आईये, स्वतंत्रता दिवस पर खत्म करें भाषिक भेदभाव
आज़ादी के मतवालों ने भारत को अंग्रेजों से भले आज़ादी दिला दी, लेकिन जब भारत के आज़ाद होने पर बहस होती है तो सवाल कई खड़े होते है, आज़ादी के 74 साल बीत जाने के बाद भी हम सवाल करते है राष्ट्रीय एकता पर, हम सवाल करते है भारत में चौतरफे विकास पर, हम सवाल करते है हिंदू-मुस्लिम एकता पर, हम सवाल करते है देश की मूलभूत सुविधाओं की, हम बात करते है इंफ्रास्ट्रक्चर की, बिजली, सड़क, पानी की। लेकिन इन सब के बीच आज एक और मसला बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है भाषिक एकता।
121 भाषाएं हैं जो कि भारत में बोली जाती हैं।
हम कहते है कि हमारी अनेकता में एकता है, हम कहते हैं कि हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी है, हम बेबाकी से आलोचनाएं करते है, जिसके लिए हम भाषाओं का इस्तेमाल करते है लेकिन यही भाषाएं कभी कभी हमारी एकता में रोड़ा बनती है। भाषाओं की वजह से हमने कई ऐसे मामले देखें है कि जिसमें विषमता होता है, हमारी अनेकता की एकता पर सवाल खड़े होते है वो भी महज भाषा की वजह से। भाषा जो महज अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करती है, भाषा जिसका इस्तेमाल कर हम बोलचाल करते है, लेकिन इसी भाषा की वजह से हम भारतीय, कभी हिंदी हो जाते हैं, तो कभी पंजाबी, कभी बंगाली, तो कभी तमिल तो कभी मद्रासी। अक्सर देखा जाता है कि हमारी विविधताओं में भाषा अवरोध पैदा करती है। अपनी भाषा श्रेष्ठ और दूसरों की निम्न ऐसी सोच रखने वाले भारत की अखंडता पर सवालिए निशान खड़े करते है।
भारत में मातृभाषा के रूप में 9,500 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं।
भाषा मानव अस्तित्व की एक प्रमुख विशेषता है क्योंकि यह मनुष्यों को एक-दूसरे के साथ संवाद करने और उनके बीच संबंध विकसित करने में मदद करती है। ये हम सब जानते हैं कि क्षेत्र के अनुसार दुनिया का सातवां सबसे बड़ा देश और साथ ही दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत है। यहां पर लगभग 1.3 अरब से अधिक लोगों की आबादी है कई धर्म प्रचलित हैं। भारत में विभिन्न भाषाएं और संस्कृतियां शामिल हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोग बिखरे हुए हैं। जनगणना के विश्लेषण के मुताबिक 121 भाषाएं हैं जो कि भारत में बोली जाती हैं। जनगणना के नवीनतम विश्लेषण के मुताबिक भारत में मातृभाषा के रूप में 9,500 से अधिक भाषाएं बोली जाती हैं। यानि अगर हम विश्लेषण करें तो इतने बड़े पैमाने पर भाषाओं का विस्तार है तो जाहिर है इन भाषाओं को लेकर “अपना-पराया” भी होगा। और यही सोच घातक है।
यहां यह जिक्र करना महत्वपूर्ण हो जाता है जब एक बार डीएमके सांसद कनिमोझी ने चेन्नई एयरपोर्ट पर सीआइएसएफ की एक अधिकारी द्वारा हिंदी बोलने का अनुरोध करने पर जब यह कहा कि उन्हें हिंदी नहीं आती (आइ डोंट नो हिंदी), तमिल या अंग्रेजी में बात करें, तो उस अधिकारी के मुख से संभवत: अनायास निकलने वाला प्रश्न सूचक यह वाक्य, क्या वह भारतीय हैं? उन्हें इतना नागवार गुजरा कि इसे राजनीतिक मसला बनाते हुए सोशल मीडिया पर लिखा। दक्षिण भारत में तमिल तेलुगू का इतना बोलबाला है कि राष्ट्रीय भाषा बोलना तौहिनियत समझी जाती है। यही हाल कुछ उत्तर भारत की है जहां हिंदी छोड़ अंग्रेजी समेत दूसरी भारतीय भाषाओं को बोलने से परहेज़ करते है। यही कारण है कि भारत की भाषिक एकता पर सवाल उठते हैं।