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November 3, 2025

गरीबी, ताने और झोपड़ी से World Cup तक: इन 11 बेटियों की संघर्षगाथा बनी World Champion Team की ताकत

The CSR Journal Magazine
भारत की वर्ल्ड चैंपियन महिला क्रिकेट टीम की कामयाबी के पीछे सिर्फ मैदान पर खेला गया संघर्ष नहीं, बल्कि जिंदगी के मैदान में लड़ी गई असली लड़ाइयों की कहानियां छिपी हैं। कोई झोपड़ी में पली, कोई पिता के बिना बड़ी हुई, तो किसी ने समाज की तंग सोच से जंग लड़ी। हरमनप्रीत कौर से लेकर शेफाली वर्मा तक, इन बेटियों ने साबित किया कि जज्बा और हौसला हो तो कोई मंज़िल दूर नहीं।
ICC Women’s Cricket World Cup 2025 Final:  India Women vs South Africa Women, और भारत ने 52 रनों से जीतकर पहली बार यह खिताब अपने नाम किया।

स्मृति मंधाना: प्लास्टिक बैट से शुरू हुआ सफर

टीम इंडिया की स्टार ओपनर स्मृति मंधाना ने सिर्फ 9 साल की उम्र में महाराष्ट्र की अंडर-15 टीम में जगह बनाई। शुरुआत प्लास्टिक बैट से हुई थी, लेकिन उनके जज्बे ने सब बदल दिया। 2013 में उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ भारत के लिए डेब्यू किया और 2017 के महिला वर्ल्ड कप में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बनीं। उनकी 90 और 86 रनों की पारियों ने भारत को फाइनल तक पहुंचाया।

हरमनप्रीत कौर: छोटे बल्ले से बड़ी हिम्मत तक

पंजाब के मोगा शहर की हरमनप्रीत कौर के पास न सुविधाएं थीं, न पैसे। पिता ने कम पैसों में छोटा बल्ला खरीदा, और बेटी ने उसी से सपनों को ऊंचा उड़ान दी। उन्होंने लड़कों के साथ खेलकर खुद को निखारा। रेलवे में नौकरी पाने से लेकर अर्जुन अवॉर्ड हासिल करने तक का सफर संघर्षों से भरा रहा। बाद में उन्हें पंजाब पुलिस में डिप्टी एसपी का पद भी मिला।

रेणुका ठाकुर: पिता का सपना पूरा किया

हिमाचल की तेज गेंदबाज रेणुका ठाकुर सिर्फ दो साल की थीं जब पिता का साया उठ गया। मां ने मेहनत से बेटी का हौसला बनाए रखा। लकड़ी के बैट और कपड़े की गेंद से गांव में खेलते हुए रेणुका ने क्रिकेट का सपना जिया। आज उनकी स्विंग गेंदबाजी दुनिया की बल्लेबाजों को परेशान करती है।

राधा यादव: झोपड़ी से इंटरनेशनल मैदान तक

मुंबई की कोलिवरी झोपड़पट्टी में पली राधा यादव का बचपन तंगहाली में बीता। पिता के पास पैसे नहीं थे कि बेटी को क्रिकेट अकादमी भेज सकें, लेकिन कोच प्रफुल्ल नाइक ने उनका हाथ थामा। राधा ने मेहनत से टीम इंडिया में जगह बनाई और आज वो विपक्षी टीमों के लिए चुनौती हैं।

एन चरणी: किसान की बेटी से वर्ल्ड चैंपियन तक

आंध्र प्रदेश के छोटे से गांव की चरणी का परिवार कर्ज में डूबा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पहले बैडमिंटन, फिर कबड्डी और आखिर में क्रिकेट में हाथ आजमाया। मां के समर्थन और चाचा की मदद से वो स्पिन गेंदबाज बनीं और आज भारत की जीत की धुरी हैं।

शेफाली वर्मा: टूटी ग्लव्स से ट्रॉफी तक

रोहतक की शेफाली वर्मा कभी खराब ग्लव्स और पुराने बल्ले से अभ्यास करती थीं। पिता ने मेरठ से छह बल्ले लाकर बेटी का हौसला बढ़ाया। एक समय उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया, लेकिन फाइनल में 50 रन और 2 विकेट लेकर उन्होंने सबका दिल जीत लिया। पिता की बीमारी छिपाकर खेलना, उनकी हिम्मत का सबूत है।

ऋचा घोष: छत पर प्रैक्टिस करने वाली चैंपियन

कोरोना काल में ऋचा घोष ने घर की छत पर अभ्यास कर अपनी फिटनेस और फॉर्म बनाए रखी। इंटरमीडिएट में 92% अंक लाने के बाद उन्होंने क्रिकेट में भी इतिहास रचा। अब वो महिला वनडे में 1000 रन पूरे करने वाली सबसे तेज भारतीय खिलाड़ी हैं।

हरलीन देओल: फुटबॉल से क्रिकेट तक

पंजाब की हरलीन देओल बचपन में लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। 4 साल की उम्र से ही मैदान उनकी पहचान बन गया। परिवार में कोई स्पोर्ट्स बैकग्राउंड न होने के बावजूद उन्होंने क्रिकेट को चुना और आज टीम इंडिया की भरोसेमंद ऑलराउंडर हैं।

जेमिमा रोड्रिग्ज: मानसिक जंग की विजेता

मुंबई की जेमिमा रोड्रिग्ज ने पिता के मार्गदर्शन में क्रिकेट सीखी। स्कूल में लड़कियों की टीम न होने पर पिता ने खुद टीम बनाई। उन्होंने एंग्जायटी और डिप्रेशन से लड़ते हुए खुद को संभाला। आज वो सिर्फ बल्लेबाज नहीं, बल्कि लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं।

अमनजोत कौर: हौसले की मिसाल

मोहाली की अमनजोत कौर ने आर्थिक तंगी के बावजूद क्रिकेट नहीं छोड़ा। पिता के सपोर्ट से उन्होंने मैदान पर जगह बनाई। अब वो मिडिल ऑर्डर में टीम की रीढ़ बन चुकी हैं और अपनी स्विंग गेंदबाजी से विपक्षी टीमों को चौंकाती हैं।

भारत की बेटियां, नए इतिहास की गवाह

इन 11 बेटियों ने दिखा दिया कि जब हौसले ऊंचे हों तो हालात मायने नहीं रखते। झोपड़ी, गरीबी, ताने, समाज की दीवारें  सब इनके हौसले के आगे बौनी पड़ गईं। आज ये बेटियां सिर्फ वर्ल्ड चैंपियन नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के दिल की ‘रियल हीरो’ बन चुकी हैं।
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