भी श्रद्धापूर्वक इनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं।

​कन्या पूजन: अहंकार का त्याग और समस्त स्त्री जाति के प्रति आदर का प्रतीक!

​कन्याओं के पैर छूने की यह परंपरा अत्यंत गहरा आध्यात्मिक अर्थ रखती है। जब कोई व्यक्ति, भले ही वह उम्र में कितना भी बड़ा हो या समाज में ऊँचा पद रखता हो, एक छोटी बालिका के पैर छूता है, तो वह अपने अहंकार का त्याग करता है। वह उस बालिका को नहीं, बल्कि उसके अंदर निवास कर रही महाशक्ति को नमन करता है। ​यह क्रिया सामाजिक संदेश भी देती है कि समस्त स्त्री जाति का बचपन से ही सम्मान और आदर किया जाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, इस अनुष्ठान के बिना नवदुर्गा व्रत या पूजा अधूरी मानी जाती है।

धार्मिक ​मान्यता: कन्या पूजन से देवी होती हैं शीघ्र प्रसन्न, हर मनोकामना होती है पूरी

​मान्यता है कि माँ दुर्गा को प्रसन्न करने का यह सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है। कन्या पूजन करने वाले भक्तों को देवी का त्वरित आशीर्वाद प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इन छोटी बच्चियों को भोजन कराने और उन्हें सम्मान देने से माता रानी सभी प्रकार के कष्टों को दूर करती हैं और घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
​यह अनुष्ठान हमें सिखाता है कि भक्ति, आदर और सादगी ही शक्ति की उपासना का सबसे शुद्ध और शक्तिशाली रूप है।

 

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